सम्पादकीय

खुद को कमजोर करती कांग्रेस, राहुल गांधी की राजनीति कांग्रेसी नेताओं को भी नहीं आ रही रास

Tara Tandi
3 Oct 2021 2:59 AM GMT
खुद को कमजोर करती कांग्रेस, राहुल गांधी की राजनीति कांग्रेसी नेताओं को भी नहीं आ रही रास
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पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को जिस तरह अपमानित होकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और इसके चलते उन्होंने पार्टी छोड़ने का एलान कर दिया

जनता से रिश्ता वेबडेस्क|: संजीव तिवारी । पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को जिस तरह अपमानित होकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और इसके चलते उन्होंने पार्टी छोड़ने का एलान कर दिया, वह कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है। एक ऐसे समय जब देश में कांग्रेस का जनाधार लगातार गिर रहा, तब उसके लिए पंजाब एक अहम राज्य है। अमरिंदर सिंह को अपमानित कर जिस तरह नवजोत सिंह सिद्धू को महत्ता दी गई, उससे कांग्रेस और गांधी परिवार की खोखली सोच ही उजागर होती है। प्रियंका गांधी के कहने पर उन्हें पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन वह इतने से ही संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने अध्यक्ष बनने के बाद अमरिंदर सिंह के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। चूंकि इस अभियान को गांधी परिवार ने अपना समर्थन दिया इसलिए अमरिंदर सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। यह बात और रही कि मुख्यमंत्री बनने की लालसा रखने वाले सिद्धू चैन से नहीं बैठे। उनकी यह लालसा बहुत पुरानी है। भाजपा में रहते हुए भी वह अत्यधिक महत्वाकांक्षी थे। वह जब कांग्रेस में आए तो उनकी महत्वाकांक्षा आसमान छूने लगी। अमरिंदर के न चाहते हुए भी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। इसके बाद वह बेलगाम हो गए।

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अमरिंदर सिंह की राहुल-प्रियंका से कभी नहीं बनी। विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक उन्होंने अपने हिसाब से राजनीति की। अपने इस्तीफे के बाद उन्होंने यह कहने में संकोच नहीं किया कि राहुल-प्रियंका अनुभवहीन हैं और उनके सलाहकार उन्हें गुमराह करते रहते हैं। अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद दलित सिख चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बने। पहले तो सिद्धू ने चन्नी के मुख्यमंत्री बनने का स्वागत किया, लेकिन उन्होंने जैसे ही फैसले लेने शुरू किए, वह बिदक गए। दरअसल सिद्धू ने यह सोचा था कि वह चन्नी को अपने हिसाब से नियंत्रित करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चन्नी ने उनकी कठपुतली बनने से इन्कार कर दिया। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों की अपने हिसाब से नियुक्तियां और मंत्रियों के विभागों का बंटवारा करना शुरू कर दिया। इससे खफा होकर सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया। ऐसा करके उन्होंने अपने अस्थिर चरित्र को ही सामने लाने का काम किया। उनके बारे में अमरिंदर सिंह की यह टिप्पणी सही साबित हुई कि वह टीम प्लेयर नहीं हैं और अस्थिर स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि वह बतौर क्रिकेटर किस तरह इंग्लैंड का दौरा अधूरा छोड़कर चले आए थे। उन्होंने चरणजीत सिंह चन्नी सरकार के खिलाफ बगावत कर न केवल अपनी, बल्कि कांग्रेस नेतृत्व और खासकर गांधी परिवार की भी फजीहत की। यही कारण रहा कि उन्हें समझाने-बुझाने की कोशिश नहीं की गई। हालात को भांपते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री चन्नी से मुलाकात की, लेकिन लगता नहीं कि वह उनकी सारी बातें मानने के लिए राजी हुए हैं। नि:संदेह सिद्धू का अपना एक खेमा है, लेकिन पंजाब में उनके विरोधी भी हैं।

