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IAS और IPS को भारत की नौकरशाही में स्टील फ्रेम माना जाता है
IAS और IPS को भारत की नौकरशाही में स्टील फ्रेम माना जाता है. सरकार ने इन अधिकारियों की केंद्र में प्रतिनियुक्ति को प्रभावी बनाने के लिए कैडर नियमों में बदलाव पर राज्यों से सुझाव और सहमति मांगी है. केंद्र सरकार की इस पहल का पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु समेत कई विपक्षी सरकारों ने विरोध किया है.
पश्चिम बंगाल के एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (कैडर) रूल्स 1954 के नियम 6 (1) को रद्द करने की मांग की है. यह नियम मई 1969 में जोड़ा गया था. PIL के अनुसार इस नियम की वजह से केंद्र सरकार राज्यों के मामले में बेवजह हस्तक्षेप कर सकती है, जिससे नौकरशाही की निष्पक्षता प्रभावित होती है.
संविधान में अखिल भारतीय सेवाओं की व्यवस्था
संविधान के अनुच्छेद 312 के तहत अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति यूपीएससी के माध्यम से होने के बाद केंद्र सरकार उनका कैडर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में आवंटित कर देती है. उसके बाद अखिल भारतीय सेवा यानी IAS, IPS और IFS के कुछ अधिकारियों को राज्यों से केंद्र में प्रतिनियुक्ति बुलाया जाता है.
वर्तमान नियमों के अनुसार केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए राज्य सरकार के साथ संबंधित अधिकारी की सहमति भी जरूरी है, जिसमें कई बार विलंब होता है. नियमों में बदलाव के बाद केंद्र सरकार समयबद्ध तरीके से अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर फैसला कर सकेगी. इससे प्रशासनिक व्यवस्था सुदृढ़ होने का दावा किया जा रहा है.
केंद्र में अधिकारियों की कमी और नियमों पर बदलाव की पहल
केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के लिए अधिकारियों की कमी की वजह से नियमों में बदलाव की पहल हुई है. जनवरी 2021 में पूरे देश में लगभग 5200 आईएएस अधिकारी थे, जिनमें 458 केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में थे. केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में अंडर सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी, डायरेक्टर, जॉइंट सेक्रेटरी, एडिशनल सेक्रेटरी से लेकर सेक्रेटरी तक के विभिन्न पदों के लिए सालाना तौर पर प्रतिनियुक्ति पर अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति होती है. सेंट्रल सर्विस के अधिकारी भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में आते हैं पर उनके लिए राज्यों से सहमति की कोई जरूरत नहीं है.
केंद्र सरकार में डायरेक्टर और जॉइंट सेक्रेटरी स्तर के अनेक पद खाली हैं. केंद्र सरकार के डीओपीटी विभाग ने 9 जून 2021 को सभी राज्यों को पत्र लिखकर कहा था कि पर्याप्त मात्रा में केंद्र में अधिकारी नहीं आने से कैडर रिव्यू और प्रशासन की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है. डीओपीटी ने पिछले साल 20 दिसंबर और 27 दिसंबर के बाद इस साल 6 जनवरी को राज्यों से नियमों में बदलाव पर कमेंट भेजने को कहा. उसके बाद डीओपीटी ने 12 जून को सभी राज्यों को पत्र लिखा है. राज्यों को 25 जनवरी तक इस मामले में अपने कमेंट्स भेजना है.
पश्चिम बंगाल और विपक्षी राज्य सरकारों की आपत्ति
अधिकारियों की नियुक्ति और दंडित करने के बारे में केंद्र सरकार के डीओपीटी और गृह मंत्रालय को विशेष अधिकार हासिल हैं. नियम में हो रहे चार बदलावों पर विपक्षी राज्यों को आपत्ति है. नौकरशाही पर राज्य और केंद्र के बीच टकराहट का काफी पुराना इतिहास रहा है. सन 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने तमिलनाडु के 3 आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में बुलाने का आदेश जारी कर दिया, लेकिन जयललिता सरकार ने उन्हें भेजने से मना कर दिया.
2014 में केंद्र सरकार के आदेश पर महिला पुलिस अधिकारी के सीबीआई ज्वॉइन करने पर तमिलनाडु सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया. दिसंबर 2020 में पश्चिम बंगाल में भाजपा अध्यक्ष के काफिले पर हमले के बाद केंद्र सरकार ने 3 आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में भेजने का आदेश जारी किया था, लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें रिलीव करने से मना कर दिया.
नए नियमों से केंद्र सरकार को विशेष अधिकार हासिल हो जाएंगे, जिसकी वजह से विपक्षी राज्य इनका विरोध कर रहे हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर प्रस्तावित नियमों को सहकारी संघवाद के खिलाफ बताया है. तमिलनाडु और केरल जैसे अन्य राज्य भी नए नियमों का विरोध कर रहे हैं. कुछेक राज्यों के अनुसार नए नियमों का इस्तेमाल, राज्यों के अधिकारियों को प्रताड़ित करने के लिए किया जाएगा.
अफसरों की भर्ती बढ़ाकर भी समस्या का समाधान हो सकता है
महामारी और लॉकडाउन के बाद केंद्रीय स्तर पर सरकार की जिम्मेदारियां बढ़ गई है. इसके लिए केंद्र सरकार को नियमित तौर पर सक्षम अधिकारियों की आवश्यकता है. अगर राज्य और केंद्र दोनों के पास अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की कमी है, तो उनकी संख्या पर रिव्यू करके UPSC के माध्यम से भर्ती को बढ़ाया जा सकता है.
इससे केंद्र और राज्य के बीच अफसरों को लेकर चल रही रस्साकशी कम हो सकती है. राज्यों और केंद्र में निष्पक्षता और निर्भीकता से नौकरशाही काम करे, यह संविधान और लोकतंत्र दोनों के लिए जरूरी है. राजनीतिक विरोधाभास की वजह से अफसरों की बलि नहीं चढ़े, यह सुनिश्चित करना सभी दलों के नेताओं की जिम्मेदारी है. ऐसे विवादों का राज्यों और केंद्र के बीच बेहतर संवाद से समाधान हो तो, कोरोना काल के बाद, देश में तेज गति से विकास होगा.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
ब्लॉगर के बारे में
विराग गुप्ता
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