सम्पादकीय

नकल पर चोट

Triveni
29 Dec 2022 6:40 AM GMT
नकल पर चोट
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फाइल फोटो 

दिल्ली उच्च न्यायालय ने परीक्षा में नकल को उचित ही प्लेग जैसी महामारी करार दिया है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | दिल्ली उच्च न्यायालय ने परीक्षा में नकल को उचित ही प्लेग जैसी महामारी करार दिया है। अदालत ने निर्देश दिया है कि परीक्षाओं में पास होने के लिए अनुचित साधनों का उपयोग करने वालों के खिलाफ सख्ती बरती जानी चाहिए। नकल के खिलाफ सख्ती का संदेश सभी शिक्षा संस्थानों और छात्रों तक पहुंचना चाहिए। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने साफ कहा है कि किसी भी देश की प्रगति के लिए शैक्षिक प्रणाली की अखंडता अचूक होनी चाहिए। परीक्षा में नकल एक ऐसी महामारी है, जो किसी भी देश के समाज और शिक्षा-व्यवस्था को बर्बाद कर सकती है। यदि इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए या इसके प्रति उदारता दिखाई जाए, तो बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। इसमें संदेह नहीं कि लंबे समय तक अनेक जगहों पर नकल के प्रति उदारता बरती गई है, जिसकी वजह से अनेक लोगों को नकल कोई बुरी बात नहीं लगती है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली अपील को खारिज कर दिया, जिसमें अपीलकर्ता इंजीनियरिंग छात्र ने आयोजित परीक्षाओं को रद्द करने में हस्तक्षेप की मांग की थी। उस छात्र को दूसरे सेमेस्टर की अंतिम परीक्षा में अनुचित साधनों का इस्तेमाल करते पाया गया था। मोटे तौर पर नकल करने वाला छात्र नहीं चाहता था कि नकल का कोई असर उस पर पड़े। नकल करने वाले ज्यादातर छात्र वास्तव में यही सोच रखते हैं कि उनके प्रति किसी न किसी आधार पर उदारता बरती जाए, ताकि उनका साल या समय खराब न जाए। ऐसे नकलची छात्रों को कई बार जरूरत से ज्यादा उदार शिक्षक या परीक्षक मिल ही जाते हैं, जो स्वयं ही बचाव के रास्ते तैयार करते हैं या बच निकलने का कोई उपाय बता देते हैं। इस मामले में भी छात्र का अदालत तक पहुंच जाना, कहीं न कहीं नकल के प्रति उदारता की गुंजाइश तलाशने की हिमाकत है। इस गलत कोशिश को पहले एकल न्यायाधीश ने और अब उच्च अदालत ने खारिज कर दिया है। खंडपीठ ने यह भी कहा है कि जो छात्र अनुचित साधनों का सहारा लेते हैं और बच निकलते हैं, वे राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते।

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