सम्पादकीय

सहयोग और सद्भाव

Subhi
2 Oct 2022 11:06 AM GMT
सहयोग और सद्भाव
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परिस्थितियां समय के साथ जिस ढंग से बदली हैं, और वैश्वीकरण का जो चेहरा लोगों के समक्ष उभर रहा है, उसके प्रभाव स्वरूप पिछले कुछ दशकों से विश्व में अनेक लोग और प्रबुद्ध समूह हिंद स्वराज में निहित वैचारिकता, उसकी व्यावहारिकता और उपयोगिता को समझने का प्रयास कर रहे हैं। नियमित अंतराल के पश्चात विश्व में अरब/खराबपतियों की बढ़ती संख्या के आंकड़े प्रकाशित होते हैं।

जगमोहन सिंह राजपूत; परिस्थितियां समय के साथ जिस ढंग से बदली हैं, और वैश्वीकरण का जो चेहरा लोगों के समक्ष उभर रहा है, उसके प्रभाव स्वरूप पिछले कुछ दशकों से विश्व में अनेक लोग और प्रबुद्ध समूह हिंद स्वराज में निहित वैचारिकता, उसकी व्यावहारिकता और उपयोगिता को समझने का प्रयास कर रहे हैं। नियमित अंतराल के पश्चात विश्व में अरब/खराबपतियों की बढ़ती संख्या के आंकड़े प्रकाशित होते हैं।

मगर लगभग उसी तरह गरीबी, बीमारी, भुखमरी, कुपोषण के आंकड़े भी सामने आते रहते हैं। यह लगभग मान लिया गया है कि इसमें वैश्विक स्तर पर ज्यादा कुछ सुधार होने वाला नहीं है। वे राष्ट्र 'अपवाद छोड़ कर' जो पहल कर सकते हैं, युद्ध-जनित बाजार में अपने हथियारों की खपत बढ़ाने को ही विकास मानते हैं।

नए-नए हथियारों की मारक क्षमता बढ़ाने पर शोध करते रहे हैं, अनेकानेक घोषणाओं में हिंसा, युद्ध, आतंकवाद, आदि की निंदा करते हैं, लेकिन उनके कहने और करने में वह पवित्रता और पारदर्शिता नहीं है, जो मानवीय प्रगति के लिए आवश्यक है। हिंसा, युद्ध और आतंकवाद कहीं भी हो रहे हों, उनके प्रभाव से इस विश्व-गांव का कोई भी निवासी अछूता नहीं रह सकता है।

प्रसिद्ध इतिहासकार अर्नाल्ड टायनबी ने कहा कि 'यह भली भांति स्पष्ट हो रहा है कि एक अध्याय, जिसकी शुरुआत पाश्चात्य थी, अगर उसका अंत मानवजाति के आत्मसंहार में नहीं होना है, तो समापन भारतीय होगा… मानव इतिहास के इस सबसे अधिक खतरनाक क्षण में मानवजाति की मुक्ति का अगर कोई रास्ता है तो वह भारतीय है' 'चक्रवर्ती अशोक और महात्मा गांधी का अहिंसा का सिद्धांत और श्री रामकृष्ण परमहंस के धार्मिक सहिष्णुता के उपदेश ही मानवजाति को बचा सकते हैं।'

दुनिया तो यही मानेगी कि भारत स्वयं इस रास्ते पर चल कर विश्व के समक्ष गांधी दर्शन की व्यावहारिकता तथा सामाजिक सद्भाव, पांथिक समरसता और विविधता की स्वीकार्यता बढ़ाने में उसकी सफलता का उदाहरण प्रस्तुत करे। गांधी के विचारों में, उनकी शांति स्थापना की रणनीति में, सामाजिक विषमताओं से संघर्ष करने के लिए तत्परता में आज विश्व के सुधि जनों को एक संभावना दिखाई देती है।

भारत की प्राचीन सभ्यता के इस योगदान से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता कि सत्य, अहिंसा और आध्यात्मिकता का मार्ग भारत की सभ्यता ने ही सबसे पहले न केवल विश्व के समक्ष रखा, बल्कि उसका अनुपालन संभव है, ऐसा करके दिखाया भी। टायनबी जब अशोक का नाम उल्लिखित करते हैं, तब वे हमें गौतमबुद्ध और भगवान महावीर के दर्शन के मूल सूत्र याद करने की प्रेरणा भी देते हैं।

गांधी की वैचारिकता, अवलोकन क्षमता, स्थिति के विश्लेषण का कौशल, उन्हें अपने पारिवारिक परिवेश से ही मिले थे। वे अपनी मां को दिए गए वचनों पर इंग्लैंड में कष्ट सह कर भी अडिग रहे। मगर उसके पहले जब मां ने एक अस्पृश्य बालक से साथ खेलने को मना किया, तो उन्होंने नहीं माना। यह वह बीज था जो दक्षिण अफ्रीका में अंकुरित होकर ऐसा बटवृक्ष बना, जिसकी जड़ें सारे विश्व में फैलीं, और जातिभेद और रंगभेद जैसी अमानवीय प्रथाएं समाप्त हुईं।

