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- चंडीगढ़ पर बढ़ा विवाद :...
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पहले इन कर्मचारियों-अधिकारियों पर पंजाब सर्विस रूल लागू था
प्रवीण कुमार
पहले इन कर्मचारियों-अधिकारियों पर पंजाब सर्विस रूल लागू था. इसके साथ ही चंडीगढ़ पर हकदारी को लेकर राजनीति एक बार फिर गरमा गई है. राजधानी को लेकर पंजाब और हरियाणा का दावा तो पहले से चला आ ही रहा था, हिमाचल प्रदेश भी अब चंडीगढ़ की जमीन पर अपना दावा जता रहा है. ऐसे में सवाल उठना स्वभाविक है कि आखिर चंडीगढ़ पर हकदारी को लेकर बार-बार राजनीति सिर चढ़कर क्यों बोलने लग जाती है? आखिर क्यों बार-बार चंडीगढ़ से जुड़े राज्य और केंद्र अपने-अपने हिस्से की जमीन का कोई राजनीतिक समाधान नहीं निकाल पा रहे हैं?
चंडीगढ़ पर हकदारी को लेकर हैं बहुत सारी गांठें
18 सितंबर 1966 के पंजाब पुनर्गठन एक्ट से ही पंजाब को विभाजित कर हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ अस्तित्व में आया. एक्ट के मुताबिक, चंडीगढ़ के 60 प्रतिशत कर्मचारी पंजाब से और 40 प्रतिशत कर्मचारी हरियाणा से होंगे. दूसरी तरफ हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा समेत सूबे के कई नेता लगातार कहते रहे हैं कि चंडीगढ़ अंबाला जिले का हिस्सा था, जो हरियाणा में है लिहाजा चंडीगढ़ हरियाणा का अभिन्न हिस्सा है. इससे इतर अब हिमाचल प्रदेश ने भी चंडीगढ़ पर अपना दावा जताना शुरू कर दिया है.
दरअसल, 27 सितंबर 2011 को एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पंजाब पुनर्गठन एक्ट के तहत चंडीगढ़ की 7.19 फीसदी जमीन पर हिमाचल का भी हक है. इसका हवाला देते हुए हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कहते हैं कि हिमाचल को भी चंडीगढ़ में उसका वैध हिस्सा मिलना चाहिए. लेकिन बात इतनी सीधी भी नहीं है.
आजादी से पहले पंजाब की राजधानी लाहौर हुआ करती थी. 1947 में जब बंटवारा हुआ तो लाहौर पाकिस्तान के हिस्से में चला गया. लिहाजा हिन्दुस्तान के पंजाब के लिए मार्च 1948 में केंद्र सरकार ने शिवालिक की तहलटी का इलाका नई राजधानी के लिए तय किया. चंडीगढ़ को पूरी प्लानिंग के साथ बनाया और बसाया गया. इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की बड़ी भूमिका रही. 1952 में चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाया गया, लेकिन 1 नवंबर 1966 को जब पंजाब पुनर्गठन एक्ट पास किया गया तो पंजाब से हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ का जन्म हुआ. उस समय चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा की राजधानी बनाया गया. हिमाचल प्रदेश 1970 तक केंद्र शासित प्रदेश रहा.
चंडीगढ़ को उस वक्त दोनों राज्यों की राजधानी इसलिए बनाया गया था, क्योंकि उस समय चंडीगढ़ के पास ही प्रशासनिक ढांचा था. महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि 29 जनवरी 1970 को केंद्र ने घोषणा की थी कि चंडीगढ़ राजधानी परियोजना क्षेत्र, समग्र रूप से पंजाब में जाना चाहिए. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उस वक्त घोषणा की थी कि हरियाणा को अपनी राजधानी मिलेगी. उसके बाद एक वक्त ऐसा भी आया जब लग रहा था कि चंडीगढ़ को पंजाब में शामिल किए जाने से अब कोई नहीं रोक सकता.
दरअसल, पुनर्गठन के 20 साल बाद 1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौता हुआ. इसके तहत चंडीगढ़ को 1986 में पंजाब में स्थानांतरित होना तय हो गया था. लेकिन अचानक कुछ ऐसा विवाद हुआ जिसका समाधान आज तक नहीं हो पाया. कहा तो यही जाता है कि समझौते के तहत दक्षिणी पंजाब के कुछ हिन्दी-भाषी गांवों को हरियाणा और पश्चिम हरियाणा के पंजाबी-भाषी गांवों को पंजाब को देने का विवाद खड़ा हो गया था. इसका निराकरण नहीं होने से राजीव-लोंगोवाल समझौता को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका और चंडीगढ़ पर हकदारी को लेकर सियासी विवाद आज भी जस का तस बना हुआ है.
सेंट्रल सर्विस रूल की घोषणा से गरमाई राजनीति
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ऐलान किया है कि 1 अप्रैल 2022 से चंडीगढ़ के सभी सरकारी कर्मचारी केंद्रीय सेवा नियम यानि सेंट्रल सर्विस रूल के दायरे में लाए जाएंगे. इसका मतलब ये होगा कि चंडीगढ़ के कर्मचारियों को वही सारी सुविधाएं मिलेंगी, जो केंद्रीय कर्मचारियों को मिलती हैं. अमित शाह के इस ऐलान के बाद से सियासत अचानक गरमा गई. पंजाब के नए-नवेले मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र के इस ऐलान पर तुरंत अपना विरोध जताया. मान ने कहा कि केंद्र सरकार चंडीगढ़ प्रशासन में दूसरे राज्यों के अधिकारियों और कर्मचारियों को चरणबद्ध तरीके से नियुक्त कर रही है. ये पंजाब पुनर्गठन एक्ट 1966 के खिलाफ है.
