सम्पादकीय

कांग्रेस का नया दौर

Subhi
20 Oct 2022 5:19 AM GMT
कांग्रेस का नया दौर
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आखिर कांग्रेस पार्टी को आज एक नया, पूर्णकालिक, निर्वाचित और गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष मिल गया। करीब 89 फीसदी वोट पाकर मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष घोषित किए गए। उनके इकलौते प्रतिद्वंद्वी शशि थरूर को भी एक हजार से ज्यादा वोट मिले, जो निश्चित रूप से उनकी उपलब्धि कही जाएगी

नवभारत टाइम्स: आखिर कांग्रेस पार्टी को आज एक नया, पूर्णकालिक, निर्वाचित और गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष मिल गया। करीब 89 फीसदी वोट पाकर मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष घोषित किए गए। उनके इकलौते प्रतिद्वंद्वी शशि थरूर को भी एक हजार से ज्यादा वोट मिले, जो निश्चित रूप से उनकी उपलब्धि कही जाएगी। खास तौर पर इस तथ्य के मद्देनजर कि कांग्रेस अध्यक्ष के पिछले कुछ चुनावों में कभी पराजित प्रत्याशियों को इतने वोट नहीं मिले। पार्टी के सामने जहां इन चुनावों को निष्पक्ष और विश्वसनीय बनाने की चुनौती थी, वहीं यह भी सुनिश्चित करना था कि चुनाव पार्टी के अंदर स्थायी किस्म की कड़वाहट न पैदा कर दे। कहना होगा कि पार्टी कमोबेश इन दोनों उद्देश्यों को पूरा करने में कामयाब रही। चाहे चुनाव से पहले वोटर लिस्ट दिखाने की मांग हो या चुनावों के दौरान आई एकाध शिकायतें, पार्टी की चुनाव समिति ने इनका सही समय पर उचित ढंग से निपटारा किया। एकाध बयानों को छोड़ दें तो दोनों पक्षों ने चुनाव प्रचार करते हुए इस बात का ख्याल रखा कि किसी के खिलाफ व्यक्तिगत आरोप न लगाए जाएं। सबसे बड़ी बात यह रही कि गांधी परिवार ने किसी एक प्रत्याशी का खुलकर पक्ष लेने से परहेज किया। इन सबका मिला-जुला परिणाम रहा कि जहां खरगे पार्टी में असंतुष्ट ग्रुप जी 23 के सदस्य माने जाने वाले नेताओं का समर्थन जुटा पाए, वहीं शशि थरूर ने चुनाव नतीजे आने के बाद हार स्वीकार करते हुए कहा कि यह सही मायने में पार्टी में सुधारों की शुरुआत है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो पार्टी अध्यक्ष के ये चुनाव न केवल कांग्रेस पार्टी में नई ताजगी ला सकते हैं बल्कि देश की राजनीतिक व्यवस्था के लिए भी एक प्रस्थान बिंदु साबित हो सकते हैं। इनसे पार्टी के अंदर आंतरिक लोकतंत्र की जरूरत नए सिरे से स्थापित हुई है और अन्य पार्टियों पर भी इस तरह के संगठनात्मक चुनाव करवाने का पॉजिटिव दबाव बनना शुरू हुआ है। लेकिन इन सबका मतलब यह नहीं है कि एक राजनीतिक पार्टी के तौर पर कांग्रेस की आगे की चुनौतियां आसान हुई हैं या उसकी राह के कांटे कम हो गए हैं। नए अध्यक्ष खरगे के सामने गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों की तात्कालिक चुनौती है तो राजस्थान में गहलोत बनाम पायलट विवाद को तर्कसंगत ढंग से सुलझाने की जिम्मेदारी भी है। 2024 के लोकसभा चुनाव तो उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी कसौटी के रूप में मौजूद हैं ही। उम्र को अब तक उनका एक माइनस पॉइंट बताया जा रहा था, लेकिन इसी से निकला अनुभव आगे की चुनौतियों से जूझने में उनका सबसे बड़ा सहायक बनने वाला है। चाहे पार्टी के अंदर निचले स्तर तक फैली गुटबाजी से निपटने की बात हो या अन्य विपक्षी दलों से तालमेल बनाने की, खरगे का लंबा राजनीतिक अनुभव कांग्रेस के काफी काम आ सकता है। देखना है कि वह इसका कितना सकारात्मक इस्तेमाल कर पाते हैं और कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दल उनसे कितना लाभान्वित हो पाते हैं।


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