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भूपेंद्र सिंह| पिछले दिनों एक बड़े मतांतरण रैकेट का पता चला। इस्लामिक दावा सेंटर के साये में चल रही मतांतरण की इस मुहिम में लगे इस्लामिक कट्टरपंथियों ने सैकड़ों की संख्या में मूक-बधिरों तक का मतांतरण करा डाला। मतांतरण में लिप्त लोग 'दावा' की उसी इस्लामी संकल्पना पर काम कर रहे थे, जिसे आगे बढ़ाने के लिए हाफिज सईद जमात उद दावा चलाता है। यह चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन इस ओर इंगित करता है कि मतांतरण के अंतरराष्ट्रीय अभियान से जुड़ी संस्थाएं समाज के उन वर्गों का भी गहराई से सर्वेक्षण करती रहती हैं, जिनकी ओर आम जनमानस और सरकारों का ध्यान कम ही जाता है। यह पूरा मामला यह भी दिखाता है कि मतांतरण को अपना मिशन बनाने वाली संस्थाएं मूक-बधिर, दिव्यांग और अनाथ बच्चों के बीच में जो भी काम करती हैं, वह मानवीयता से प्रेरित होकर नहीं, बल्कि अपने मत-मजहब के अनुयायियों की संख्या थोक के भाव बढ़ाने के मकसद से करती हैं। इस्लामिक दावा सेंटर को विदेशी फंडिंग मुहैया कराने वाली कई संस्थाएं तथाकथित रूप से शिक्षा के क्षेत्र में काम करती हैं, लेकिन मतांतरण से जुड़े प्रश्न यहीं तक सीमित नहीं हैं।