- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- हवा, पानी, मिट्टी और...
डॉ. अनिल प्रकाश जोशी। देश-दुनिया के वन धीरे-धीरे सिकुडऩे शुरू हो चुके हैं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार जबसे उद्योग क्रांति आई है, तब से दुनिया के आधे प्राकृतिक वनों को हम खो चुके हैं। हालत यह है कि सही वन प्रबंधन के अभाव में बाकी के बचे वनों को वनाग्नि लील रही है। वनों की आग का इतिहास वैसे तो सदियों पुराना है, पर पिछले कुछ दशकों से लगातार इस दावानल ने ज्यादा नुकसान पहुंचाने शुरू कर दिए हैं। सारी दुनिया चाहे वह ब्राजील हो या फिर ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका या कनाड़ा आदि में वनाग्नि की घटनाएं बढ़ती चली जा रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन ही है। इसने तापक्रम वृद्धि और वर्षा के व्यवहार को अनियमित कर दिया है। इसकी वजह से किसी भी आग की घटना को तीव्र बल मिल जाता है और वह अनियंत्रित हो जाती है। हमारे देश में भी इन दिनों वन आग की भेंट चढऩे शुरू हो चुके हैं। उत्तराखंड के वन इस बार फिर आग की चपेट में आ गए। वहां टुकड़े-टुकड़ों में आग लगने की सैकड़ों घटनाएं हो चुकी हैं। अभी लगभग ढाई हजार से ज्यादा हेक्टेयर जंगल आग में घिरा रहा, जबकि अभी मई और जून के महीने बचे हुए हैं।