सम्पादकीय

सामने से दूर होती कांग्रेस

Rani Sahu
19 April 2022 7:17 PM GMT
सामने से दूर होती कांग्रेस
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मेहनत और मंसूबों के बल पर राजनीति का हिमाचली इतिहास करवट ले रहा है

मेहनत और मंसूबों के बल पर राजनीति का हिमाचली इतिहास करवट ले रहा है तथा इस तराजू पर फिर आम आदमी पार्टी और भाजपा का आमना-सामना हो रहा है। यहां बाईस और तेईस के फेर में दोनों पार्टियां एक-दूसरे के अरमानों को अडं़गा लगाने की रणनीति पर मंडी से कांगड़ा पहंुच गईं, लेकिन कांग्रेस को अपने सियासी अमृत पर भरोसा है। भले ही पिछलग्गू बन कर जोगिंद्रनगर, इंदौरा व झंडूता विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस 28 अप्रैल से अपना अभियान शुरू कर रही है, लेकिन यह कोई जवाब नहीं है। जिस कला से आप के संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हिमाचल का राजनीतिक तूफान सिर पर ओढ़ा है या भाजपा ने खुद को बुलंद किया है, उसके मुकाबले कांग्रेस अति फिसड्डी तथा किंकर्त्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है। पता नहीं कांग्रेस को हांक कौन रहा है। कम से कम पार्टी अपनी जिजीविषा को प्रकट करती हुई भी प्रतीत नहीं हो रही है। मंडी की गलियों में जब केजरीवाल घूम रहे थे, उसी समय अपनी छवि के रास्ते मुख्यमंत्री ने जिला की एकतरह से नाकाबंदी कर रखी थी। इस तरह 23 अप्रैल के कांगड़ा दौरे पर केजरीवाल के निकलने से पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा 22 अप्रैल को ही रोड शो कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी का सूर्योदय होने से पहले ही भाजपा ने काली चादर बिछा दी है, ताकि कोई चमत्कार न हो।

ऐसे में जबकि दो पार्टियां हर मुकाबले में आमने-सामने दिखाई दे रही हैं, कांग्रेस को क्यों बार-बार सांप सूंघ रहा है। न मंडी से सीखे और न ही कांग्रेस के पास कांगड़ा दुर्ग में अपनी हस्ती दिखाने का कोई इरादा झलक रहा है। क्या आज भी कांग्रेस का आलाकमान यह समझता है कि उसके दिव्य दर्शन से ही समीकरण बदल जाएंगे या अदला बदली की परंपराओं में पार्टी की नैया पार हो जाएगी। इस बीच पोस्टर वार के जरिए नेताओं के बीच पनप रहे द्वंद्व जरूर मुखातिब हैं और इनसे पता चल रहा है कि पार्टी के लिए चुनाव में किसकी कितनी जवाबदेही बची है। अपने-अपने ताल ठोंक अभियान में भाजपा और आप तो दिखाई दे रही हैं, लेकिन कांग्रेस के चबूतरे पर सन्नाटा पसरा है। इस स्थिति में कितने पंजाब, कितने उत्तराखंड या गोवा देख सकते हैं। आश्चर्य यह कि कांग्रेस का मिशन रिपीट पंजाब के कब्रिस्तान से यह तो सीख चुका है कि किस तरह बर्बादी की राह आसान हो सकती है। आरंभ में भले ही आप को मिल रहा समर्थन या पार्टी में शामिल हो रहे कार्यकर्ता दिखाई न दें, लेकिन दिल्ली और पंजाब की राह बताती है कि आम आदमी पार्टी के लिए कांग्रेस को निगलना आसान है।
हिमाचल में चुनावी चर्चाओं का दस्तूर इस समय 'आप' को एक संभावना और कड़े विकल्प के रूप में देख रहा है। मंडी के बाद कांगड़ा में केजरीवाल आगमन ने यह कयास बढ़ा दिया है कि उनकी पार्टी ही तीसरे मोर्चे की परिकल्पना को मुकम्मल करेगी। यह समुद्र मंथन सरीखा प्रयास बन गया, तो पंजाब की बदलती फिजाएं यहां आकर गौण नहीं हो सकतीं। हिमाचल के हर फैसले को अब 'आप' के नजरिए से परखा जा रहा है, तो मुफ्त की बिजली और मुफ्त के पानी में लकीरें तो उभरेंगी ही। एक अजीब सी पड़ताल का दौर अगर 'आप' खड़ा कर पाती है, तो भाजपा की सत्ता सफाई देती ही रह जाएगी, लेकिन मुकाबला सीधा हो गया तो कांग्रेस क्या करेगी। उत्तर प्रदेश में मेहनत का असर गंवा चुकी कांग्रेस के लिए हिमाचल में अपनी स्थिति बचाने का इरादा कमजोर हो रहा है। खंभे और खूंटों पर सवार नेताओं की पार्टी बनकर भी कांग्रेस के लिए अगर 'आप' का कोई जवाब नहीं, तो कहीं जनता भाजपा को आम आदमी पार्टी के सामने पेश न कर दे। निश्चित रूप से 'आप' जगह घेर रही है, तो सिकुड़ने के लिए कांग्रेस तैयार रहे। ज्यादा से ज्यादा पार्टी अपने प्रदेशाध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी को बचा सकती है, लेकिन उस युद्ध में कैसे कूदेगी जो भाजपा बनाम 'आप' के बीच होता जा रहा है। ऐसी विकट परिस्थिति और लगातार दो रैलियों के बाद 'आप' की पहली सफलता यही है कि उसे जनता व भाजपा गंभीरता से ले रही है, जबकि कांग्रेस अपने ही प्रश्नों का उत्तर नहीं ढूंढ पा रही है।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

Rani Sahu

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