सम्पादकीय

संकटों की भूल भुलैया में फंसी कांग्रेस, नहीं मिल रहा बाहर निकलने का रास्ता

Gulabi
1 Oct 2021 3:06 PM GMT
संकटों की भूल भुलैया में फंसी कांग्रेस, नहीं मिल रहा बाहर निकलने का रास्ता
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देश की सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा समय तक शासन में रहने वाली कांग्रेस संकट की ऐसी भूल भुलैया में फंसी हुई

देश की सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा समय तक शासन में रहने वाली कांग्रेस संकट की ऐसी भूल भुलैया में फंसी हुई है, जहां से उसे बाहर निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा. इस भूल भुलैया की गलियां एक दूसरे के साथ ऐसे जुड़ी हुई हैं कि एक संकट पूरी तरह ख़त्म होता नहीं कि दूसरा सामने आ खड़ा होता है. एक के बाद एक संकट से जूझ रही कांग्रेस ख़ुद को मज़बूत करने की कोशिश करने के बजाए फ़िलहाल अपना वजूद बचाने के संघर्ष में ही जुटी है.

पिछले कई महीने से चल रहा है पंजाब कांग्रेस का संकट ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा. ये नित नए रूप ले रहा है. कांग्रेस आलाकमान ने सोचा था कि मुख्यमंत्री बदलने से शायद पंजाब कांग्रेस का संकट ख़त्म हो जाएगा. लेकिन इतना बड़ा क़दम उठाने के बावजूद संकट ख़त्म नहीं हुआ, बल्कि नए रूप में सामने आ गया. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफ़े और कैप्टन अमरिंदर सिंह की गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात के बाद उनके कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने की चर्चाओं से कांग्रेस का संकट और गहरा गया है.
कंग्रेस आलकमान अब सिद्धू और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बीच सुलह का रास्ता खोजने मे जुटा है. इधर कैप्टन ने ऐलान कर दिया है कि सिद्धू कहीं से भी चुनाव लड़ लें, वो उन्हे जीतने नहीं देंगे.
पंजाब संकट से जूझती कांग्रेस के सामने जी-23 नाम से मशहूर हो चुके असंतुष्ट नेताओं के गुट ने बुनियादी सवाल उठा दिया है कि जब कांग्रेस में स्थाई अध्यक्ष ही नहीं तो है फिर इतने बड़े और अहम फैसले कौन ले रहा है? इशारा पंजाब में मुख्यमंत्री बदलने जैसे बड़े फैसले की तरफ़ ही है. इस सवाल से पार्टी के भीतर विस्फोट हो गया है.
यह सवाल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने उठाया है. इसके बाद कपिल सिब्बल एक बार फिर दस जनपथ के क़रीबी नेताओं के निशाने पर आ गए हैं. यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सिब्बल के घर पर जमकर प्रदर्शन किया. 'गेट वेल सून' की तख्तियां दिखाईं. सिब्बल ने भी चिढ़ाने में कोई क़सर नहीं छोड़ी. उन्होंने कहा, 'हम जी-23 जी हुज़ूर नहीं है.'
फिर दो फाड़ कांग्रेस
कपिल सिब्बल के घर के सामने हुए प्रदर्शन से जी-23 के नेता तिलमिला गए हैं. आनंद शर्मा, शशि थरूर, पी चिदंबरम और मनीष तिवारी ने इसके ख़िलाफ़ खुलकर बोल रहे हैं. इन्होंने सोनिया गांधी से प्रदर्शन करने वाले यूथ कांग्रेस केस नेताओं के ख़िलाफ कार्रवाई की मांग की है. मनीष तिवारी ने तो इसे सुनियोजित गुंडागर्दी क़रार दिया है. कांग्रेस की समस्या यह है कि पार्टी के अंदर से उठने वाले सवालों पर ग़ौर करने के बजाए पार्टी आलाकमान सवाल उठाने वालों को निशाना बनाता है.
दमदार है जी-23 इसका सवाल
दरअसल, जी-23 की तरफ से कपिल सिब्बल ने बेहद अहम सवाल उठाया है. कांग्रेस में यह सवाल तभी से उठ रहा है, जब से राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दिया है ग़ौरतलब है कि 2019 में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद हुई पहली कार्यसमिति की बैठक में ही हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. कांग्रेसियों की तमाम मान मनौव्वल के बावजूद वो दोबारा अध्यक्ष बनने को राजी नहीं हुए थे.
