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कांग्रेस पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस का गोवा में गठबंधन का प्रस्ताव ठुकरा दिया
अजय झा.
मणिपुर में आगामी विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) के मद्देनजर कांग्रेस (Congress) ने छह राजनीतिक पार्टियों के मणिपुर प्रोग्रेसिव सेक्युलर अलायंस (MPSA) के गठन का ऐलान किया है. कांग्रेस पार्टी के अलावा इस नए मोर्चे में लेफ्ट फ्रंट के पांच सहयोगी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (CPM), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI), फॉरवर्ड ब्लॉक और रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (RSP) और जनता दल-सेक्युलर (JD-S) शामिल हैं. इस गठबंधन का गठन राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए किया गया है. मणिपुर के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षक बनाए गए दिग्गज कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने रविवार (6 फरवरी) को राजधानी इंफाल में इसका ऐलान किया.
MPSA ने भी 18 सूत्रीय योजना की घोषणा की है, जो उसके घोषणापत्र के रूप में काम करेगी. बता दें कि मणिपुर में दो चरणों में चुनाव होंगे. पहला चरण 27 फरवरी और दूसरा चरण तीन मार्च को होगा. लेकिन देश की प्रमुख विपक्षी कांग्रेस पार्टी की निगाहें 2024 के आम चुनाव पर टिकी हैं. मणिपुर प्रोग्रेसिव सेक्युलर अलायंस (MPSA) पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी का पूरा प्रभाव नजर आता है, जो पिछले महीने चुनावों का ऐलान होने के बाद भी संयोगवश राज्य का दौरा नहीं कर पाए. वह मणिपुर आखिरी बार मार्च 2019 में आए थे.
कांग्रेस पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस का गोवा में गठबंधन का प्रस्ताव ठुकरा दिया
मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए कांग्रेस पहले ही 54 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर चुकी है. पार्टी ने यह संकेत दिया है कि वह कम से कम 55 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जिसके बाद सीपीआई, सीपीएम, आरएसपी और फॉरवर्ड ब्लॉक के लिए एक-एक सीट बचेगी. कांग्रेस पार्टी जेडी (एस) को भी एक सीट देकर फायदा पहुंचा सकती है, जिससे कर्नाटक के इस राजनीतिक दल को सुदूर मणिपुर में उम्मीदवार मिल सकता है. मणिपुर अलायंस के गठन की घोषणा ने कई लोगों को चौंका दिया, क्योंकि इसे राज्य में कट्टर प्रतिद्वंद्वी भाजपा और कांग्रेस पार्टी के बीच सीधी टक्कर के रूप में देखा जा रहा है. ऐसा तब से हुआ, जब कांग्रेस पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस का गोवा में गठबंधन का प्रस्ताव ठुकरा दिया. अब 40 विधानसभा सीटों वाले गोवा में बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा.
अगर बीजेपी के खिलाफ गठबंधन की जरूरत थी तो बीजेपी विरोधी वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता गोवा में थी. गोवा में विपक्षी दलों के गठबंधन को नकारना और मणिपुर में गठबंधन करना सिर्फ एक तर्क को नकारने की कोशिश माना जा सकता है. दरअसल, कांग्रेस पार्टी 2024 के आम चुनाव के लिए विपक्ष के प्रस्तावित महागठबंधन का नेतृत्व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को सौंपने के लिए तैयार नहीं है.
बनर्जी ने पिछले साल पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के तुरंत बाद महागठबंधन का प्रस्ताव रखा था और तब से वे अपने नाम पर आम सहमति बनाने के लिए काम कर रही हैं, जिससे वह राहुल गांधी की जगह प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार बन सकें और नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सकें. इसके कांग्रेस के लिए गोवा में तृणमूल कांग्रेस की तगड़ी हार सुनिश्चित करना जरूरी हो गया है.
एनपीपी केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा है
गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के कई नेताओं को अपने पाले में लाकर धूमधाम से गोवा चुनाव में एंट्री की थी. हालांकि, ममता बनर्जी की पार्टी ने गोवा में अपनी सीमित स्वीकार्यता को महसूस किया और कांग्रेस के सामने महागठबंधन का प्रस्ताव रखा. कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया, भले ही इससे बीजेपी को फायदा क्यों न हो रहा हो. अनुमान है कि तृणमूल कांग्रेस गोवा में ज्यादा से ज्यादा दो सीटें जीत सकती है. गोवा में अगर टीएमसी की सीटों की संख्या बढ़ती तो ममता बनर्जी का कद राहुल गांधी से बड़ा हो जाता, जो कांग्रेस किसी भी हालत में नहीं चाहती है.
