सम्पादकीय

देशभर में कोरोना के मामले बढ़े, जानें- रिइंफेक्शन और हर्ड इम्यूनिटी का क्या है सच?

Gulabi
10 April 2021 1:38 PM GMT
देशभर में कोरोना के मामले बढ़े, जानें- रिइंफेक्शन और हर्ड इम्यूनिटी का क्या है सच?
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देशभर में कोरोना के मामले बढ़े

पंकज कुमार। देश में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. देश में एक दिन में कोरोना के रिकॉर्ड 1,45,384 नए मामले सामने आए हैं, जिसके बाद अब तक संक्रमित हुए लोगों की कुल संख्या बढ़कर 1,32,05,926 हो गई है. कोरोना से अब तक देश में मारे गए लोगों की कुल संख्या बढ़कर 1,68,436 हो गई है.


कोरोना के लिए वैक्सीन देने का मतलब डेथ में कमी, हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पर कम दबाव और बीमारी की गंभीरता को बेहद कम करना है, इसलिए वैक्सीन लेने के बाद रिइंफेक्शन हो सकता है लेकिन रिइंफेक्शन के बाद भी संक्रमित इंसान में कोरोना की घातकता काफी कम होगी ये तय है. कोरोना के लिए वैक्सीन बेहद जरूरी है और साथ ही वैक्सीन लेने के बाद भी मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी उतना ही जरूरी है, लेकिन सवाल उठता है कि कोरोना को लेकर हम हर्ड इम्यूनिटी के स्तर तक कब पहुंचेंगे या फिर हमें इसके साथ ही जीने की आदत डालनी पड़ेगी.


हर्ड इम्यूनिटी संभव है क्या ?

मीजल्स के लिए 95 फीसदी बच्चों को वैक्सीन वहीं पोलियो के लिए 80 फीसदी बच्चों को वैक्सीन देना जरूरी होता है . इससे ये बीमारियां कंट्रोल हो जाती हैं, लेकिन कोरोना मामले में हर्ड इम्यूनिटी के लिए कितनी फीसदी आबादी को वैक्सीनेट किया जाना चाहिए इस पर निष्कर्ष पर पहुंचना बाकी है.

बिहार के नामचीन पेडियाट्रीयीशियन और चमकी बुखार के ऊपर गहरे शोध करने वाले डॉ अरुण शाह कहते हैं कि डबल डोज वैक्सीन दिए जाने के बाद भी संक्रमित व्यक्ति का वाइरल लोड कितना है और क्या वो अन्य लोगों को संक्रमित कर सकता है, इस पर जांच चल रही है. डॉ शाह आगे कहते हैं कि पूरे डोज के बाद बाद भी संक्रमित होने के बाद संक्रमण की क्षमता पर निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद ही बहुत सारी बातें साफ हो पाएंगीं, इसलिए हर्ड इम्यूनिटी की बात थोड़ी जल्दबाजी है और लोगों को वैक्सीनेट प्राथमिकता के आधार पर करने का मतलब नुकसान को मिनिमाइज करना है.

नोएडा के नामचीन फिजीशीयन डॉ विनय भट्ट कहते हैं कि हर्ड इम्यूनिटी संभव तभी हो सकता है, जब वाइरस का स्वभाव स्टेबल हो जाए और उसमें म्यूटेशन नहीं के बराबर हो, लेकिन अभी वाइरस के नए नए म्यूटेंट सामने आ रहे हैं इसलिए हर्ड इम्यूनिटी के बारे में सोचना अभी जल्दबाजी है. स्वाइन फ्लू से लेकर कई अन्य बीमारियों की भी घातकता धीरे-धीरे सामान्य हुई है और वक्त के बीते दौर के बाद कोरोना भी उसी तरह सामान्य हो जाएगा इसकी उम्मीद विशेषज्ञ लगा रहे हैं. वहीं इसके सामान्य होने तक के समय की अवधि कितना बड़ा यो छोटा होगा साथ ही उस दरमियान नुकसान कितना कम हो इसको लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत पूरी दुनियां निगाहें टिकाएं खड़ी हैं.

मेडिसिन विभाग के ही डॉक्टर डॉ अमित कहते हैं कि दिल्ली के सेरोलॉजिकल सर्वे में 50 फीसदी लोगों को इम्यून बताया जा रहा था, लेकिन वहां भी रिइन्फेक्शन हो रहा है और इसलिए इम्यूनिटी कब तक है या फिर कौन सा स्ट्रेन दोबारा संक्रमित किया है ये पता करना जरूरी है.

डबल डोज के बाद रिइंफेक्शन कितना खतरनाक है?