पंजाब कांग्रेस में उठापटक के बीच जिस तरह जी-23 समूह के नेता सक्रिय हुए, उससे यही पता चलता है कि कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं। जहां इस समूह के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने यह सवाल पूछा कि जब कोई अध्यक्ष नहीं तो फैसले कौन ले रहा है, वहीं गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाने की मांग की। इसके बाद कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का एक समूह सिब्बल के घर जा धमका। हालांकि इस घटना की कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने आलोचना की, लेकिन लगता नहीं कि इससे गांधी परिवार अपनी रीति-नीति बदलेगा। यह साफ है कि राहुल गांधी परोक्ष रूप से कांग्रेस को चला रहे हैं और सोनिया गांधी उनका हर तरह से साथ दे रही हैं। राहुल गांधी की राजनीति को समझना कठिन है। वह भाजपा से लड़ने की बातें तो खूब करते हैं, लेकिन अपना घर नहीं संभाल पा रहे हैं। वह मोदी सरकार पर नित नया आरोप मढ़ते हैं, लेकिन किसी समस्या का समाधान नहीं बताते। समाजवादी सोच से ग्रस्त राहुल अब तो साम्यवादी सोच से भी जकड़ते जा रहे हैं। इसका ताजा प्रमाण कन्हैया कुमार का कांग्रेस में शामिल होना है। उनकी एक मात्र विशेषता मोदी को गाली देना और उद्योग-व्यापार जगत के लोगों पर निशाना साधना है। यही काम एक अर्से से राहुल भी कर रहे हैं। कन्हैया कुमार वाली मानसिकता से जिग्नेश मेवाणी भी लैस हैं। इन दोनों नेताओं की तरह राहुल को भी यह लगता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधने से उन्हें राजनीतिक लाभ होगा। वह यह समझने को तैयार नहीं कि इससे न तो उन्हें कोई लाभ हो रहा है और न ही प्रधानमंत्री की छवि प्रभावित हो रही है।

अब यह और साफ है कि राहुल गांधी की राजनीति खुद कांग्रेसी नेताओं को भी रास नहीं आ रही है। इसका प्रमाण केवल पंजाब की उठापटक ही नहीं, बल्कि जी-23 गुट के नेताओं की ओर से उन पर निशाना साधना है। राहुल की मनमानी और चाटुकारों को तरजीह देने वाली राजनीति के कारण ही कांग्रेस के एक बाद एक नेता बाहर जा रहे हैं। पिछले दिनों केरल और गोवा के कांग्रेसी नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। इसके पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद कांग्रेस छोड़ चुके हैं। सचिन पायलट भी नाराज हैं। अभी पंजाब का झगड़ा सुलझा नहीं हैं और उधर छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी विधायकों का मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रति असंतोष बढ़ता जा रहा है। यह और कुछ नहीं कांग्रेस में बिखराव का संकेत है। इसके लिए राहुल और प्रियंका गांधी ही जिम्मेदार हैं, जो पार्टी को निजी जागीर की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। दोनों ही राजनीति के प्रति गंभीर नहीं, इसका प्रमाण बिना पार्टी की सहमति के बड़े फैसले लेना है। कांग्रेस का बिखराव इसलिए ठीक नहीं, क्योंकि देश को उसके जैसे राष्ट्रीय दल की जरूरत है, लेकिन इसकी पूíत कांग्रेस को निजी कंपनी की तरह चलाने से नहीं हो सकती। दुर्भाग्य से राहुल और प्रियंका यही कर रहे हैं। वे कांग्रेस को ही नहीं, भारतीय लोकतंत्र को भी कमजोर कर रहे हैं। एक अर्से से कांग्रेस की जमीन पर ऐसे क्षेत्रीय दल काबिज होते जा रहे हैं, जिनकी कोई राष्ट्रीय दृष्टि नहीं। अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ने का एलान करते हुए अपना नया दल बनाने के संकेत दिए हैं। इसका मतलब है कि पंजाब में भी कांग्रेस कमजोर होगी। यदि ऐसा होता है तो इसके लिए राहुल और प्रियंका के अलावा और कोई जिम्मेदार नहीं होगा।


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