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Written by जनसत्ता: इसी मकसद से प्रधानमंत्री ने सबका साथ सबका विकास का नारा दिया था। समय-समय पर इस जरूरत को रेखांकित करते और इसी के मुताबिक योजनाएं तैयार करने का प्रयास भी करते रहे हैं।
अभी मुंबई में दाउदी बोहरा समुदाय के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेकर जिस तरह उन्होंने इस समुदाय के साथ अपने दशकों पुराने संबंध का उल्लेख किया, उससे एक बार फिर यही जाहिर हुआ कि वे मुसलिम समुदाय से भी उतना ही जुड़ाव महसूस करते हैं, जितना दूसरे समुदायों से। वे बार-बार रेखांकित कर चुके हैं कि देश का सर्वांगीण विकास तब तक संभव नहीं है, जब तक मुसलिम समुदाय को भी साथ लेकर न चला जाए।
जब फिल्म उद्योग पर संकीर्ण हमले शुरू हुए थे, तब भी उन्होंने इस बात पर बल दिया था। मगर भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी संगठन इस तकाजे को कितनी अहमियत देते हैं, यह मूल्यांकन का विषय है। यह आरोप आम है कि भाजपा के नेता और कार्यकर्ता मुसलिम समुदाय को लक्ष्य बना कर उपद्रव करने का प्रयास करते हैं। ऐसे अनेक नेताओं के नाम इस कड़ी में लिए जा सकते हैं। वे प्रधानमंत्री में आए इस बदलाव से कितना प्रभावित होंगे, देखने की बात है।
लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं। इसकी तैयारियों में भाजपा जुट गई है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इसके लिए प्राथमिक रणनीति भी बना ली गई। अभी तक यही तथ्य है कि मुसलमान मतदाता भाजपा से दूरी बनाए रखते हैं। कई जगहों पर इसका नुकसान भी भाजपा को उठाना पड़ता है। इस दृष्टि से कुछ लोग कह सकते हैं कि चुनाव नजदीक आता देख प्रधानमंत्री मुसलमानों को अपने पाले में करने के लिए ऐसा कह रहे हैं और उनके कार्यक्रमों में भी शिरकत कर रहे हैं।
जो भी हो, अगर प्रधानमंत्री का अनुकरण करते हुए भाजपा अपने विचारों और व्यवहार में बदलाव करती है, तो निस्संदेह इसका लाभ उसे मिलेगा। मगर इसके लिए उसे हिंदुत्व का मोह त्यागना पड़ेगा। वह कैसे होगा, इस पर पार्टी को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। प्रधानमंत्री जिस विकास की बात करते हैं, हकीकत यही है कि उससे मुसलिम समुदाय को अलग नहीं किया जा सकता।
औद्योगिक उत्पादन में इस समुदाय का बड़ा योगदान है, जिसे अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। अनेक ऐसे पेशे हैं, जो इसी समुदाय के बल पर टिके हुए हैं, उन्हें विकास की कड़ी से हटाया नहीं जा सकता। प्रधानमंत्री इस हकीकत से वाकिफ हैं, पर भाजपा के दूसरे नेता और कार्यकर्ता इसे कब स्वीकार करेंगे, देखने की बात है।
यह ठीक है कि भाजपा का प्रमुख चेहरा प्रधानमंत्री हैं और उन्हीं के करिश्माई व्यक्तित्व के बल पर पार्टी को सफलता मिलती रही है। मगर पार्टी का टिकाऊपन उसके सैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्षों से तय होता है। व्यवहार में पार्टी के बहुत सारे नेताओं और कार्यकर्ताओं का रुख मुसलिम विरोधी ही नजर आता रहा है।
इसे बदलने का प्रयास पार्टी नेतृत्व ही कर सकता है। इसके लिए सबसे पहले तो अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के व्यवहार में संयम और समन्वय लाने का प्रयास करना होगा। ऐसे में प्रधानमंत्री के सबका साथ और सबका विकास का सूत्र बहुत कारगर साबित हो सकता है। अगर पार्टी ऐसा कर पाती है, तो सचमुच लोगों में यह भरोसा पैदा होगा कि यह केवल नारा नहीं, धरातल पर भी उतर रहा है।
क्रेडिट : jansatta.com