सम्पादकीय

सहकार से निकलेगी समृद्धि की राह: अरविंद मिश्रा

Triveni
16 July 2021 5:38 AM GMT
सहकार से निकलेगी समृद्धि की राह: अरविंद मिश्रा
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केंद्र सरकार में सहकारिता मंत्रालय का गठन देश में सहकारिता से जुड़ी करोड़ों जिंदगियों के लिए सुखद संदेश है।

केंद्र सरकार में सहकारिता मंत्रालय का गठन देश में सहकारिता से जुड़ी करोड़ों जिंदगियों के लिए सुखद संदेश है। मालूम हो कि सहकारी संस्था अमूल की कारोबारी सफलता ने लाखों जिंदगियों को गुणवत्ता प्रदान करने का कार्य किया है। दुग्ध क्रांति के साथ ही इसने किसानों को आय का एक स्थायी स्रोत मुहैया कराया है। शहर से लेकर गांव तक सहकारी बैंकों ने उस तबके तक बैंकिंग सुविधा पहुंचाने का कार्य किया है, जो अर्थव्यवस्था में अंतिम पायदान पर खड़ा है। दूध और चीनी से लेकर दैनिक जरूरत की हर वस्तु और सेवाएं उपलब्ध कराने में सहकारी समितियां आगे बढ़ रही हैं। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की 2019-2020 की रिपोर्ट के मुताबिक सहकारी डेयरी ने 1.7 करोड़ सदस्यों से प्रतिदिन 4.80 करोड़ लीटर दूध खरीदा।

