सम्पादकीय

कांग्रेस का श्वेतपत्र

Deepa Sahu
22 Sep 2023 7:01 PM GMT
कांग्रेस का श्वेतपत्र
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नई दिल्ली : उधार के चम्मच से जो उठाई मिठाई, चाशनी फिसल कर मुंह को चस्पां कर गई। उधार के तीरों से खेलती सियासत ने सरकारी खजाने को कितना घायल किया है, इसका मुआयना कांग्रेस सरकार कर रही है। करीब ढाई दशकों के बाद किसी सरकार ने राज्य की आर्थिक स्थिति पर श्वेतपत्र लाने की जहमत उठाई, तो मालूम हुआ कि घाटे की परिस्थितियों में भी उधार की फिजूलखर्ची में बड़ा काम हुआ है। जाहिर है कांग्रेस का श्वेतपत्र अपनी वित्तीय मजबूरियों में पिछली जयराम सरकार की खामियों को विधानसभा पटल पर ले आया है। आते ही खाली खजाने की हालत पर सुक्खू सरकार ने उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्रिहोत्री की अध्यक्षता में जिस समिति का गठन किया था, उससे 48 पन्नों के श्वेतपत्र में पूर्ववर्ती जयराम सरकार की वित्तीय अनियमितताओं को समेट दिया है। अभी तक ऋण उठाने, फिजूल खर्ची का दरबार सजाने और भुगतान का दायित्व छोड़ जाने के आंकड़ों में जयराम सरकार से कांग्रेस का श्वेतपत्र पूछ रहा है। आगे चलकर यह भी बताना होगा कि वित्तीय व्यवस्था के वर्तमान दलदल से मौजूदा सरकार कैसे बाहर निकलेगी। बहरहाल श्वेतपत्र के दस्तावेज बता रहे हैं कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की देनदारियों की नसीहत में वर्तमान कांग्रेस सरकार को कुल 92774 करोड़ चुकाने हैं, जबकि इसमें भी 76603 करोड़ का ऋण एकत्रित हो चुका है। पिछली सरकार ने सत्ता के अंतिम वर्ष 16621 करोड़ के ऋण से लुभावनी पूडिय़ां तली हैं, तो इसका हर्जाना कौन चुकाएगा। हैरानी यह है कि इस ऋण से वे तमाम मांगपत्र रंगे हैं, जो कर्मचारियों की उम्मीदों को यह एहसास कराते हैं कि कल हो न हो, सत्ता अपने मिशन रिपीट की सीढिय़ों के लिए सरकारी खजाने में झाड़ू लगाएगी। मुकेश अग्रिहोत्री की समिति की जांच में आई पूर्व सरकार के डबल इंजन पर भी आरोप हैं।
योजना आयोग के भंग होने से हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य को तीन हजार करोड़ की चपत तथा राजस्व घाटा के अनुदान को लगातार कम कर देने से, वित्त आयोग की ओर से पहाड़ी राज्य के प्रति उदासीनता बढ़ी है। रेवेन्यु डिफिसिट ग्रांट 11431 करोड़ से घट कर मात्र 3257 करोड़ रह गई है। श्वेतपत्र जीएसटी मुआवजे की समाप्ति से आई शून्यता पर भी अंगुली उठा रहा है। उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्रिहोत्री केंद्र की घोषणाओं को थोथा करार देकर पूछते हैं कि मंडी एयरपोर्ट के एक हजार करोड़, कांगड़ा हवाई अड्डे के 400 करोड़ और ज्वालामुखी मंदिर विकास के बीस करोड़ आखिर आए क्यों नहीं। सुक्खू सरकार के टेढ़े प्रश्रों की आंच में पूर्व सरकार की इन्वेस्टर मीट, जनमंच आयोजन तथा अमृत महोत्सव समारोहोां के आयोजन पर खर्च हुए 67 करोड़ आ गए हैं। सत्ता के अंतिम वर्ष की सियासी खुशहाली के लिए खुशफहमी का आलम कमोबेश हर सरकार से फिजूलखर्ची कराता है, लेकिन यहां डिनोटिफाई हुए संस्थानों के साथ कुल नौ सो नए संस्थानों एवं दफ्तरों के खुलने पर आई आपत्तियां, अब जोर शोर से वकालत कर रही हैं। जाहिर है ऐसे तीखे मोड़ पर सदन की भेंट भाजपा का दिन चढ़ गया और विपक्ष ने बाहिष्कार की फिरौती में सरकार के श्वेतपत्र को अनसुना कर दिया। आर्थिक विपन्नता तथा वित्तीय विवशता से जूझ रहे हिमाचल में सियासी तौर पर फिजूलखर्ची के चिट्ठे हर दौर में रहे हैं। अगर आज तेरह बोर्ड निगम, निकम्मे होकर भी सरकारी तिजोरी से माल चुरा रहे हैं, तो यह वर्षों का पाप है।
भाजपा हो या कांग्रेस, सत्ता में आते ही घी शक्कर परोसते-परोसते, उधार के चश्मे से प्रदेश चलाती रही हैं। अनावश्यक कार्यालय, स्कूल, कालेज और चिकित्सा संस्थान ही नहीं, सरकारी कर्मचारियों की संख्या में भी आबादी के अनुपात में राष्ट्रीय आंकड़ों से कहीं अधिक नियुक्तियां हिमाचल में होती हैं। अब तो सत्ता के लाभकारी पदों पर शान से नियुक्तियां करके कोई भी सरकार सियासत को अधिकतम प्रश्रय देने लगी है। बेहतर होगा हिमाचल में सरकार का आकार व व्यय घटाने के उपायों के साथ-साथ फिजूलखर्ची रोकने के समाधान भी सामने लाए जाएं। निस्संदेह श्वेतपत्र से प्रदेश के आर्थिक हालात पर टिप्पणी हुई है। अब इससे बाहर निकलने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति व कठोर कदमों की जरूरत है। केंद्र सरकार भी सियासी मुखौटा पहनकर पहाड़ के दर्द को अनदेखा नहीं कर सकती, लेकिन यह होने लगा है।
सोर्स -divyahimachal.com
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