सम्पादकीय

कांग्रेसी पगडि़यां और तुर्रे

Rani Sahu
27 April 2022 7:03 PM GMT
कांग्रेसी पगडि़यां और तुर्रे
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हिमाचल विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ी कांग्रेस के मंच से पहला पर्दा हटा है

हिमाचल विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ी कांग्रेस के मंच से पहला पर्दा हटा है और इस तरह हम कह सकते हैं कि पार्टी ने अपने कुनबे को साधने के लिए भरपूर कोशिश की है। यह वीरभद्र युग के बाद की कांग्रेस है तो अगले चुनाव तक कुछ पुरानी लाठियों और विरासत के सहारे आगे बढ़ना चाहती है। सांसद प्रतिभा सिंह को पार्टी अध्यक्ष बना कर कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की सियासी अमानत का सूर्य बचाना चाहती है, तो साथ ही वरिष्ठता के तुर्रे में अपने हर नेता को चलाना चाहती है। एक बहुरंगी तस्वीर के पीछे उन तमाम मसलों और रिक्तता के आलम को छुपाने की कोशिश में कांग्रेस अपने घर के अधिकांश खनकते बरतनों को मांज रही है, तो यह कलात्मक पक्ष हो सकता है, लेकिन सियासी पहलुओं का विश्लेषण उन युवा चेहरों पर होगा जिन्हें सूची में जगह नहीं मिली। चार कार्यकारी अध्यक्षों, छह उपाध्यक्षों और पांच वरिष्ठ उपाध्यक्षों के ताज पर टिकी निगाहें अगर प्रदेश में राजनीतिक संतुलन देख रही हैं, तो सबसे रोचक व शक्तिशाली पद यानी प्रचार समिति के अध्यक्ष का रुतबा सुखविंद्र सुक्खू के हवाले करने का गहन अर्थ भी है।

कांग्रेस की नई कार्यकारिणी के बीच फिलहाल हाथी और घोड़ों को अलग करके देखना इतना आसान नहीं है, फिर भी कार्य वितरण की दृष्टि से पार्टी अध्यक्ष प्रतिभा सिंह के बाद सुखविंद्र सुक्खू उभर कर सामने आए हैं। हर्ष महाजन, राजेंद्र राणा, पवन काजल और विनय कुमार की ऊर्जा में पार्टी का मंतव्य कितना गतिशील होगा, यह कांग्रेस के रणनीतिकार जानते होंगे। एक लंबे अनिश्चय के बाद कांग्रेस ने अपने विराम तोड़ते हुए यह साबित करने की कोशिश जरूर की है कि पार्टी अगले सफर में अपने नेताओं का भरपूर इस्तेमाल करेगी। यह दीगर है कि पार्टी के भीतर तरह-तरह की पगडि़यां रही हैं और इसी संदर्भ में हम आनंद शर्मा, आशा कुमारी, कौल सिंह, विप्लव ठाकुर, कुलदीप राठौर व राम लाल ठाकुर के आंगन में लिखी गई इस इबारत को पढ़ सकते हैं। कांग्रेस की संसाधन सूची में हम परिवारों को चिन्हित होते देख सकते हैं, तो क्षेत्रीय फलक पर खिलते हुए फूलों को निहार सकते हैं। यह दीगर है कि पार्टी की चुनौतियां केवल पदाधिकारियों की सूची बना कर खत्म नहीं होती, बल्कि ये तमाम चेहरे किस तरह चलते हैं, इसके ऊपर काफी कुछ निर्भर करेगा। आगामी चुनाव को जनता भी अलग तरह से पढ़ रही और यह 'आप' की रंगत और संगत का असर है, जो नए सपनलोक मेें वादों की फेहरिस्त तैयार कर रहा है।
जनता इस बार नेताओं के प्रति खिन्नता प्रकट करना चाहेगी और इसकी रिहर्सल स्थानीय निकाय चुनावों में देखी गई, जहां पढ़े-लिखे युवाओं ने हैरान किया था। बेशक चार उपचुनावों में कांग्रेस को मिली जीत से आत्म बल बढ़ा था, लेकिन इसका फायदा पार्टी ने नहीं उठाया। आज भी सत्ता विरोधी लहरों के बावजूद कांग्रेस यह साबित नहीं कर पा रही कि वह वर्तमान सरकार को कठघरे में खड़ा कर सकती है। ऐसे में प्रतिभा सिंह के लिए सर्वप्रथम पार्टी के तेवरों को बदलने के लिए एक ऐसी टीम चाहिए जो भाजपा के प्रचार तंत्र से जूझ सके। जिस तरह सोशल मीडिया में आम आदमी पार्टी जगह बना रही है या मंडी व कांगड़ा रैली के बाद इस पार्टी ने अपनी मचान ऊंची की है, उस परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस को तमाम चर्चाओं का रुख मोड़ने के लिए एड़ी चोटी का प्रयास करना होगा। उपचुनावों के बाद शिमला नगर निगम चुनाव ऐसे पड़ाव होंगे, जहां भाजपा बनाम कांगेस के बीच सीधा शक्ति प्रदर्शन हो सकता है। यह मुद्दों की बिसात और जनता के विश्वास के साथ चलने की परीक्षा है, जहां पार्टी को अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा करते हुए, अपने भीतर के खालीपन को भरना है।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

Rani Sahu

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