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सम्पादकीय
कांग्रेस को करना होगा नए टैलेंट का सम्मान, अब सफल होने के लिए किसी ताकतवर के घर जन्म लेना जरूरी नहीं
Gulabi Jagat
8 April 2022 7:05 AM GMT
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आज अनेक राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि कांग्रेस का फिर से उभार तभी सम्भव है
चेतन भगत का कॉलम:
आज अनेक राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि कांग्रेस का फिर से उभार तभी सम्भव है जब उसके शीर्ष नेतृत्व में कोई नया चेहरा सामने आए। नेहरू-गांधी परिवार की विरासत भले ही अतुलनीय रही हो, लेकिन आज उनके नाम पर लोग वोट नहीं दे रहे हैं, कम से कम राष्ट्रीय स्तर पर तो नहीं। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ब्रांड आज 8 साल की सत्ता के बावजूद ताकतवर बना हुआ है। 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार निश्चित है।
कांग्रेस आज भी यहां-वहां कुछ राज्यों में चुनाव जीत जाती है, अलबत्ता यह तय नहीं है कि इनमें से कितनों में नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर वोट पड़ते हैं। आज से पांच साल पहले तक अनेक विश्लेषकों का मत था कि नेहरू-गांधी परिवार के बिना कांग्रेस टूटकर बिखर जाएगी, लेकिन आज उनकी राय बदल गई है। लेकिन बात तो कुछ नए चेहरों से भी नहीं बनेगी। कांग्रेस को आज सूरत ही नहीं सीरत भी बदलने की जरूरत है।
सबसे बढ़कर आज कांग्रेस को उस चीज को महत्व देने की जरूरत है, जिसे उसने एक अरसा पहले ही महत्व देना छोड़ दिया, और वो है- एक्सीलेंस। चाहे जीवन में हो, किसी कम्पनी में या राजनीतिक पार्टी में, सफलता का एक ही मंत्र है और वह है एक्सीलेंस का पीछा करना। आज तो भारतीय जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में एक्सीलेंस को महत्व देना सीख चुके हैं।
वे अपने आसपास भी एक्सीलेंस को ही देखना चाहते हैं, फिर चाहे वह उनके द्वारा पहने जाने वाले ब्रांड्स में हो या जिन नेताओं को वो वोट देते हैं, उनमें हो। आज भारतीय हर चीज को रेटिंग देते हैं, डिलीवरी बॉय से लेकर ड्राइवरों तक (आशा है वे उन्हें फाइव स्टार देते होंगे)। हम किसी हवाई जहाज में चढ़ते समय एक्सीलेंस की उम्मीद करते हैं।
हम चाहते हैं कि हमारे रेलवे स्टेशन साफ-सुथरे हों और हमारे वैक्सीनेशन सेंटर हमें ज्यादा देर तक बैठाए न रखें। हमें फास्ट डाटा स्पीड चाहिए। हम कोई किताब या टिकट पाने के लिए इंतजार नहीं करना चाहते। हम चाहते हैं कि हमारा ऑनलाइन ऑर्डर किया गया फूड जब हमारे यहां पहुंचे तो वह गर्म हो। हम चाहते हैं कि हमारी फिल्में हमारा इंटरटेनमेंट कर सकें। अगर वो ऐसा नहीं करेंगी तो हम किसी दूसरी फिल्म या किसी दूसरे ओटीटी प्लेटफॉर्म की ओर चले जाएंगे।
हमें नए एयरपोर्ट, एक्सप्रेस-वे और मेट्रो ट्रेन चाहिए। क्या आज भारत में हर चीज अच्छे से की जा रही है? यकीनन नहीं। आज भी भारत में सामान्य जीवन हताश करने वाला है और हमें अभी एक लम्बी दूरी तय करना है। लेकिन फर्क यह है कि अब हम हर चीज पहले से बेहतर चाहते हैं। अब भारतीय एक्सीलेंस का मतलब समझ गए हैं और हर चीज में इसे चाहते हैं। और 2022 के इसी भारत में कांग्रेस नाम की एक पार्टी है, जिसके मन में एक्सीलेंस से ज्यादा एक सरनेम के लिए सम्मान है।
