सम्पादकीय

कोरोना संकट और अर्थव्यवस्था: क्या बड़ी आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रही है दुनिया? भारत पर कितना होगा असर?

Rani Sahu
28 Aug 2021 6:59 AM GMT
कोरोना संकट और अर्थव्यवस्था: क्या बड़ी आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रही है दुनिया? भारत पर कितना होगा असर?
x
मार्च 2020 के बाद से कोरोना की वजह से पूरी दुनिया परेशानी में है। भारत में पिछले साल आई कोरोना की पहली लहर के बाद इस साल अप्रैल-जून तक कोरोना की दूसरी लहर का पीक था

शशांक द्विवेदी। मार्च 2020 के बाद से कोरोना की वजह से पूरी दुनिया परेशानी में है। भारत में पिछले साल आई कोरोना की पहली लहर के बाद इस साल अप्रैल-जून तक कोरोना की दूसरी लहर का पीक था। देश में दुसरी लहर के बाद फिलहाल अब कोरोना के दैनिक आंकड़े 40000 से कम हैंं, लेकिन कोरोना का डेल्टा वैरिएंट अभी भी अमेरिका, ब्रिटेन जैसे कई देशों में चिंता का बड़ा सबब बना हुआ है।

देश और दुनिया में कोरोना वैक्सीन की रफ़्तार उम्मीद से कम दिख रही है। देश में कोरोना संक्रमण का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को आया था। उसके बाद से 31 मार्च 2021 तक देश में 1.21 करोड़ मामले सामने आए थे, लेकिन 1 अप्रैल 2021 से लेकर 31 मई 2021 तक देश में 1.60 करोड़ संक्रमित सामने आए। यानी, कोरोनाकाल के 15 महीनों में जितने संक्रमित नहीं मिले, उससे 32% ज्यादा संक्रमित सिर्फ इन दो महीनों में मिले।
इसी तरह देश में कोरोना से पहली मौत पिछले साल 12 मार्च को हुई थी, तब से लेकर 31 मार्च 2021 तक देश में 1.62 लाख संक्रमितों की जान गई थी। जबकि, सिर्फ अप्रैल और मई के महीने में ही 1.69 लाख से ज्यादा मरीजों ने दम तोड़ दिया।
समाज और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
देश के आर्थिक हालात और बेरोजगारी पर नजर रखने वाली एजेंसी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई का डेटा बताता है कि दूसरी लहर की वजह से अप्रैल में 73.5 लाख लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। जबकि, मई में 1.53 करोड़ लोगों की नौकरियां गईं। कुल मिलाकर 2.26 करोड़ से ज्यादा लोगों को सिर्फ दो महीने में ही नौकरी गंवानी पड़ी है।
कोरोना ने दुनिया को स्वास्थ्य के साथ साथ आर्थिक स्तर पर भी बड़ी चोट दी है। कोरोना की वजह से पूरी दुनिया एक बड़े आर्थिक संकट की तरफ भी बढ़ रही है जिसकी वजह से वैश्विक मंदी स्पष्ट रूप से दिख रही है। दुनियाभर में करोड़ों लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है।
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दुनिया भर में कोरोना की महामारी 2.5 करोड़ लोगों का रोजगार छीन लेगी। यह पहले से जारी वैश्विक आर्थिक संकट में कोढ़ में खाज की तरह साबित होगी। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 3.6 लाख करोड़ डॉलर का झटका लगेगा।
संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि इससे आर्थिक और श्रम संकट गहराएगा। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी एक अध्ययन में कहा है कि वैश्विक स्तर पर एक समन्वित नीति बनती है तो नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
दुनियाभर में तेजी के साथ फैल रहे घातक कोरोना वायरस ने वैश्विक अर्थव्यस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है। इसके चलते वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग और आपूर्ति दोनों पर असर पड़ा है।
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दुनिया भर में कोरोना की महामारी 2.5 करोड़ लोगों का रोजगार छीन लेगी। - फोटो : pixabay
कोरोना से प्रभावित अर्थव्यवस्था
कोरोनावायरस ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है। इस महामारी ने दुनिया को एक ऐसे समय में अपनी चपेट लिया है जब ग्लोबल इकोनॉमी पहले ही सुस्ती से जूझ रही थी। विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री कारमेन रेनहार्ट ने कहा-
कोरोना महामारी से पैदा हुए ग्लोबल आर्थिक संकट से उबरने में पांच साल लग सकते हैं। वे कहते हैं- लॉकडाउन से जुड़े प्रतिबंधों को काफी हद तक हटा दिया गया है और कई देशों में आर्थिक गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं, लेकिन इसके बाद भी वैश्विक अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से ठीक होने में पांच साल लग सकते हैं।
