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कांग्रेस का दोहरा संकट
सोर्स- Jagran
गुलाम नबी आजाद के त्यागपत्र देने के बाद जिस तरह जम्मू-कश्मीर के तमाम नेताओं ने उनके समर्थन में पार्टी छोड़ दी, उससे कांग्रेस नेतृत्व का चिंतित होना स्वाभाविक है। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस कोई बहुत बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं रह गई थी, लेकिन उसकी एक अहमियत तो थी ही। एक समय गुलाम नबी आजाद वहां के मुख्यमंत्री थे। अब उनके इस्तीफे के बाद इस केंद्र शासित प्रदेश में कांग्रेस की वैसी ही दुर्गति हो सकती है, जैसी पंजाब में अमरिंदर सिंह को किनारे करने के बाद हुई।
चूंकि अमरिंदर सिंह को अपमानित कर मुख्यमंत्री पद से हटाया गया, इसलिए उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का फैसला किया और अपनी नई पार्टी बनाई। हालांकि भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बाद भी उनकी पार्टी खाली हाथ रही, लेकिन उन्होंने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने का काम तो किया ही। गुलाम नबी आजाद भी अपनी नई पार्टी गठित करने जा रहे हैं।
फिलहाल यह कहना कठिन है कि वह नए राजनीतिक दल के रूप में कितने प्रभावी सिद्ध होंगे, लेकिन यह तय है कि वह जम्मू-कश्मीर के आगामी चुनाव में कांग्रेस को कमजोर करने का काम करेंगे। इस तरह कांग्रेस पंजाब के बाद जम्मू-कश्मीर में भी कमजोर होगी- शायद पंजाब से भी ज्यादा, क्योंकि यहां बड़ी संख्या में कांग्रेस नेताओं ने पार्टी छोड़ी है।
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कांग्रेस उन अनेक राज्यों में पहले से ही कमजोर है, जो एक समय उसके गढ़ हुआ करते थे। कई राज्य तो ऐसे हैं, जहां कांग्रेस तीसरे-चौथे नंबर का राजनीतिक दल बनकर रह गई है और अपने सहयोगी दलों की दया और कृपा पर निर्भर है। कांग्रेस की समस्या केवल यह नहीं है कि एक के बाद एक नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं, बल्कि यह भी है कि केंद्र के साथ-साथ राज्यों के स्तर पर भी नया नेतृत्व नहीं उभर पा रहा है। इसका कारण यह है कि जो भी कांग्रेसी क्षत्रप हैं, वे अपने लिए जिसे भी चुनौती बनता हुआ देखते हैं, उन्हें हाशिये पर धकेलने में जुट जाते हैं।
चूंकि अधिकांश क्षत्रप गांधी परिवार के विश्वास पात्र हैं, इसलिए वह उनकी ही अधिक सुनता है। स्पष्ट है कि कांग्रेस दोहरे संकट से जूझ रही है। इस संकट के लिए गांधी परिवार अपने अलावा अन्य किसी को दोष नहीं दे सकता। वह कांग्रेस को निजी जागीर की तरह चला रहा है और इस क्रम में उन नेताओं को प्राथमिकता दे रहा है, जो पार्टी हित के नाम पर परिवार हित की पैरवी करते रहते हैं। इसका प्रमाण इससे मिलता है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होते ही यह माहौल बनाया जाने लगा है कि राहुल गांधी को ही फिर से पार्टी की कमान संभालनी चाहिए।

Rani Sahu
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