आश्चर्य होता है कि उस सरनेम के आगे कौन कितना झुक सकता है, आज कांग्रेस में इसके सिवा किसी और चीज का महत्व नहीं रह गया है। आज के भारत में एक्सीलेंस-विरोधी होना तो हारने की सबसे अच्छी रणनीति है और अनेक राज्यों के चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन देखकर यही सिद्ध होता है। यही कारण है कि आप शीर्ष पर चाहे जितने चेहरे बदल दो, जब तक कांग्रेस एक्सीलेंस का पीछा करने की कोर-वैल्यू को नहीं अपनाएगी, वह भारतीयों को अपील नहीं कर सकेगी।
जब हम कहते हैं कि आज कांग्रेस टूट चुकी है तो हमारा क्या आशय होता है? इसका यह आशय है कि कांग्रेस की मान्यताएं गड़बड़ हो चुकी हैं। पार्टी में एक्सीलेंस को महत्व नहीं दिया जाता, टैलेंट बरबाद होता रहता है। भारत के लोग यह नहीं चाहते। वे यह देखना चाहते हैं कि टैलेंट को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। वे यह देखना चाहते हैं कि जिन लोगों की कोई पृष्ठभूमि नहीं थी, वे सामने आए और छा गए। क्योंकि बहुतेरे भारतीय ऐसे ही होते हैं। वहीं कांग्रेस में एनटाइटलमेंट, विशेषाधिकार और चाटुकारिता को महत्व दिया जाता है।
लेकिन आज चीजें बदल चुकी हैं। बीते एक साल में भारत में दो दर्जन यूनिकॉर्न कम्पनियां उभरकर सामने आई हैं। यूनिकॉर्न वे कम्पनियां होती हैं, जिनका मूल्यांकन 1 अरब डॉलर से अधिक किया गया हो। ये कम्पनियां साधारण भारतीयों के द्वारा बनाई गई थीं, इनमें से बहुतेरे ऐसे मेधावी युवक थे जिन्होंने एक्सीलेंस का पीछा किया और कभी हार नहीं मानी। ऐसे भारत में वैसी किसी संस्था का क्या महत्व रह जाता है, जिसमें टैलेंट से नफरत की जाती हो और चमचागिरी पर ईनाम दिया जाता हो?
वास्तव में कांग्रेस एक अति-आवश्यक राजनीतिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है। वह विपक्ष की भूमिका भी निभाती है, जिसकी कि एक लोकतंत्र में खासी जरूरत होती है। कांग्रेस को अस्तित्व में बने रहना चाहिए, इसके लिए ये दोनों नैतिक तर्क ही काफी हैं। लेकिन आज के भारत में एक्सीलेंस से घृणा करने वाली संस्था को हम नैतिक रूप से कैसे जस्टिफाई कर सकते हैं? भारतीयों को किसी भी ऐसी संस्था का समर्थन क्यों करना चाहिए, जो उनके टैलेंट को प्रोत्साहित नहीं कर सकती?
दूसरी तरफ भाजपा है, जिसमें प्रतिभाशाली के लिए आगे बढ़ना का रास्ता खुला है। क्या एक्सीलेंस को पुरस्कृत करने के मामले में भाजपा परफेक्ट है? बिलकुल नहीं। वहां भी वंशवाद की राजनीति है। वहां भी कुछ हद तक चापलूसी की संस्कृति है। ऐसा नहीं है कि वहां हर प्रतिभाशाली को पुरस्कार मिलता है, या जिसे पुरस्कार मिले, वह प्रतिभाशाली ही होता है। वहां अभी परफेक्ट मेरिटोक्रेसी नहीं है। लेकिन कम से कम वह दूसरों से बेहतर तो कर ही रही है।
भाजपा से ही कुछ सीख ले कांग्रेस
भाजपा में कई नए चेहरों को महत्वपूर्ण पद दिए गए हैं। सबसे बड़ा उदाहरण तो प्रधानमंत्री ही हैं। ऐसे अनेक मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री हैं, जो जमीन से उठकर यहां तक पहुंचे हैं। जबकि कांग्रेस तो मेरिट को एक बोझ की तरह देखती है। उसे लगता है कि कोई प्रतिभाशाली होगा तो वह मौजूदा व्यवस्था के लिए खतरनाक साबित होगा। जब तक यह नहीं बदलता, तब तक चेहरे बदलने से क्या होगा?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Gulabi Jagat
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