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देश में गिरते राष्ट्रीय चरित्र और बढ़ती मुफ्तखोरी की आदत के चलते लालच देकर भीड़ जुटाना आज कोई मुश्किल काम नहीं है
रघोत्तम शुक्ल। देश में गिरते राष्ट्रीय चरित्र और बढ़ती मुफ्तखोरी की आदत के चलते लालच देकर भीड़ जुटाना आज कोई मुश्किल काम नहीं है , इन दिनों भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महा सचिव प्रियंका गांधी वाड्रा उतर प्रदेश में पार्टी के खोये हुए जनाधार को पुन: पाने के लिए लड़कियों का सहारा ले रही हैं। उन्होंने एक नारा दिया है, 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' और इस क्रम में जगह-जगह लड़कियों को मुफ्त टी शर्ट और पुरस्कार में स्कूटी आदि का प्रलोभन देकर सड़कों पर उनकी मैराथन दौड़ कराई जा रही है, ताकि शक्ति प्रदर्शन हो सके। देश में गिरते राष्ट्रीय चरित्र और बढ़ती मुफ्तखोरी की आदत के चलते लालच देकर भीड़ जुटाना आज कोई मुश्किल काम नहीं है।
चुनावी रैलियों का भी यही हाल है। कुछ वर्ष पहले प्रतापगढ़ के मनगढ़ कस्बे में कथावाचक कृपालु जी महाराज ने एक भंडारा आयोजित किया था, जिसमें एक थाली मुफ्त में देने की मुनादी करा दी गई थी। भीड़ इतनी आ गई कि सारी व्यवस्था चरमरा गई। भगदड़ मची और कई लोग मर गए। उदाहरण और भी हैं। संप्रति बरेली में हुई ऐसी ही मैराथन खबरों में है, जिसमें हर स्तर हुई लापरवाही के कारण कई लड़कियां घायल हुई हैं। इसमें कुछ गंभीर हालत में भी हैं। ईश्वर ने गनीमत रखी वरना हादसा और बड़ा हो सकता था। बड़ी संख्या में लड़कियां कानून और कोविड-19 नियमों की धज्जियां उड़ाकर व्यस्त सड़क पर दौड़ा दी गई। उनमें बहुत-सी वोटर भी नहीं हैं।
जाहिर है घटना तो होनी ही थी। उस पर प्रियंका गांधी वाड्रा की चुप्पी और एक स्थानीय कांग्रेस नेत्री का तुर्रा कि 'भगदड़ तो माता वैष्णो देवी मंदिर में भी हो गई, जहां कई लोग मरे', कई सवाल खड़े कर रहे हैं। कोविड-19 के मामलों की बढ़त के चलते इस तरह की मैराथन रोकी जाएं। राजमार्गो पर तो बिल्कुल नहीं, वरना बड़े हादसे संभाव्य हैं। साथ ही चुनावी प्रलोभन पूरी तरह प्रतिबंधित और दंडनीय हों। चुनाव में नारे देने की परंपरा रही है, पर उनका कुछ औचित्य होना चाहिए।
प्रियंका प्रवर्तित इस नारे का क्या व्यावहारिक पक्ष है? स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं। पुरुष ऐश्वर्य और नारी माधुर्य की प्रतीक है। यों तो कुछ पुरुष भी स्त्रैण और कुछ नारियां भी वीरांगनाएं होती रही हैं, किंतु ये अपवाद हैं। वैदिक नारी विष्कला, महाराणी कर्मावती और रानी लक्ष्मी बाई कितनी हैं? यदि हर सामान्य लड़की युद्ध कला में निपुण होती तो निर्भया जैसे कांड न होते!
यदि लड़कियां शारीरिक तौर पर मल्ल युद्ध करने में निष्णात होतीं तो नेतागण छाती पीट-पीटकर नारी सशक्तीकरण का नारा नहीं देते। क्या प्रियंका गांधी वाड्रा यह नया नारा देकर उन्हें परिवार में लड़ना सिखा रही हैं और अब उनकी रक्षा के उपायों पर विराम लगाना चाहती हैं? महाभारत के अनुसार 'स्त्री बचपन में पिता, यौवन में भर्ता और वृद्धापन में पुत्र के द्वारा रक्षणीय होती है।'
(लेखक पूर्व प्रशासनिक अधिकारी हैं)
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