महामारी की वजह से सामने आई आर्थिक मंदी अलग-अलग देशों में अलग-अलग समय तक चल सकती है। कुछ देशों में आर्थिक मंदी दूसरे देशों की तुलना में लंबे समय तक चल सकती है और यह स्थिति असमानताओं को बढ़ाएगी। अमीर देशों में आर्थिक संकट की मार सबसे ज्यादा गरीबों पर पड़ेगी, तो वहीं दुनिया के गरीब देशों में शामिल देश, अमीर देशों की तुलना में ज्यादा प्रभावित होंगे।
बीस सालों में पहली बार वैश्विक गरीबी की दर बढ़ेगी। इसी के साथ वर्ल्ड बैंक के प्रसिडेंट डेविड मालपास ने भी ये चेतावनी दी थी कि कोरोना महामारी के चलते दुनियाभर में करीब 100 मिलियन यानी 10 करोड़ लोगों को भारी गरीबी का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे में अमीर देशों को गरीब देशों की मदद के लिए आगे आना पड़ेगा, तभी इतनी बड़ी आबादी को प्रभावित होने से कुछ हद तक बचाया जा सकेगा। हालांकि ऐसा करने की आड़ में अमीर देश गरीब देशों का शोषण भी कर सकते हैं।
कोरोना का दुनिया के व्यवसायों पर असर साफतौर पर देखा जा सकता है, जहां कंपनियां अपने ऑपरेशंस कम कर रही हैं, कर्मचारियों से यह कहा जा रहा है कि वे घरों से काम करें और उत्पादन के लक्ष्य को कम किया जा रहा है।
महामारी की वजह से सामने आई आर्थिक मंदी अलग-अलग देशों में अलग-अलग समय तक चल सकती है। - फोटो : सोशल मीडिया
कोरोना संकट और आत्मनिर्भरता
संयुक्त राष्ट्र की कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवेलपमेंट के अनुसार कोरोना वायरस से प्रभावित दुनिया की 15 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत भी है। चीन में उत्पादन में आई कमी का असर भारत से व्यापार पर भी पड़ा है और इससे भारत की अर्थव्यवस्था को क़रीब 34.8 करोड़ डॉलर तक का नुक़सान उठाना पड़ सकता है।
असल में उद्योगों के मामले में चीन ने दुनिया से अपना लोहा मनवाया है। इलेक्ट्रॉनिक, घरेलू वस्तुएं, कपड़े, अनेक तरह के औजार, खिलौने, दवा और कुछ हद तक वाहनों के व्यवसायों पर उसका वर्चस्व है। मोबाइल, एलईडी, फ्रिज, टीवी जैसे क्षेत्रों में भी उसकी बड़ी धाक है।
पीसीबी (प्रिंटेड सर्किट बोर्ड) का वह सिरमौर है। ऐसे में कोरोना ने चीन को तोड़ दिया जिससे सारी दुनिया को सकते में आ जाना लाजिमी है। देर-सबेर कोरोना वायरस अन्य महामारियों की तरह अंतत: बिदा तो हो जाएगा, लेकिन वह भारत जैसे देश के लिए कुछ सबक भी छोडक़र जाएगा। पिछले कुछ वर्षों में चीन पर हमारी व्यवसायिक और औद्योगिक निर्भरता विदेशी पूंजी के लालच में काफी ज्यादा बढ़ी है। अभी तक भारत बड़े पैमाने पर वे वस्तुएं चीन से आयात कर रहा है । ऐसे में अब भारत को उत्पादन के मामलें में आत्मनिर्भर होना पड़ेगा ।
देश में जब कोरोना संकट शुरु हुआ तब भारत में एक भी पीपीई किट नहीं बनती थी । यही नहीं एन-95 मास्क का नाममात्र उत्पादन होता था। आज भारत में हर दिन दो लाख पीपीई किट और दो लाख एन-95 मास्क बनाए जा रहे हैं। आपदा ने भारत को आगे बढ़ने का एक मौका दिया है।
वास्तव में साल 1991 में आर्थिक सुधारों के बाद पहली बार देश के किसी पीएम ने 'लोकल' स्तर पर मैन्यूफैक्चरिंग की इतनी जोरदार तरीके से वकालत की और इसे आम जनजीवन के मूल मंत्र के तौर पर स्थापित करने का नारा दिया। दुनिया में भारत ड्रग्स एवं फर्मास्यूटिकल उद्योग के मामले में एक बड़ा खिलाड़ी है।
2021 तक वह लगभग 1200 बिलियन डॉलर कीमत के ड्रग्स का निर्यात करने की स्थिति में होगा जो उसकी 5.8 फीसदी विकास दर होगी। फर्मास्यूटिकल्स में भारत की करीब 24 हजार इकाइयां दवा उत्पादन करती हैं। जेनेरिक यानी सस्ती दवाइयों के विश्व उत्पादन का करीब 20 प्रतिशत भारत में होता है। लेकिन हम अपने ही लोगों को सस्ती और प्रभावशाली दवाइयां नहीं दे पाते क्योंकि हमारे दवा उद्योग का फोकस रिसर्च पर कम व्यवसाय पर ज्यादा है।
इस कोरोना महामारी से भारत के लिए दो बड़े सबक है पहला कि दुनिया के किसी भी देश पर हमारी व्यवसायिक निर्भरता कम हो तथा सभी मामलों में हम आत्मनिर्भर बनें और दूसरा जीवन रक्षक दवाओं के शोध व विकास पर ज्यादा ध्यान देना।
संपूर्ण मानवता इस समय एक वैश्विक संकट से जूझ रही है। शायद यह हमारी पीढ़ी का यह सबसे बड़ा संकट है। लेकिन एक बात तो तय है कि कोरोना संकट न केवल हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को नया आकार देगा बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था, राजनीति और संस्कृति को भी नए तरह से गढ़ेगा।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।


Next Story