सम्पादकीय

कोरोना : इस 'लहर' से न घबराएं, देश में संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच यह कहना कितना सही है?

Neha Dani
20 April 2022 1:45 AM GMT
कोरोना : इस लहर से न घबराएं, देश में संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच यह कहना कितना सही है?
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कोविड जोखिम का स्व-मूल्यांकन करें और उसके अनुसार कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन करें। यह चौथी लहर की शुरुआत नहीं है।

भारत के कुछ राज्यों में, खासतौर से दिल्ली और हरियाणा में, कोविड-19 के दैनिक नए मामले बढ़ रहे हैं। फिर केरल ने एक दिन पुराने मामलों को भी जोड़कर बताया, जिससे ऐसा लगा कि देश भर में कुल मामले काफी अधिक तेजी से बढ़ गए हैं। इसके अलावा, दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के स्कूली बच्चों में कोविड-19 मामलों की खबरें भी आई हैं। इन सबसे आम जन में चिंताएं कुछ बढ़ गई हैं। चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ जिलों में सार्वजनिक स्थानों पर फेसमास्क को फिर से अनिवार्य कर दिया गया है।

क्या कोविड मामलों में यह वृद्धि चिंता का विषय है? क्या यह भारत में चौथी लहर की आहट है? क्या बच्चों के लिए कोविड का खतरा बढ़ गया है? क्या मास्क को फिर से अनिवार्य किया जाना चाहिए? आइए, हम इस पर एक बार नजर डालते हैं। दिल्ली और हरियाणा में कोविड के मामलों में वृद्धि को मुख्य रूप से कोविड से जुड़े विभिन्न प्रतिबंधों को हटाने, आर्थिक गतिविधियों और पर्यटन में वृद्धि से जोड़कर देखा जा सकता है।
मामले बढ़े जरूर हैं, लेकिन अधिकांश या तो बिना लक्षण या हल्के लक्षणों वाले मामले हैं और कई लोगों ने यात्रा या अन्य कारणों से स्वेच्छा से परीक्षण करवाया था। अस्पताल में भर्ती होने या आईसीयू बेड की आवश्यकता में बहुत मामूली या कोई वृद्धि नहीं हुई है। पिछले दो साल में अब यह साफ हो गया है कि कोविड का विषाणु हमारे साथ हमेशा रहेगा और यह संभव है कि आने वाले कई महीनों और सालों में, नियमित अंतराल पर कोविड के मामलों में उतार-चढ़ाव दिखता रहेगा।
इसलिए अब संक्रमण मात्र चिंता का विषय नहीं है, बल्कि संक्रमण का नतीजा क्या होगा, इस पर हमें स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेने होंगे। साथ ही, भारत में दूसरी और तीसरी लहर के बाद प्राकृतिक संक्रमण (और उसके बाद बनी प्रतिरक्षा) तथा अधिकांश वयस्कों को टीके लगने के बाद हाइब्रिड इम्युनिटी बन चुकी है, जो इस बात की वैज्ञानिक आश्वस्ति देती है कि भारत में भविष्य में संक्रमण की गंभीरता कम रहेगी। इस पृष्ठभूमि में, कोविड-19 मामलों में वृद्धि, तत्काल चिंता का कोई कारण नहीं है।
वर्तमान में, भारत में ओमिक्रॉन और इसकी उप-वंश बीए.1, बीए.2 और पुनः संयोजक एक्सई (बीए.1 और बीए.2 का मिश्रण) आ रहे हैं। एक्सई के कुछ पुष्ट मामले भी चिंता का कारण नहीं हैं, क्योंकि यह एक नया संस्करण नहीं है, बल्कि ओमिक्रॉन का ही एक उप-प्रकार है। यह जानते हुए कि भारत में तीसरी लहर ओमिक्रॉन के कारण आई थी, यह मानने का पूरा वैज्ञानिक कारण है कि एक्सई, बीए.2 या कोई अन्य ओमिक्रॉन उप-वंश देश में नई लहरें पैदा नहीं करेगा।
