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करीब दो साल के अंतराल पर बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक ऐसे समय हुई है, जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की अहम चुनौती सामने है। दो साल का यह अंतराल भी महत्वपूर्ण है
करीब दो साल के अंतराल पर बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक ऐसे समय हुई है, जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की अहम चुनौती सामने है। दो साल का यह अंतराल भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पार्टी संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक अमूमन तीन महीने के अंतर पर होती है। मगर कोरोना महामारी के साये में गुजरे ये दो साल असाधारण उथल पुथल वाले रहे हैं। आश्चर्य नहीं कि सत्तारूढ़ पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की इस बैठक में ये दोनों पहलू छाये रहे।
मोदी-शाह के युग में चुनाव-दर-चुनाव जीत
कोरोना की दूसरी लहर की समाप्ति और सौ करोड़ से ज्यादा टीके लगाए जाने में कामयाबी की बदौलत पार्टी ने इस मोर्चे पर सरकार की मुक्त कंठ से तारीफ करते हुए उसे एक तरह से फुल मार्क्स दे दिए। जहां तक चुनावी चुनौतियों का सवाल है तो इसमें दो राय नहीं कि मोदी-शाह युग में चुनाव-दर-चुनाव जीत दर्ज कराने में बीजेपी का रेकॉर्ड खासा अच्छा रहा है और यह ट्रेंड बदल गया है या बदल रहा है ऐसा अब भी नहीं कहा जा सकता। इसके कमजोर पड़ने के कुछ संकेत जरूर हाल के दिनों में मिले हैं।
विधानसभा और लोकसभा उपचुनाव
ताजा उदाहरण तीन लोकसभा और 29 विधानसभा चुनाव क्षेत्रों के उपचुनाव नतीजों का है जिनमें बीजेपी का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा। नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में मिली सफलता पर हिमाचल प्रदेश की चारों सीटों में मिली नाकामी भारी रही। पार्टी में इसे लेकर चिंता स्वाभाविक रूप से होगी, मंथन भी चला होगा, लेकिन बीजेपी जैसी बड़ी पार्टियां छोटी नाकामियों को ध्यान में रखते हुए भी बड़ी कामयाबियों पर फोकस करते हुए चलना जानती हैं।
दक्षिण भारत के राज्यों में पैठ बनाने की योजना
इस कार्यकारिणी की बैठक से भी मोटा संदेश यही दिया गया कि पार्टी केरल, आंध्रप्रदेश जैसे उन राज्यों में अपनी पैठ बढ़ाने का काम हाथ में लेगी जहां वह नहीं पहुंच सकी है। पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों के लिहाज से यूपी पार्टी के लिए सबसे अहम है और योगी किसी बीजेपी शासित राज्य के अकेले मुख्यमंत्री रहे जिन्हें इस बैठक में आमंत्रित किया गया था। राजनीतिक प्रस्ताव भी उन्होंने ही पेश किया। बैठक में सरकार की ओर से गरीबों के लिए शुरू की गई कल्याण योजनाओं को तो हाइलाइट किया ही गया, जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधान खत्म करने जैसे कदम की ऐतिहासिकता को भी रेखांकित किया गया।
जम्मू कश्मीर नीति को सफल बताया
2004 से 2014 के बीच आतंकी घटनाओं में मारे गए 2081 लोगों के मुकाबले 2014 से सितंबर 2021 के बीच हुई 239 नागरिकों की मौत के आंकड़ों के सहारे राजनीतिक प्रस्ताव में सरकार की जम्मू कश्मीर नीति को सफल बताया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताते हुए कार्यकर्ताओं को मिशन मोड में लाने का प्रयास किया। बहरहाल, चाहे कोरोना से हुई लड़ाई की बात हो या आतंकवाद को काबू में करने की, पार्टी के इन दावों का असल परीक्षण पार्टी से बाहर के मंचों पर और आखिरकार जनता की अदालत में होना है। और, वहां इन्हें अन्य बातों के अलावा समय की कसौटी से भी गुजरना होगा।
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