सम्पादकीय

रक्षा में सहयोग

Subhi
18 July 2022 5:06 AM GMT
रक्षा में सहयोग
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रूस से एस 400 मिसाइल प्रणाली खरीदने के मुद्दे पर भारत को अब अमेरिकी विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने एक कानूनी संशोधन करके भारत को उस प्रतिबंधित कानून से छूट दे दी है

Written by जनसत्ता: रूस से एस 400 मिसाइल प्रणाली खरीदने के मुद्दे पर भारत को अब अमेरिकी विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने एक कानूनी संशोधन करके भारत को उस प्रतिबंधित कानून से छूट दे दी है जो रूस के साथ रक्षा सौदे में बड़ी अड़चन बना हुआ था। इसे लेकर जब-तब भारत और अमेरिका के रिश्तों में तल्खी भी देखने को मिलती रही। लेकिन अब अगर अमेरिका ने भारत के लिए खासतौर पर कानून में संशोधन कर कोई रास्ता निकाला है तो इसका मतलब साफ है कि वह किसी भी कीमत पर भारत को नाराज नहीं करना चाहता।

उसका यह फैसला इस बात को भी रेखांकित करता है कि वह भारत की रक्षा संबंधी जरूरतों को भी समझ रहा है। बीते शुक्रवार को सांसद रो खन्ना ने भारत को काटसा कानून से अलग रखने का प्रस्ताव रखा था और उसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी थी। हालांकि अभी इस प्रस्ताव को एक व्यापक कानूनी प्रक्रिया से गुजरना होगा। अब यह सीनेट के पास जाएगा। उसके बाद फिर से प्रतिनिधि सभा में संशोधन के लिए आएगा और तब जाकर राष्ट्रपति जो बाइडेन इसे हरी झंडी देंगे। वैसे लगता नहीं है कि सीनेट प्रतिनिधि सभा के इस प्रस्ताव में कोई अड़चन खड़ी करेगी।

दरअसल, रूस, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों से निपटने के लिए अमेरिका कड़े कदम उठाता रहा है। परमाणु हथियार बनाने को लेकर ईरान और उत्तर कोरिया से उसका टकराव चल रहा है। इन दोनों देशों पर उसने कड़े आर्थिक प्रतिबंध भी लगा रखे हैं। रूस से अमेरिका इसलिए खफा है कि उसने क्रीमिया को अपने साथ मिला लिया था। अब यूक्रेन पर हमला अशांति का बड़ा कारण बन गया है।

इसलिए अमेरिका ने 2017 में काउंटर अमेरिकन एडवरसरीज थ्रू सैंक्शन एक्ट यानी काटसा बनाया था। इस कानून के मुताबिक अमेरिका उन सभी देशों पर कार्रवाई करने को स्वतंत्र है जो इन देशों के साथ कारोबार करते हैं। इसीलिए वह भारत पर भी लंबे समय दबाव बनाता रहा कि वह रूस हथियार सौदे न करे। हाल में रूस से कच्चा तेल नहीं खरीदने को लेकर दबाव बनाया। इससे पहले ईरान से तेल नहीं खरीदने को लेकर भारत को मजबूर किया गया था। लेकिन सवाल इस बात का है कि राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों पर अमेरिका दूसरे देशों पर इस तरह के जो दबाव बनाता रहता है, क्या वह उचित है?

इस मुद्दे पर भारत का रुख शुरू से ही स्पष्ट और कड़ा रहा है। भारत ने अमेरिका से दो टूक कह भी दिया था कि राष्ट्रहित उसके लिए सर्वोपरि हैं और इसके लिए वह रूस सहित किसी भी देश से कोई भी रक्षा सौदा करने के लिए स्वतंत्र है और इस मामले में किसी के दबाव में नहीं आएगा। भारत के इस सख्त रवैए का ही नतीजा है कि आज अमेरिका झुकने को मजबूर हुआ।

हालांकि मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में भारत और अमेरिका के रिश्ते जिस तरह प्रगाढ़ हो रहे हैं, उसे देखते हुए अमेरिका भी नहीं चाहता कि रूस के साथ भारत के कारोबारी रिश्तों को टकराव का मुद्दा बनाया जाए। फिर, भारत अमेरिका के नेतृत्व वाले क्वाड समूह का सदस्य भी है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के विस्तारवाद को रोकना भारत और अमेरिका दोनों की जरूरत है। जाहिर है, भारत की अपनी सुरक्षा चिंताएं हैं। रूस से खरीदी जा रही एस 400 मिसाइल प्रणाली पाकिस्तान और चीन की सीमा पर तैनात की जानी है। ऐसे में अमेरिका के इस कदम से एक बड़ा गतिरोध तो दूर हुआ है।


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