चीनी उत्पादन के क्षेत्र में सहकारी मिलों की हिस्सेदारी लगभग 35 प्रतिशत है। भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 तक देश में 8 लाख 54 हजार 355 सहकारी समितियां थीं। इनमें सदस्यों की संख्या 30 करोड़ से अधिक है। कृषि क्षेत्र में सहकारी समितियां किसानों को बीज, खाद, कीटनाशक और रियायती दर पर ऋण उपलब्ध कराने से लेकर कृषि उत्पादों का उचित मूल्य मुहैया कराने का कार्य करती हैं। मत्स्य पालन, चाय बागानों में कार्य करने वाले श्रमिकों से लेकर बुनकरों की जिंदगी को सहकारी समितियां संवार रही हैं। हमारी जिंदगी को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने वाले 55 क्षेत्रों में आज सहकारी समितियां कार्य कर रही हैं। ग्रामीण इलाकों में सहकारिता की बुनियाद पर स्वास्थ्य क्षेत्र की भी आधारभूत संरचना खड़ी हो रही है। राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम आयुष्मान सहकार योजना संचालित कर रहा है। इसके अंतर्गत ग्रामीण इलाकों में अस्पताल खोलने के लिए सस्ती दर पर कर्ज मुहैया कराया जाना है। सहकारी गतिविधियों पर आधारित उद्यम अब अंतरराज्यीय स्वरूप ग्रहण कर रहे हैं। देश में मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटी की संख्या भी करीब डेढ़ हजार हो चुकी है। सहकारिता के इतने व्यापक क्षेत्र के लिए लंबे समय से प्रशासनिक नियमन, और नीतिगत ढांचा उपलब्ध कराने की मांग चल रही थी।
दरअसल सहकारिता मानव जीवन के उत्थान के लिए नैसर्गिक रूप से व्यवहार में लाई गई वह कार्यसंस्कृति है, जिसमें सबकी भागीदारी को वरीयता दी जाती है। इस व्यवस्था में अभावग्रस्त और शोषित वर्ग को मालिकाना हक के साथ आॢथक प्रकल्प संचालित करने की सुविधा मिलती है। हालांकि सहकार आधारित उद्यम की ये गतिविधियां पूरी तरह साफ-सुथरी और दोषरहित हैं, ऐसा नहीं है। सहकारिता के 120 वर्ष की विकास यात्रा का अध्ययन करने से पता चलता है कि वित्त, मानव संसाधन और नीतिगत स्पष्टता का अभाव इस क्षेत्र की बड़ी चुनौती है। सहकारी संस्थाओं में निर्णय लेने की स्वतंत्रता ने इस क्षेत्र के अवसरों को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कार्यविधि तथा प्रोन्नति संबंधी नीतियों में यहां कई तरह की विसंगतियां हैं। प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां और स्वयं सहायता समूह अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने तथा विपणन व्यवस्था बाधित होने की समस्या से जूझ रहे हैं। जाहिर है, यह सब सरकारी निगरानी के अभाव का परिणाम है। येन केन प्रकारेण कुछ ही परिवार और समूह के सदस्य इन संस्थाओं में निर्वाचित तो कभी मनोनीत होते हैं। राजनीतिक दल कोई भी हो, ये एक दूसरे को खूब उपकृत करते हैं। कई राज्यों में राज्य सहकारी बैंक (अपेक्स बैंक) और संस्थाएं तो अब सिर्फ नेताओं के राजनीतिक पुनर्वास का जरिया बन गई हैं। सहकार जब अपकार में तब्दील हो जाए तो सहकारी संस्था के भविष्य का आकलन किया जा सकता है।
ऐसे में केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय को सबसे पहले सहकारी संस्थाओं को पारदर्शी बनाने पर जोर देना होगा। इससे सहकारी समितियों की कार्यकुशलता बढ़ेगी। अब तक केंद्र में सहकारिता विभाग कृषि मंत्रालय के अधीन था। कृषि मंत्रालय चूंकि स्वयं में एक बड़ा मंत्रालय है इसलिए सहकारिता क्षेत्र में उस पर आवश्यक रूप में ध्यान नहीं दिया जा सका, जिसकी उम्मीद वास्तविक सहकारों को थी।
संवैधानिक रूप से सहकारिता राज्य की सूची का विषय है। 2011 में संविधान के 97वें संशोधन के जरिये केंद्र और राज्यों में सहकारी गतिविधियों को एकरूपता प्रदान करने का प्रयास हुआ। इसी तरह 2002 में मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव एक्ट के जरिये सहकारी संस्था के एक से अधिक राज्यों में परिचालन गतिविधियों से जुड़ा कानून बनाया गया। जाहिर है अब इस क्षेत्र की भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए नए कानून और नीति निर्माण की जरूरत पड़ेगी। सवाल है कि क्या सहकारिता के बढ़ते कदमों को राज्यों के अलग-अलग कानून और पेचीदगियों के भरोसे छोड़ दिया जाए। सहकारिता मंत्रालय के गठन का विरोध कर रहे कुछ नेता इसे संघीय ढांचे पर कथित हमला तो करार दे रहे हैं, लेकिन कानून और नियमन के बिना सहकारिता की सेहत कैसे सुधरेगी, इस पर खामोश हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहकारिता आंदोलन को करीब से देखा है। मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने जिस गुजरात मॉडल को विकसित किया, उसमें सहकारी संस्थाओं की बड़ी भूमिका रही। दुर्भाग्य से सहकारिता की गतिविधियां महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक के अलावा देश के अन्य हिस्सों में उस रूप में सफल नहीं हो सकीं, जिस स्तर पर होनी चाहिए। राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव और अनावश्यक राजनीतिक हस्तक्षेप इसकी बड़ी वजह है। ऐसे में मोदी द्वारा सहकारिता मंत्रालय का जिम्मा गृहमंत्री अमित शाह को सौंपना इस क्षेत्र में व्यापक सुधारों का भावी संकेत है। उम्मीद है कि सहकारिता की दुनिया में एक नई सुबह आएगी, जो सहकार के आत्मा यानी संस्कार, सर्वोदय और समन्वय के जरिये वंचित वर्ग के आॢथक और सामाजिक उद्धार पर केंद्रित हो।


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