बाद का संघर्ष एक अद्भुत उदाहरण है, जिसमें गांधी का नाम, उनका काम और उनकी सफलता एक गोरी महिला जूलियट मार्गन द्वारा प्रविष्ट कराया गया और उस संघर्ष के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया। 16 दिसंबर, 1956 को अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने भेद-विभेद संबंधी सभी नियम निरस्त कर दिए। इसी आंदोलन से उभरे मार्टिन लूथर किंग जूनियर गांधी के भक्त बने। वैश्विक स्तर पर यह सूची बहुत लंबी है, और इसमें अल्बर्ट आइंस्टीन और नेल्सन मंडेला का नाम भी शामिल है।

गांधी ने सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और पांथिक सद्भावना जैसे क्षेत्रों में ऐतिहासिक बदलाव किए, मगर यह विश्लेषण समझना भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है- और रहेगा- कि लोगों ने कैसे-कैसे गांधी को बदला! उन्होंने जो संवाद सामान्य व्यक्ति के साथ स्थापित किया, उसका दूसरा उदाहरण मिलना असंभव लगता है।

गांधी ने जीवन को समग्रता में देखा। आज की समस्याओं को अनेक ढंग से देखा जा सकता है। इनमें एक ढंग यह है कि कुल समस्याएं तीन प्रकार की हैं: मनुष्य की अपने से, मनुष्य की अन्य मनुष्यों से और मनुष्य तथा प्रकृति के बीच के संबंधों से! यह एक अत्यंत सशक्त वर्गीकरण है।

गांधी ने 30 अप्रैल, 1931 को 'यंग इंडिया' में लिखा: 'भारत का भविष्य पश्चिम के रक्तरंजित मार्ग पर नहीं है, जिस पर चलते-चलते पश्चिम थक गया है- उसका भविष्य तो सरल धार्मिक जीवन द्वारा शांति के अहिंसक रास्ते पर चलने में ही है। भारत के सामने इस समय अपनी आत्मा को खोने का खतरा उपस्थित है। और यह संभव नहीं है कि अपनी आत्मा को खोकर भी वह जीवित रह सके।

इसलिए आलसी की तरह उसे लाचारी प्रगट करते हुए ऐसा नहीं कहना चाहिए कि पश्चिम की इस बाढ़ से मैं बच नहीं सकता। अपनी और दुनिया की भलाई के लिए इस बाढ़ को रोकने योग्य शक्तिशाली तो उसे बनना ही पड़ेगा।' इस वक्तव्य का मर्म वही समझ सकता है, जिसने अपने को समझा हो, अपने से सामंजस्य स्थापित कर लिया हो और इतना साहस अर्जित कर लिया हो कि वह अपने जीवन और जीवन पद्धति से संतुष्ट हो।

मनुष्य की मनुष्य से समस्याएं लगभग सब के समक्ष हर स्तर पर उपस्थित हैं। गांधी के पास इसका भी समाधान है। 'यूनेस्को यूनिवर्सल डिक्लेरेशन आफ ह्यूमन राइट्स चार्टर' का मसौदा जब गांधी के पास उनके विचार जानने के लिए आया, तब उन्होंने यूनेस्को के डायरेक्टर जनरल जूलियन हक्सले को जो पत्र मई 1947 में लिखा, वह एक अमूल्य ऐतिहासिक धरोहर बन गया है, जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण वाक्य था कि मेरी 'अनपढ़ किंतु बुद्धिमान' मां ने मुझे बताया था कि हर अधिकार तभी मिलता है जब तदनुसार कर्तव्य का आधार उपलब्ध हो।

यानी अगर हर व्यक्ति अपना कर्तव्य करे, तो सभी को उनके अधिकार स्वत: ही मिल जाएंगे! वैश्विक समस्याओं का तीसरा स्रोत है- मनुष्य और प्रकृति के बीच की संवेदनशील डोर का चिंताजनक स्थिति तक शिथिल होना। पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, तापमान का बढ़ना, पीने के पानी का संकट, जैसी सभी समस्याओं का स्रोत मानुष का प्रकृति के प्रति अपने उत्तरदायित्व का पालन न करना ही है।

यही नहीं, अपने स्वार्थ तथा अनावश्यक संग्रहण के लिए अनियंत्रित शोषण करना अब मानव जाति और पृथ्वी ग्रह के लिए संहारक सिद्ध हो रहा है। ऐसी सभी समस्यायों को लेकर जो भी विमर्श राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होते हैं, उन सभी में बापू का यह वाक्य दोहराया जाता है- प्रकृति के पास सभी की आवश्यकता पूर्ति के लिए संसाधन हैं, लेकिन एक के भी लालच की पूर्ति के लिए नहीं है। उनकी यह वाक्य-त्रयी अगर युवा पीढ़ी आत्मसात कर सके, तो विश्व में शांति, सहयोग और सद्भाव का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।

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