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By NI Editorial
प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की सरकार की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि उसने मधेसी जन समुदाय की भावना का ख्याल रखा। उसने नागरिकता कानून संशोधन बिल वापस लेने का फैसला किया है।
नेपाल में आखिरकार मधेसी समुदाय की जीत हुई। ये समुदाय है, जो भारत से जाकर वहां बसा है। इस समुदाय के लोगों के आज भी पारिवारिक और वैवाहिक संबंध भारत- खास कर बिहार में बनते हैँ। इसीलिए वहां जब नागरिकता कानून में संशोधन का बिल लाया गया, तो ये समुदाय सड़कों पर उतर आया। बहरहाल, प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की सरकार की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि उसने इस जन समुदाय की भावना का ख्याल रखा। उसने नागरिकता कानून संशोधन बिल वापस लेने का फैसला किया है। देउबा सरकार ने कहा है कि अब इस विधेयक में शामिल विवादास्पद प्रावधानों को हटा कर विधेयक का नया प्रारूप तैयार किया जाएगा। उसके बाद उसे नए सिरे से संसद में पेश किया जाएगा। नेपाल के नागरिक कानून अधिनियम- 2006 में संशोधन के करने के लिए नया बिल तैयार हुआ था। लेकिन बिना आम सहमति बनाए उसे सात अगस्त 2018 को संसद में पेश किया गया। नतीजतन, देश के कई हिस्सों से उसको लेकर विरोध भड़क उठा। इस कारण बिल को पारित कराने की कार्यवाही रोक दी गई। ये विधेयक पारित होने पर नेपाल से लगे भारतीय क्षेत्रों में वैवाहिक रिश्ता बनाने वाले मधेसी नेपाली परिवारों को भारी दिक्कत होती।
नागरिकता संशोधन कानून में सबसे विवादास्पद प्रावधान नेपाली पुरुषों से विवाह करने वाली विदेशी महिलाओं की नागरिकता के बारे में था। इस प्रावधान पर एक संसदीय समिति ने दो साल तक व्यापक विचार-विमर्श किया। इसके बावजूद इस बारे में प्रमुख राजनीतिक दलों में आम सहमति नहीं बन सकी कि नेपाली पुरुषों से शादी करने वाली विदेशी महिलाओं को नागरिकता देने का नियम क्या हो। आम सहमति के अभाव में संसदीय समिति ने मतदान से फैसला किया था। उसमें बहुमत ने इस प्रावधान का समर्थन किया कि नेपाली पुरुष से विवाह करने वाली विदेशी महिला को सात साल बाद जाकर नेपाल की नागरिकता मिले। इस बारे में अभी भी देश में आम सहमति नहीं है। लेकिन बिल वापस होने के बाद नए सिरे से विचार-विमर्श का रास्ता खुला है। आशा है, नए मिले अवसर का लाभ उठाते हुए सभी पक्ष आम सहमति बनाने की ईमानदार कोशिश करेंगे।
Gulabi Jagat
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