सम्पादकीय

कोरोना और रक्त

Triveni
19 Oct 2020 4:03 AM GMT
कोरोना और रक्त
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कोरोना के बारे में किसी भी नई सूचना का सार्वजनिक होना स्वागत के योग्य है। जैसे-जैसे शोध हो रहे हैं, वैसे-वैसे लोगों को ज्यादा से ज्यादा जानकारी होती जा रही है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| कोरोना के बारे में किसी भी नई सूचना का सार्वजनिक होना स्वागत के योग्य है। जैसे-जैसे शोध हो रहे हैं, वैसे-वैसे लोगों को ज्यादा से ज्यादा जानकारी होती जा रही है। ब्लड गु्रप बनाम कोरोना के संबंध पर भी दो अच्छे शोध सामने आए हैं।ब्लड एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित हुए पहले नए शोध से पता चलता है कि ब्लड ग्रुप 'ओ' वाले लोग किसी अन्य रक्त समूह की तुलना में कोविड के जोखिम से ज्यादा सुरक्षित हैं। यदि 'ओ' गु्रप के किसी व्यक्ति को कोरोना हो जाए, तो गंभीर स्थिति में पहुंचने की आशंका बहुत कम होती है।

पहले अध्ययन में शोधकर्ताओं ने डेनमार्क हेल्थ रजिस्ट्री से प्राप्त 4,73,000 लोगों की कोविड जांच संबंधी आंकड़ों की तुलना आम आबादी के 22 लाख लोगों से की है। कोविड पॉजिटिव में 'ओ' ग्रुप वाले लोग सबसे कम पाए गए हैं, जबकि 'ए', 'बी' और 'एबी' समूह के लोगों की संख्या संक्रमितों में ज्यादा है। 'ए', 'बी' और 'एबी' समूह के लोगों के संक्रमित होने की आशंका में परस्पर ज्यादा अंतर नहीं है। विभिन्न जातीय समूहों में ब्लड गु्रप संबंधी आंकडे़ अलग-अलग होते हैं, इसलिए शोधकर्ताओं ने इस बात का ध्यान रखते हुए ही नतीजे निकाले हैं, ताकि व्यापक आबादी में ब्लड गु्रप आधारित खतरे के अंतर को समझा जा सके। हालांकि कनाडा में हुए दूसरे शोध के नतीजे थोड़े अलग हैं। इस शोध में भी 'ओ' ग्रुप के लोगों को ज्यादा सुरक्षित पाया गया है, पर साथ ही, 'बी' गु्रप के लोगों को भी सुरक्षित श्रेणी में रखा गया है। दोनों ही शोध के मुताबिक, ज्यादा खतरा 'ए' और 'एबी' पर दिख रहा है। वेंकूवर में कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हुए 95 रोगियों के आंकड़ों की पड़ताल के बाद पाया गया कि 'ए' और 'एबी' गु्रप के लोगों को आईसीयू और वेंटिलेटर की ज्यादा जरूरत पड़ रही है। साथ ही, इनके फेफड़ों व किडनी पर भी ज्यादा असर हो रहा है।

इन दोनों शोध में जो अंतर दिख रहा है, उस पर और काम करने की जरूरत है। खासकर 'बी' गु्रप की विशेष रूप से जांच करनी चाहिए। डेनमार्क और कनाडा में हुए शोधों में जो अंतर है, संभव है, किसी तीसरे या चौथे देश में अगर शोध हो, तो नतीजे कुछ और आएं। अगर वाकई ब्लड गु्रप से कोरोना का कोई खास रिश्ता है, तो उसकी निर्विवाद पुष्टि होनी चाहिए। किसी पुख्ता या एकरूप नतीजे के अभाव में हमें जल्दी ही किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए। 'ओ' या 'बी' रक्त समूह के लोगों को आश्वस्त नहीं हो जाना चाहिए। शोध ने केवल इतना कहा है कि इन दोनों रक्त समूह के लोगों पर खतरा अपेक्षाकृत कम है। ऐसा कतई नहीं है कि 'बी' या 'ओ' ग्रुप के लोगों की कोरोना से मौत नहीं हो रही है। अभी जो नतीजे आए हैं, उन्हें शुरुआती ही कहना चाहिए, इसलिए ज्यादातर वैज्ञानिक अभी इस पर खामोश हैं और आगे शोध की जरूरत बता रहे हैं, तो कोई अचरज नहीं। कोरोना की शुरुआत से ही ब्लड गु्रप आधारित शोध कर रहे वैज्ञानिकों का उत्साहवद्र्धन करना चाहिए। खासकर, भारत जैसे विविध और घनी आबादी वाले देश में ऐसे अध्ययन की ज्यादा जरूरत है। जिन लोगों की मौत अभी तक कोरोना की वजह से हो चुकी है, उनके विस्तृत आंकडे़ लेकर शोध करना उपयोगी होगा, ताकि साफ तौर पर पता लगे कि क्या वाकई खून से कोरोना का कोई सीधा या टेढ़ा रिश्ता है।

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