चूंकि कोई नया संस्करण प्रसार में नहीं है, मामलों में बढ़ोतरी कुछ ही राज्यों तक सीमित है, इसलिए यह भारत में चौथी लहर की शुरुआत नहीं है। कोविड-19 प्रसार को कम करने में फेसमास्क की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। महामारी की शुरुआत से पिछले साल तक, जब पूरी आबादी को संक्रमण और गंभीर बीमारी का खतरा पैदा हो गया था और टीकाकरण सीमित था, सार्वभौमिक मास्किंग के स्पष्ट लाभ थे। ओमिक्रॉन और इसके उप-प्रकारों को रोकने में कपड़े के मास्क (जो भारत में अधिकतर लोग इस्तेमाल करते हैं) की बहुत ही सीमित भूमिका है।
फिर, भारत में प्राकृतिक संक्रमण और टीके प्रेरित प्रतिरक्षा (हाइब्रिड इम्युनिटी) के साथ अब अधिकतर लोगों में गंभीर बीमारी का खतरा काफी कम हो गया है। इसलिए आने वाले समय में सरकारों को कोविड संबंधी नीतियां परिस्थिति का आकलन करके वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर बनानी चाहिए। मामलों में मौजूदा बढ़ोतरी को देखते हुए फिर से फेसमास्क अनिवार्य करने का औचित्य नहीं है। जिस तरह से हम दो कप चाय बनाने के लिए अपने घर के ऊपर की पानी की टंकी को उबालते नहीं हैं, उसी तरह सभी के लिए अनिवार्य फेसमास्क का अब इतना महत्व नहीं है।
हां, हमें 'उच्च जोखिम वाले लोगों की रक्षा' की रणनीति अपनानी चाहिए, जिन्हें फेसमास्क और अन्य कोविड उपयुक्त व्यवहार अधिक जिम्मेदारी के साथ, लेकिन स्वैच्छिक तौर पर पालन कराते रहना चाहिए। बुजुर्गों और अन्य उच्च जोखिम वाले वयस्कों को, विशेष रूप से इनडोर और भीड़-भाड़ वाले स्थानों में और गैर-पारिवारिक सदस्यों से मिलते समय मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए। पूरी तरह से टीका लगाए हुए वयस्क और सभी स्वस्थ बच्चे सामान्य जीवन जी सकते हैं।
साथ ही, अब सरकारों को नीतिगत निर्णय सिर्फ नए कोविड-19 के मामलों के आधार पर नहीं, बल्कि अस्पताल में भर्ती होने वाले कोविड मरीजों के रुझान को ध्यान में रखकर ही लेना होगा। जिन बच्चों में कोविड के मामले मिले हैं, वे सभी या तो बिना लक्षणों के या हल्के लक्षणों वाले हैं। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि ये बच्चे स्कूलों से संक्रमित हुए, बल्कि अधिकतर को संक्रमण परिवार के अन्य सदस्यों से हुआ। साथ ही, अब तक हुए सभी सीरो-सर्वेक्षणों ने इंगित किया है कि भारत में लगभग 70 से 90 फीसदी बच्चे पहले ही (जब स्कूल बंद थे) संक्रमित हो चुके थे।
फिर, बच्चों को वयस्कों के समान ही संक्रमण होता है; लेकिन उन्हें गंभीर बीमारी का खतरा वयस्कों की तुलना में कई गुना कम या नगण्य होता है। इस पृष्ठभूमि में, बच्चों में कोविड के मामले मिलना चिंता का कारण या स्कूलों को बंद करने का जायज तर्क नहीं है। भारतीय राज्यों में, स्कूलों को अब पूर्ण रूप से खुले रखने की जरूरत है। हां, अगर कोई बच्चा बीमार है, तो उसे स्कूल न आने की सलाह देने की जरूरत है।
कुल मिलाकर कहें, तो भारत के कुछ राज्यों में कोविड के मामलों में वृद्धि फिलहाल चिंता का कोई कारण नहीं है। सभी आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक गतिविधियों को बिना किसी प्रतिबंध के जारी रखना चाहिए। स्कूल पूरी तरह से खुले रहने चाहिए। महामारी संबंधी सभी उपाय स्वैच्छिक होने चाहिए। व्यक्तिगत स्तर पर, जरूरत है कि लोग कोविड जोखिम का स्व-मूल्यांकन करें और उसके अनुसार कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन करें। यह चौथी लहर की शुरुआत नहीं है।

सोर्स: अमर उजाला

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