सम्पादकीय

कोरोना और टोटके

Gulabi
24 Aug 2021 6:25 AM GMT
कोरोना और टोटके
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कोरोना महामारी की हर लहर जानलेवा साबित हो रही है

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कोरोना महामारी की हर लहर जानलेवा साबित हो रही है। इस महामारी से वही लोग बच पा रहे हैं जिन्होंने चिकित्सा की आधुनिक पद्धतियों और उपायों का प्रयोग किया है। दूसरी ओर, इस महामारी से वे लोग नहीं बच पा रहे हैं जो इसे दैवीय आपदा मान रहे हैं और अंधविश्वास के चक्कर में अप्रमाणित दवा के नाम पर गौ-मूत्र और गोबर का इस्तेमाल कर रहे हैं, टोना-टोटका कर रहे हैं या ओझा-गुनिया व तांत्रिक से झाड़-फूंक करवा रहे हैं। अपने देश में बीमारियों और महामारियों को लेकर आम जनता की समझ को वैज्ञानिक बनाने की दिशा में कोई खास प्रयास नहीं किया ग
या है। पिछली सदी की हैजा, प्लेग महामारी के दौरान स्वामी विवेकानंद और उनकी शिष्या भगिनी निवेदिता ने महामारी से बचने की सलाह दी थी, लेकिन इसके बाद के दिनों में स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता के लिए कोई उल्लेखनीय कदम नहीं उठाए गए। जो कदम उठाए गए उससे बहुत बड़ी आबादी लाभान्वित नहीं हो सकी।
नतीजा यह है कि वे आज भी अनेक बाबाओं, तांत्रिकों और ओझा-गुनियों के चक्कर में फंसकर तबाह हो रहे हैं। देखा गया है कि पढ़े-लिखे लोग भी अंधविश्वास के वशीभूत होकर अनाप-शनाप हरकतें करते हैं। दूसरे देशों के लोगों को यह बात समझ में आ गई है कि कोरोना महामारी की एकमात्र वजह विषाणु हैं, लेकिन अपने देश में कोरोना के खिलाफ जनजागृति अभियानों के जरिए यह बात समझाने की जरूरत है। अगर हम वैज्ञानिक समझ से सोचते-करते होते तो आज कोरोना से जितना नुकसान हुआ है, वह नहीं हुआ होता। इतना कोहराम और हाहाकार भी नहीं होता। इतने लोगों की मौत नहीं हुई होती। उन्हें श्मशानों और कब्रगाहों में अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़ा नहीं होना पड़ता और न ही वे लाशों को नदियों में बहाने के लिए विवश होते। इसी के चलते आज कारोबार की हालत बिगड़ी है और घर-परिवार तबाह हुए हैं, प्रियजन बेसहारा और बच्चे अनाथ हो गए हैं। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं। अभी भी निश्चित नहीं है कि कोरोना से मानवता को कब मुक्ति मिलेगी।
कोरोना की तीसरी लहर के भी आने की संभावना बताई जा रही है। हमें आगामी खतरों के लिए सावधान होने के साथ अंधविश्वास और टोने-टोटके से खुद को मुक्त रखना होगा। कोरोना के फैलाव की शुरुआत पिछले साल जनवरी में ही हो गई थी। समय पर वैज्ञानिकों ने कोरोना की आशंका जाहिर कर चेता दिया था, पर हमने ध्यान नहीं दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी देर करते हुए 11 मार्च को इसे वैश्विक महामारी घोषित किया। हमने वैज्ञानिकों की चेतावनी को हल्के में लिया और खासकर अपने देश में इसे दैवीय आपदा मानकर दूसरे गैर-जरूरी उपाय करते रहे। मास्क लगाने, दूरी बनाए रखने और हाथ धोने जैसे वैज्ञानिक और प्रमाणित उपायों को नकारते रहे। आजादी के पहले भी विभिन्न महामारियों में करोड़ों लोगों की मौतें हुई थीं, क्योंकि अंग्रेजों को भारतीय जनता के स्वास्थ्य से कुछ लेना-देना नहीं था। निरक्षर और अंधविश्वासी जनता दैवीय आपदा मानकर इससे बचाव के अप्रमाणित उपाय करती रहती थी। मौजूदा कोरोना काल में भी लोग उससे मुक्ति के लिए अंधविश्वासी कदम उठाने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। आज जब कोरोना समाप्त नहीं हो रहा है तो हमारे नेता हमें नीम की पत्तियां जलाने, नाक में तिल या नारियल का तेल डालने के साथ गौ-मूत्र पीने, गोबर लेपने और नाक में नींबू का रस डालने जैसी अप्रमाणित सलाह सरेआम दे रहे हैं। इससे बचना होगा।

हेमलता म्हस्के
स्वतंत्र लेखिका
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