सम्पादकीय

वास्तविक चुनौती से मुंह मोड़ती कांग्रेस, भारत जोड़ो यात्रा कर रही पार्टी के लिए 'दिल्ली अभी दूर' है

Rani Sahu
15 Sep 2022 5:50 PM GMT
वास्तविक चुनौती से मुंह मोड़ती कांग्रेस, भारत जोड़ो यात्रा कर रही पार्टी के लिए दिल्ली अभी दूर है
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सोर्स- Jagran
संदीप घोष : गत सप्ताह बड़े जोर-शोर से कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' शुरू हुई। इससे पार्टी समर्थकों, कार्यकर्ताओं और इंटरनेट मीडिया योद्धाओं में नए उत्साह का संचार हुआ है। इस दौरान राहुल गांधी ने भी नई ऊर्जा और सक्रियता दिखाई है। अमूमन किसी भी राजनीतिक गतिविधि का आकलन भीड़ और संसाधनों के जुटान से लगाया जाता है। इन दोनों पैमानों पर यात्रा ने कांग्रेस के लिए अभी तक अच्छे संकेत दिए हैं। संभव है कि इसकी एक वजह यही हो यह यात्रा का आरंभिक दौर है। दूसरा तमिलनाडु से शुरू होकर इस समय वह केरल में है, जहां कांग्रेस पारंपरिक रूप से मजबूत रही है। बहरहाल, कांग्रेस के हालिया लचर प्रदर्शन को देखते हुए यात्रा को मिल रही प्रतिक्रिया पार्टी को प्रोत्साहित करने वाली है। इसके बावजूद एक सवाल कायम है कि क्या अगले आम चुनाव से पहले खुद को मजबूत करने में जुटी कांग्रेस के लिए भारत जोड़ो यात्रा जैसी मुहिम ही पर्याप्त होगी। कई पहलुओं को देखते हुए इसका अनुमान लगाना कठिन है।
यह यात्रा एक तरह से राहुल गांधी को नए सिर से 'लांच' करने की कवायद दिखती है। इसीलिए वही इसके केंद्र में हैं और यह रणनीति उचित भी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि राहुल की मौजूदगी से ही यात्रा के प्रति इतनी दिलचस्पी जग रही है। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि फिलहाल वही देश भर में पार्टी के लिए भीड़ जुटाने वाले सबसे बड़े नेता हैं। हालांकि उन्हें स्वयं पर पूरा फोकस रखने में कोई गुरेज नहीं, लेकिन इसके बावजूद वह इस अभियान के नेतृत्वकर्ता की औपचारिक भूमिका स्वीकार करने के लिए भी तैयार नहीं दिखते।
इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि यात्रा कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव से ठीक पहले हो रही है, जिस चुनाव में उतरने के लिए राहुल ने अभी तक हामी नहीं भरी है। यह मानते हुए कि वह इस रुख पर अभी भी कायम हैं, तो राहुल के लिए छवि निर्माण की इतनी बड़ी कवायद के बाद नए अध्यक्ष को अपनी जिम्मेदारी को प्रभावी रूप से संभालना मुश्किल होगा।
इस प्रकार के जन जुड़ाव वाले अभियानों के वास्तविक लाभ स्थानीय और राज्य संगठनों से जुड़े होते हैं, जिनमें राष्ट्रीय स्तर के नेता द्वारा सकारात्मक भावनाएं भुनाने का पहलू समाहित होता है। जैसा कि भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी की राम मंदिर रथ यात्रा के साथ किया था। कांग्रेस के लिए मुश्किल यही है कि इस समय राज्यों में उसका सांगठनिक ढांचा लुंजपुंज अवस्था में है और क्षत्रप एक दूसरे से लड़ने पर आमादा हैं। इसके भी कोई संकेत नहीं कि जिन क्षेत्रों से यह यात्रा गुजर रही है, वहां स्थानीय सांगठनिक मुद्दे सुलझ जाएंगे।