पंजाब लगातार दावा करता रहा है कि चंडीगढ़ उसका अभिन्न हिस्सा है. 1985 में हुए राजीव-लोंगोवाल समझौते में भी इस बात का जिक्र है. केंद्र सरकार के हालिया फैसले पर अकाली दल भी आम आदमी पार्टी के साथ खड़ी हो गई है. अकाली दल का भी कहना है कि इससे पंजाब के राजधानी के अधिकार की दावेदारी कमजोर होगी, क्योंकि अब यहां कर्मचारियों पर पंजाब सर्विस रूल्स लागू नहीं होंगे. चंडीगढ़ के कर्मचारियों को सेंट्रल सर्विस रूल में लाने से कई सारे नियम बदल जाएंगे. चंडीगढ़ के कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र 58 से बढ़कर 60 साल हो जाएगी.
इसके अलावा शिक्षा विभाग के कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र भी बढ़कर 65 साल हो जाएगी. महिला कर्मचारियों को चाइल्ड केयर के लिए 2 साल की छुट्टी भी मिलेगी. पंजाब बीजेपी का कहना है कि चंडीगढ़ के कर्मचारियों के लिए पहले भी सेंट्रल सर्विस रूल लागू होते रहे हैं. एक मार्च 1986 से 31 मार्च 1991 तक चंडीगढ़ के कर्मचारियों ने केंद्रीय सर्विस रूल्स के तहत काम किया था. बाद में पंजाब सरकार का वेतनमान बढ़ा तो चंडीगढ़ के कर्मचारियों ने अपने लिए उसकी मांग की. बीजेपी मानती है कि अब फिर से चंडीगढ़ के कर्मचारी चाहते हैं कि उनके ऊपर सेंट्रल सर्विस रूल लागू हों. अगर पंजाब सरकार चाहती है कि उन कर्मचारियों पर पंजाब सरकार के सर्विस रूल लागू हों तो उसे छठवां वेतन आयोग लागू करना होगा.
फिर भगवंत मान ने चली पंजाब पुनर्गठन एक्ट की चाल
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों चंडीगढ़ के सरकारी कर्मचारियों के लिए पंजाब सर्विस रूल्स की जगह जब सेंट्रल सर्विस रूल लागू करने की बात कही थी, तो बीजेपी को छोड़ पंजाब के सभी राजनीतिक दलों ने एक स्वर में इसका विरोध किया था. फिर क्या था. भगवंत मान को मौका मिला और आनन-फानन में उन्होंने इस संबंध में पंजाब विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर दिया जिसे लगभग सभी प्रमुख दलों ने अपना समर्थन दिया. बीते 1 अप्रैल 2022 को पंजाब विधानसभा को संबोधित करते हुए नवनियुक्त मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र सरकार पर चंडीगढ़ का प्रशासनिक संतुलन बिगाड़ने का आरोप लगाते हुए कहा, 'मैंने पंजाब के लोगों को गारंटी दी है कि मैं राज्य के अधिकारों के लिए लड़ूंगा.
पंजाब पुनर्गठन एक्ट-1966 के जरिए जब पंजाब को विभाजित कर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश अलग राज्य के तौर पर बना तो चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी के तौर पर बने रहने दिया गया था. अभी तक जितने भी राज्यों को विभाजित किया गया, उनमें राजधानी मूल राज्य के पास ही रही. ऐसे में पंजाब पूरी तरह से चंडीगढ़ के ऊपर अपना दावा पेश कर रहा है. हालांकि पंजाब पुनर्गठन एक्ट के तहत चंडीगढ़ को लेकर प्रस्ताव कोई पहली बार विधानसभा में पारित नहीं किया गया है. अपनी राजनीतिक जमीन को बचाए रखने के लिए इससे पहले 6 सरकारें ऐसा प्रस्ताव पारित कर चुकी है, लेकिन बात वही ढाक के तीन पात वाली रही.
कुल मिलाकर चंडीगढ़ पर हकदारी को लेकर की जा रही राजनीति का लब्बोलुआब यही है कि पूर्ण रूप से विकसित राजधानी के तौर पर चंडीगढ़ को ना तो पंजाब छोड़ने को तैयार है और ना ही हरियाणा. दोनों ही राज्यों के अपने-अपने तर्क हैं. ऐसे में समाधान केंद्र सरकार को निकालना चाहिए. लेकिन केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार के केंद्रशासित प्रदेश के तौर पर चंडीगढ़ से अपने राजनीतिक हित जुड़े हैं, लिहाजा चंडीगढ़ पंजाब को दे दिया जाए जैसा कि राजीव-लोंगोवाल समझौते में तय हुआ था, मंजूर नहीं है. चूंकि बीजेपी का पंजाब में कोई राजनीतिक वजूद नहीं है इसलिए वह चंडीगढ़ से अपनी राजनीतिक गतिविधियों को चलाकर पंजाब में अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहती है. दूसरा अगर चंडीगढ़ पंजाब को देने का फैसला केंद्र करती है तो हरियाणा में बीजेपी की राजनीति को बड़ा नुकसान हो सकता है. तो ऐसे में निकट भविष्य में लगात नहीं है कि चंडीगढ़ के स्थायी समाधान को लेकर केंद्र, पंजाब और हरियाणा किसी एक फॉर्मूले पर सहमत हों.
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