डबल डोज के बाद भी कई लोग और हेल्थ वकर्स कोरोना पीड़ित हो रहे हैं. रिइंफेक्शन के मामले मिलना अस्वाभाविक नहीं है. कोई भी वैक्सीन रिइंफेक्शन नहीं होने की गारंटी नहीं देता है, लेकिन रिसर्च के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सका है कि वैक्सीन के डबल डोज के बाद भी कुछ मामलों में रिइंफेक्शन हो सकता है, लेकिन उनमें गंभीर खतरे की गुंजाइश नहीं के बराबर है. वैसे कोरोना मामले में रिइंफेक्शन के कुछ मामले अमेरिका में मिले हैं, जो ज्यादा गंभीर हैं लेकिन अभी भी उनकी संख्या नहीं के बराबर है.

वायरोलॉजिस्ट डॉ प्रभात रंजन कहते हैं कि रिइंफेक्शन का कुछ मामले गंभीर भी आ रहे हैं, जिनमें लंग्स भी काफी प्रभावित दिखाई पड़ रहे हैं. वो क्लिनिकल ट्रीटमेंट का रिस्पांस भी अच्छा नहीं दे पा रहे हैं. प्रभात रंजन कहते हैं कि कोविड का व्यवहार पिछले साल की तुलना में काफी बदला हुआ है, इसलिए वैक्सीन लेने के बाद भी लोगों को हर हाल में मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना ही पड़ेगा, तभी उन्हें रिइंफेक्शन से बचाव मिल सकता है.

वैक्सीन के साथ कोविड के अन्य प्रोटोकॉल के प्रति भी बेहद गंभीर होने की जरूरत है, क्योंकि कोविड के नए लक्षण सामने आ रहे हैं और इसलिए वैक्सीन के साथ कोविड के लिए बताए गए अन्य उपायों को घर से लेकर बाहर तक शख्ती से पालन करने की जरूरत है. डॉ विनय भट्ट कहते हैं रिइंफेक्शन खतरनाक है या कम खतरनाक है उसका डाटा तैयार हो रहा है और आईसीएमआर जैसी सरकारी संस्था पुख्ता जानकारी जल्द ही शेयर करेंगी, जो प्रमाणिक होगा और सर्वमान्य भी. लेकिन मैं अपने निजी अनुभव से ऐसा कह सकता हूं कि वैक्सीन देने के बाद रिइंफेक्शन होने पर बीमारी के खतरे कम हो जाते हैं और डेथ सहित तमाम नुकसान बेहद कम हो जाते हैं.

दरअसल डॉ विनय भट्ट के मुताबिक जहां भी कोविड के मामले मिल रहे हैं, वहां लोगों से ये जानकारी ली जा रही है कि उन्हें वैक्सीन का डोज दिया गया था या नहीं और उसके बाद मरीज की हालत को देखकर एक डाटाबेस तैयार किया जा रहा है. जाहिर है कोविड को लेकर बहुत सारी जानकारी अभी समय के गर्भ में छिपी है, क्योंकि कोरोना का स्वरूप और व्यवहार वक्त के साथ बदल रहा है और ऐसे में हर्ड इम्यूनिटी और डबल डोज के बाद रिइन्फेक्शन के ऊपर भी आईसीएमआर समेत स्वास्थ्य विभाग की नजरें टिकी हुई हैं.

वैक्सीन फिर भी इम्यूनिटी के लिए है बेहद जरूरी

देश में अभी 45 साल से ऊपर के सभी लोगों को वैक्सीन दी जा रही है, लेकिन युवा और बच्चों के संक्रमित होने के बाद वैक्सीनेशन के दायरे को बढ़ाने की मांग तेज होने लगी है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल 18 साल से ऊपर और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे 25 साल और उसके ऊपर के लोगों के लिए वैक्सीन दिए जाने की मांग करने लगे हैं. वहीं बच्चों में बढ़ते संक्रमण के बाद बच्चों को भी वैक्सीन दिए जाने पर जोर दिया जाने लगा है. सरकार कोविड वैक्सीन को लेकर गंभीर है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन प्राथमिकता के आधार पर उम्र सीमा तय कर सरकार नुकसान को मिनिमाइज करने का सोच रही है और इसके लिए सरकार का पूरा प्रयास इसी पर आधारित है.

जिन उम्र के लोगों और कोमॉरबिडिटी की बीमारी से पीड़ित लोगों को सुरक्षा पहुंचाने के बाद सरकार और लोगों को भी सुरक्षित करने का गंभीर प्रयास करेगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. इसके लिए वैक्सीन का स्टॉक और साथ ही उसके प्रभाव के साथ-साथ अन्य चीजों का भी ध्यान रखना जरूरी है, जिससे नुकसान कम और फायदा ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिल सके. फिलहाल सरकार के लिए चुनौती वैक्सीन दिए जाने के बाद उपजे हालात से निपटने के साथ साथ कोविड के बदलते तेवर पर भी गौर फरमाने का है. ताकि युवाओं की जरूरत के हिसाब से उन्हें इस दायरे में लाया जा सके.


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