खासतौर से यह देखते हुए कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व स्वयं नए अध्यक्ष के लंबित चुनाव में उलझाव से जूझ रहा है। इस प्रकार के व्यापक जनसंपर्क अभियान का पार्टियां चुनावी लाभ उठा सकती हैं, मगर भारत जोड़ो यात्रा का मंतव्य कुछ अलग दिखता है। उसने गुजरात और हिमाचल जैसे उन राज्यों से स्वयं को दूर रखा है, जहां जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। वहीं इसके कारण भी ज्ञात नहीं कि आखिर किस वजह से लोकसभा की 20 सीटों वाले राज्य केरल में यह यात्रा 18 दिनों तक निकलेगी, वहीं 80 लोकसभा क्षेत्रों वाले उत्तर प्रदेश में केवल दो दिन। पार्टी के रणनीतिकार जब तक किसी और योजना के साथ आगे नहीं आते, मसलन उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कोई समांतर मुहिम चलाई जाए, तब तक इसके पीछे का तर्क समझना मुश्किल है।
यह भी एक पहेली है कि इस यात्रा के आरंभ में तो राष्ट्रीय कद के नेताओं का जमावड़ा देखा गया, लेकिन बाद में वरिष्ठ एवं जनाधार वाले नेता नदारद दिख रहे हैं। शायद यह सुनियोजित रूप से किया गया हो, ताकि पूरा फोकस केवल राहुल पर रहे। पार्टी की ओर से जो फोटो जारी किए जा रहे हैं, उनमें भी राहुल ही आम लोगों से चर्चा करते हुए दिखाई देते हैं। यह भी उन्हें 'जन-नेता' के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। हालांकि ऐसा करके नेतृत्व की एकता और गहराई को दर्शाने का बड़ा अवसर गंवा दिया गया। वहीं योगेंद्र यादव जैसे 'बाहरी' लोग इस यात्रा से जुड़कर सुर्खियां बटोर रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस यही उम्मीद कर सकती है कि 150 दिनों तक चलने वाली 3,500 किलोमीटर की यात्रा में राहुल गांधी ही केंद्रीय भूमिका में रहें। अन्यथा यह अभियान पटरी से उतर जाएगा और दूसरे लोग मजमा लूट ले जाएंगे।
कांग्रेस के इस अभियान की मंशा स्पष्ट है कि इसके माध्यम से वह अपनी अखिल भारतीय मौजूदगी दर्शा कर विपक्षी खेमे को यही संकेत देना चाहती है कि किसी भी गैर-भाजपा मोर्चे के लिए वह अपरिहार्य है। कांग्रेस का यह दावा मजबूत होगा या कमजोर, वह इस यात्रा की सफलता पर निर्भर करेगा। विशेषकर उन राज्यों में जहां कांग्रेस सत्ता से बाहर है और उसका सांगठनिक ढांचा भी कमजोर है। फिलहाल अरविंद केजरीवाल और के. चंद्रशेखर राव जैसे दो नेता कांग्रेस के साथ गठजोड़ को कतई तैयार नहीं दिखते। यही बात ममता बनर्जी के बारे में कही जा सकती है। केरल में यात्रा के लंबे पड़ाव से माकपा का भी मुंह बना हुआ है।
वहीं भाजपा हरसंभव तरीके से राहुल की किसी भी गलती को भुनाने के लिए तैयार है। उसने यात्रा के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए आलीशान कंटेनरों पर निशाना साधा। यात्रा के दौरान जिन लोगों से राहुल मिल रहे हैं, उन पर भी भाजपा की पैनी नजर है। जैसे एक विवादित पादरी से मुलाकात पर तुरंत राहुल को घेरा गया। कुडनकुलम परियोजना और स्टरलाइट-विरोधी प्रदर्शनों के लिए जिम्मेदार लोगों से उनकी मुलाकात को भाजपा ने खासा तूल दिया।
भाजपा के इस रुख से तिलमिलाई कांग्रेस ने भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गणवेश का हिस्सा रहे खाकी निकर को जलाते हुए एक इंटरनेट मीडिया पोस्ट डाली। कुछ लोग मानते हैं कि यात्रा को ज्यादा तवज्जो देकर भाजपा राहुल की ही मदद करेगी। हालांकि यह इसी पर निर्भर करेगा कि यात्रा के माध्यम से राहुल क्या अपनी छवि ही निखारेंगे या पार्टी में नई जान डालेंगे। पार्टी में नए प्राणों का संचार इस लंबी यात्रा से कहीं अधिक आवश्यक है। वही कांग्रेस की असल चुनौती भी है। बहरहाल, यह यात्रा अभी शुरू हुई है, पर कांग्रेस के लिए 'दिल्ली अभी दूर' है।
Rani Sahu

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