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जल के बिना जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती
जल के बिना जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। जल के कारण ही आज मनुष्य जाति पृथ्वी पर विकसित हो सकी है। वर्तमान समय में पर्यावरण, पारिस्थितिकी और जलवायु परिवर्तन की समस्या विश्व समुदाय के समक्ष एक चुनौती बनकर उभरी है। पारिस्थितिकी में संतुलन के लिए प्राचीन भारतीय दर्शन आज भी सबसे अधिक प्रासंगिक है। पारिस्थितिकी संतुलन का संरक्षण हमारी प्राचीन परंपरा रही है। हमारे प्राचीन वैदिक साहित्य में सभी जीवित प्रजातियों को समान रूप से सम्मान देने के उदाहरण हैं। ऋग्वैदिक ऋचाओं में सभी के कल्याण की प्रार्थना की गई है। यही कारण है कि पृथ्वी पर न केवल मनुष्यों का, बल्कि सभी जीव-जंतुओं एवं वनस्पतियों का भी समान अधिकार माना गया है।
वेटलैंड्स हमेशा से भारत की सामाजिक-पारिस्थितिक प्रणाली का अभिन्न अंग रहे हैं। देश के विभिन्न जैव-भौगोलिक क्षेत्रों में फैले इन वेटलैंड्स द्वारा लाखों लोगों का जीवनयापन होता है। इनके संरक्षण की महत्ता तथा विषय की गंभीरता को समझते हुए सभी हितधारकों द्वारा इस दिशा में सतत प्रयास की आवश्यकता है। बचपन से कार्यक्षेत्र यमुना नदी के प्रवाह वाले कुरुक्षेत्र, अंबाला, यमुनानगर और जगाधरी क्षेत्रों में होने के कारण वेटलैंड्स की बहुतायत उपस्थिति का गवाह रहा हूं। आज से तीन-चार दशक पहले तक इस क्षेत्र में तालाबों, बावड़ियों, कुओं, जोहड़ों तथा अन्य जल निकायों की भरमार थी।
बरसात के दिनों में नदियों व नालों में आने वाला पानी पूरे क्षेत्र की धरती को आद्र्र बनाए रखता था, जिससे साल भर के पानी की जरूरत पूरी हो जाती थी। आम जनमानस के जीवन में इन जल निकायों की महत्ता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि हरेक शुभ अवसर पर ये पूजनीय होते थे, लेकिन बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास तथा अन्य मूलभूत जरूरतों को पूरा करने में तथा आधुनिकीकरण की भागदौड़ में प्राकृतिक जल निकायों का प्रवाह जाने-अनजाने में संकुचित कर दिया गया, जिससे ऐसे जल निकाय नष्ट होने लगे।
सरस्वती के उद्गम स्थल आदि बद्री में जहां पहले नदी का पूर्ण प्रवाह हुआ करता था, दुर्भाग्यवश समय के साथ यह जल निकाय समाप्ति के कगार पर आ गया था। हरियाणा की राज्य सरकार और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के प्रयासों से सरस्वती हैरिटेज बोर्ड की स्थापना कर सरस्वती नदी के विकास का प्रयास किया जा रहा है।
विभिन्न प्रकार की जीवनशैली, आस्थाओं एवं भौगोलिक अवस्थाओं वाले विशिष्ट संस्कृति से युक्त इस विविधतापूर्ण देश में पर्यावरण, पारिस्थितिकी और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर एकजुट होकर कार्य किया जा रहा है। नमामि गंगे मिशन की व्यापक एवं विविधतापूर्ण पहलों से आज नदियों के संरक्षण तथा पर्यावरण व पारिस्थितिकी संतुलन को लेकर देशवासियों के भीतर आशा और विश्वास के साथ एक नई चेतना जागृत हुई है।
इस चिंतन ने देश को इस महत्वपूर्ण विषय पर सहजता से एकजुट करने के साथ ही संरक्षण एवं संवर्धन के कार्यो को गति प्रदान की है। नमामि गंगे मिशन अपनी तरह का पहला ऐसा कार्यक्रम है, जहां वेटलैंड संरक्षण कार्य को नदी बेसिन प्रबंधन योजना का अभिन्न अंग बनाया गया है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा किए जा रहे कार्य पूरे देश में नदियों और वेटलैंड संरक्षण के लिए एक मॉडल फ्रेमवर्क के रूप में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
इस वर्ष सरकार द्वारा विज्ञान और समुदाय आधारित कार्यक्रम को भी लॉन्च किया गया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत मां गंगा के ममतामयी आंचल में बसे 50 से ज्यादा जिलों में स्थानीय गंगा प्रहरी प्रत्येक जिले में 10 से ज्यादा वेटलैंड्स की पहचान कर उनके विकास से संबंधित गतिविधियों पर कार्य करेंगे। इन गतिविधियों के आधार पर नमामि गंगे मिशन के माध्यम से वेटलैंड्स संरक्षण को सुनिश्चित किया जाएगा।
वैटलैंड संरक्षण कार्य को कैच द रेन योजना से भी जोड़ा जा रहा है, ताकि वर्षा जल को बेहतर तरीके से संरक्षित कर इसका समुचित तथा सार्थक उपयोग किया जा सके। इस योजना से न केवल भूजल का स्तर बढ़ेगा, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली विनाशकारी बाढ़ पर भी पूरी तरह से अंकुश लगाया जा सकेगा।
आज वेटलैंड्स पर बहुत सी जानकारी उपलब्ध है, रेगुलेटरी फ्रेमवर्क भी मौजूद है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि इनको जमीनी स्तर पर मजबूत किया जाए और लोगों में इस बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए।
किसी भी अभियान की सफलता में जनभागीदारी एक महत्वपूर्ण पहलू होता है जो उस योजना की सफलता का प्रमुख कारण भी। नमामि गंगे को भी सामुदायिक योजना की तरह लागू किया गया है जिसमें जनता की पूर्ण रूप से भागीदारी है। आज जनभागीदारी के कारण वेटलैंड्स संरक्षण समेत घाटों की मरम्मत, तालाबों को पुनर्जीवित करना, नदियों के किनारे पौधरोपण, कचरे की सफाई जैसी समस्यों का समाधान सुनिश्चित हो सका है।
समझना होगा कि वेटलैंड्स हमारी समृद्ध विरासत हैं तथा विश्व विरासत स्थलों की भांति ही इनका संरक्षण आज समय की मांग है। आज वेटलैंड्स और नदियों के संरक्षण की दिशा में स्वयंसेवी संस्थाएं अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। निश्चित रूप से स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग तथा जनभागीदारी द्वारा हम जल्द ही अधिकाधिक सार्थक परिणाम प्राप्त करने में सफल होंगे।
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