सम्पादकीय

जम्मू-कश्मीर में मताधिकार पर तकरार, बरगलाने वाली इस राजनीति से सतर्क रहना जरूरी

Rani Sahu
18 Aug 2022 5:01 PM GMT
जम्मू-कश्मीर में मताधिकार पर तकरार, बरगलाने वाली इस राजनीति से सतर्क रहना जरूरी
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नौकरी, व्यापार आदि के सिलसिले में जम्मू-कश्मीर में रह रहे दूसरे प्रांत के लोगों को मताधिकार देने की मुख्य निर्वाचन अधिकारी की घोषणा पर कुछ राजनीतिक दल जिस तरह हंगामा कर रहे हैं
सोर्स- Jagran
नौकरी, व्यापार आदि के सिलसिले में जम्मू-कश्मीर में रह रहे दूसरे प्रांत के लोगों को मताधिकार देने की मुख्य निर्वाचन अधिकारी की घोषणा पर कुछ राजनीतिक दल जिस तरह हंगामा कर रहे हैं, उसका औचित्य समझना कठिन है। उनकी ओर से ऐसा प्रचारित करने की कोशिश की जा रही है, जैसे निर्वाचन आयोग की ओर से जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) के लिए कोई नई व्यवस्था बनाई जा रही हो।
सच यह है कि वहां वही होने जा रहा है, जैसा शेष देश में होता है। देश के दूसरे हिस्सों में अन्य राज्यों के जो लोग रहने लगते हैं, वे कुछ समय बाद आमतौर पर वहां के मतदाता बन जाते हैं। शर्त केवल यह होती है कि उन्हें अपने गृह राज्य में मतदाता के रूप में अपना पंजीकरण रद कराना होता है। यह कहना कठिन है कि देश के दूसरे हिस्सों के जो लोग जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं, उनमें से कितने इस शर्त का पालन करते हुए यहां के मतदाता बनना चाहेंगे, लेकिन यदि कुछ लोग ऐसा करते हैं तो इसका विरोध नहीं किया जा सकता।
ऐसा लगता है कि पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) और नेशनल कांफ्रेंस (National Confrence) के नेताओं को यह सच स्वीकार करने में अभी भी समस्या आ रही है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर देश का वैसा ही हिस्सा है, जैसे देश के अन्य इलाके। इसका कारण उनकी यह मानसिकता ही हो सकती है कि जम्मू-कश्मीर अभी भी देश के अन्य हिस्सों से अलग है और उसे कुछ विशिष्ट अधिकार प्राप्त हैं। उन्हें न केवल इस मानसिकता का परित्याग करना होगा, बल्कि अपने इस पुराने सोच से बाहर भी आना होगा कि कश्मीर उनकी निजी जागीर है।
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अनुच्छेद 370 और 35-ए ने न केवल इस सोच को पनपने दिया, बल्कि अलगाव और आतंक के बीज बोने के भी काम किए। ये अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर के दलित-जनजाति समुदाय के साथ भेदभाव का जरिया भी बने हुए थे, लेकिन इस पर कश्मीर आधारित दलों के साथ कांग्रेस ने भी कभी ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी।
जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की ओर से की गई घोषणा को लेकर नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला किस तरह राई का पहाड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं, यह इस विषय पर उनकी ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक से प्रकट होता है। इससे खराब रवैया पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती का है। उन्होंने जम्मू कश्मीर में रहने वाले अन्य राज्यों के नागरिकों को भी वोट देने का अधिकार दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए जिस प्रकार यह कहा कि पानी अब सिर से ऊपर जा चुका है, वह लोगों को उकसाने वाला ही बयान है। केंद्र सरकार को लोगों को बरगलाने और माहौल खराब करने वाली इस राजनीति से सतर्क रहना होगा।
Rani Sahu

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