सम्पादकीय

कांग्रेस का जोश

Subhi
6 Sep 2022 4:45 AM GMT
कांग्रेस का जोश
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अगले आम चुनाव के मद्देनजर एक बार फिर कांग्रेस ने कमर कस ली है। हालांकि पिछले चुनाव में भी उसने कम जोर-आजमाइश नहीं की थी और कयास लगाए जा रहे थे कि उसमें कुछ जान लौटेगी, मगर नतीजे पहले से बुरे रहे।

Written by जनसत्ता; अगले आम चुनाव के मद्देनजर एक बार फिर कांग्रेस ने कमर कस ली है। हालांकि पिछले चुनाव में भी उसने कम जोर-आजमाइश नहीं की थी और कयास लगाए जा रहे थे कि उसमें कुछ जान लौटेगी, मगर नतीजे पहले से बुरे रहे। इस बार स्थितियां पिछली बार से थोड़ी भिन्न हैं। कांग्रेस ने इस बार नए ढंग से रणनीति बनाई है। शायद उसे अहसास होने लगा है कि इस बार सत्ता विरोधी लहर उठेगी और उसका लाभ उसे ही मिलेगा। इसी उम्मीद में उसने दिल्ली के रामलीला मैदान में 'हल्ला बोल' रैली का आयोजन कर केंद्र सरकार पर तीखा हमला किया।

एक दिन बाद उसकी 'भारत जोड़ो' यात्रा शुरू होने जा रही है, जिसे अनेक सामाजिक संगठनों का समर्थन प्राप्त है। मगर दूसरी तरफ हकीकत यह भी है कि कांग्रेस के कई पुराने असंतुष्ट नेता उसे छोड़ कर जा चुके हैं और कई के जाने के आसार हैं। समूह-23 के नेता अब धीरे-धीरे खिसकने शुरू हो गए हैं। वे न सिर्फ जा रहे हैं, बल्कि कांग्रेस नेतृत्व के विरुद्ध खुल कर आक्रामक रुख भी अख्तियार कर रहे हैं। फिर, कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पार्टी के भीतर अलग कसमसाहट चल रही है।

मगर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस बार कांग्रेस में करो या मरो का जज्बा दिखाई दे रहा है। माना जा रहा है कि उसकी भारत जोड़ो यात्रा से सत्ता विरोधी लहर बनाने में कामयाबी मिलेगी। इसलिए कि इस बार उसके पास कुछ ठोस मुद्दे हैं, जो आम लोग भी महसूस करते हैं। महंगाई और बेरोजगारी दो ऐसे अस्त्र हैं, जिसे कांग्रेस बहुत कुशलता से इस्तेमाल कर रही है। इसके अलावा किसानों, मजदूरों और भ्रष्टाचार से जुड़े मसले भी हैं, जिन्हें वह गिनाने से नहीं चूक रही।

इन मुद्दों पर सरकार के तर्क प्रभावी साबित नहीं हो रहे, इसलिए भी कांग्रेस को बल मिल रहा है। दरअसल, अर्थव्यवस्था की स्थिति लंबे समय से डांवाडोल बनी हुई है। सरकार इसके एक पक्ष को संभालने का प्रयास करती है, तो दूसरा असंतुलित हो जाता है। कोविड काल से पहले ही अर्थव्यवस्था डमगाने लगी थी, मगर सरकार उसके जल्दी संभल जाने का दावा करती रही। कोविड काल की पूर्णबंदी ने अर्थव्यवस्था और रोजी-रोजगार की बुरी गत कर डाली। उससे उबरना अब भी बड़ी चुनौती है। लाखों लोग आज तक रोजगार में नहीं लौट पाए हैं। स्थायी नौकरियों के मामले में सरकार के दावे खोखले साबित हुए हैं। ऐसे में कांग्रेस का बेरोजगारी का मुद्दा सरकार पर बड़ा वार साबित हो सकता है।

रोजगार जाने से लोगों की क्रयशक्ति घटी है, करोड़ों लोगों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा हो गया है। महंगाई पर काबू पाने में सरकार विफल साबित हो रही है। आंकड़ों के खेल में जरूर यह कुछ घटती-बढ़ती रहती है, मगर धरातल पर आम लोगों को रोजमर्रा की चीजों के लिए भी बहुत सोच-समझ कर जेब में हाथ डालना पड़ता है। इसलिए यह मुद्दा भी कांग्रेस के लिए हथियार साबित हो सकता है।

हालांकि महंगाई एक ऐसा मुद्दा है, जो हर विपक्षी दल के लिए सदा से चुनावी हथियार बनता रहा है। मगर असल बात यह कि ये अस्त्र तभी कारगर साबित हो सकते हैं, जब कांग्रेस अपनी अंदरूनी उथल-पुथल से बाहर निकल कर आम मतदाता का विश्वास जीत सके। रैलियां, आंदोलन और यात्राएं कुछ देर को लोगों को जरूर प्रभावित करती हैं, मगर उनके टिकाऊ होना का दावा तभी किया जा सकता है, जब पार्टी पर लोगों का भरोसा हो।


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