गोवा में जीत की संभावनाओं से इतर कांग्रेस की नजर अगले संसदीय चुनावों पर है. हालांकि, मणिपुर अलायंस से राज्य के मतदाताओं में गलत संकेत जा सकता है. उन्हें यह एहसास हो सकता है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी राज्य में कमजोर हो चुकी है. गौर करने वाली बात यह है कि बीजेपी ने राज्य में चुनाव से पहले कोई भी गठबंधन करने से इनकार कर दिया था. वहीं पड़ोसी राज्य मेघालय में बीजेपी और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की सरकार सत्ता में है और एनपीपी केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा है.
मणिपुर में 15 साल तक सत्ता में रहने के बाद कांग्रेस पार्टी को 2017 में उस वक्त झटका लगा, जब त्रिशंकु विधानसभा में वह 28 सीटें ही जीत सकी और बहुमत से तीन सीटें पीछे रह गई. उस वक्त बीजेपी ने 21 सीटों पर जीत हासिल की थी. इससे पहले कांग्रेस बहुमत हासिल करने के लिए अन्य पार्टियों से बातचीत कर पाती, बीजेपी को एनपीपी और नगा पीपुल्स फ्रंट (एनएफपी) का साथ मिल गया, जिन्होंने चार-चार सीटें जीती थीं. वहीं, एक सीट पर जीत हासिल करने वाली लोक जनशक्ति पार्टी और एक निर्दलीय भी बीजेपी के पक्ष में आ गए, जिसके बाद बीजेपी बहुमत के निशान के पार पहुंच गई और पार्टी ने कांग्रेस के 28 विधायकों में से 13 को अपने खेमे में शामिल कर अपनी स्थिति ज्यादा मजबूत कर ली.
लेफ्ट फ्रंट ने 37 साल लगातार बंगाल पर राज किया था
इस बार भी मणिपुर की चुनावी जंग दो राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वियों के बीच सीधी टक्कर के रूप में देखी जा रही है. हालांकि, कांग्रेस ने लेफ्ट फ्रंट और जेडी (एस) से हाथ मिलाकर यह तय कर दिया है कि ये पार्टियां 2024 में विपक्ष के संयुक्त प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में राहुल गांधी का समर्थन कर रहीं हैं. भले ही मणिपुर में उनकी कोई पकड़ नहीं है, लेकिन इससे ममता बनर्जी की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा जरूर धूमिल हो रही है.
कांग्रेस पार्टी ने उस वक्त काफी लोगों को चौंका दिया था, जब राहुल गांधी ने पिछले साल पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों के दौरान में राज्य इकाई को विश्वास में लिए बिना लेफ्ट फ्रंट के साथ गठबंधन को मंजूरी दे दी थी. इतिहास में पहली बार कांग्रेस पार्टी पश्चिम बंगाल विधानसभा में अपना खाता खोलने में असफल रही, जबकि लेफ्ट फ्रंट एक बार फिर खाली हाथ नजर आया. हालांकि, उन्होंने कहा कि यह सत्ता पैसों के दम पर हासिल की गई है, लेकिन यह भी गौर करने वाली बात है कि लेफ्ट फ्रंट ने 1977 से 2011 तक 37 साल लगातार बंगाल पर राज किया था.
हालांकि, लेफ्ट फ्रंट केरल में अब भी मजबूत है और जेडी (एस) कांग्रेस के लिए अहम है, क्योंकि कर्नाटक में जब अगले साल विधानसभा चुनाव होंगे, तब वे बीजेपी को सत्ता से हटाने में कांग्रेस की मदद कर सकते हैं. अगर कांग्रेस मणिपुर और गोवा हार जाती है तो भी यह उसके लिए ज्यादा मायने नहीं रखेगा, क्योंकि उसका सपना राहुल गांधी को देश का अगला प्रधानमंत्री बनाना है और इसके लिए ममता बनर्जी को रास्ते से हटाना बेहद जरूरी है.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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