हार कर अगस्त 2019 महीने में वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बना दिया था. तब यह तय हुआ था कि अगले 3 महीने में पार्टी नए अध्यक्ष का चुनाव करेगी. लेकिन 2 साल बीत जाने के बावजूद कांग्रेस को पूर्णकालिक स्थाई अध्यक्ष नहीं मिला है. अध्यक्ष पद का चुनाव किसी न किसी बहाने टाला जाता रहा है. इस बीच पार्टी में तमाम अहम फैसले हुए. कई फ़ैसलों पर असंतुष्ट नेताओं ने नाखुशी भी जाहिर की है और सवाल भी उठाए.
लेकिन, हर बार उठने वाले सवालों पर ग़ौर करने के बजाए सवाल उठाने वालों पर ही निशाना साधा गया. इस बार भी ऐसा ही हो रही है.
कौन हैं 'माननीय कांग्रेस अध्यक्ष' ?
कांग्रेस में आए दिन विभिन्न पदों पर नेताओं की नियुक्तियां होती रहती हैं. कांग्रेस की तरफ़ से बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी करके इसकी जानकारी दी जाती है. उसमें लिखा होता है कि 'माननीय कांग्रेस अध्यक्ष' ने 'अमुक पद' पर 'अमुक व्यक्ति' की नियुक्ति की है. जबकि पहले बाक़ायदा कांग्रेस अध्यक्ष के साथ नाम भी प्रेस विज्ञप्ति में लिखा जाता था.
नियुक्ति से संबंधित प्रेस विज्ञप्ति सामने आने पर यह सवाल उठना लाज़िमी है कि जब कांग्रेस में कोई स्थाई अध्यक्ष है ही नहीं, तो फिर यह 'माननीय अध्यक्ष कौन हैं जो आए दिन कांग्रेस में 'अहम पदों' पर 'अहम नेताओं' की नियुक्ति कर रहे हैं. कांग्रेसी हलकों में अक्सर पूछे जाने वाले इस सवाल को अब जी-23 की तरफ़ से कपिल सिब्बल ने राष्ट्रीय स्तर पर आवाज़ दी है, तो दस जनपथ के क़रीबी नेताओं ने उनके ख़िलाफ़ हमला बोल दिया है.
जी-23 की सहूलियत की राजनीति
कांग्रेस आलाकमान के फैसलों पर जहां जी-23 के नेता आए दिन सवाल उठाते हैं. वहीं आलाकमान जी-23 के नेतओं की नीयत पर सवाल उठाता है. इस गुट पर सहूलिय की राजनीति करने का आरोप है. दस जनपथ के क़रीबी नेता कहते हैं कि जब संकट के समय कांग्रेस नेतृत्व को एकजुट होने की ज़रूरत होती है तो ये नेता संकट में आलाकमान की मदद करन के बजाय सार्वजनिक बयानबाज़ी करके उसकी मुश्किलें बढ़ा देते है. इससे पार्टी का फजीहत तो होती है.
आलाकमान अपमानित महसूस करता है और कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटन लगता है. दस जनपथ के क़रीबी नेता जी-23 के नोतओं चुनौती देते हैं कि अगर उनके पास कांग्रेस को मज़बूत करने का कोई प्लान है तो वो इसका मसौदा आलाकमान के सामने पेश करें.
पंजाब संकट पर घिरा कांग्रेस आलाकमान
दरअसल पिछले कई महीने से पंजाब कांग्रेस में चले घमासान पर आलाकमान ने जो मुख्यमंत्री बदलने का फैसला किया, उसे लेकर पार्टी में लगातार सवाल उठ रहे हैं. जी-23 की तरफ़ से कपिल सिब्बल ने जो निशाना साधा है वह इसी संदर्भ में है. ग़ौरतलब है कि सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं और राहुल गांधी पूर्व अध्यक्ष.
राहुल गांधी सौ बार कह चुके हैं कि उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनना है. वो लगातार कहते रहे हैं कि पार्टी नेता उनके परिवार के बाहर के किसी व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष चुने. लेकिन पंजाब कांग्रेस में जब कैप्टन अमरेंद्र सिंह के ख़िलाफ सिद्धू ने बग़ावत की तो पूरे मामले का निपटारा सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने ही किया.
राहुल-प्रियंका पर सवाल
ऐसे में सवाल उठना लाज़िमी है कि जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं रहे हैं, तो फिर वो किस हैसियत से इतने बड़े और अहम मामले में दख़ल दिया. दूसरा अहम सवाल यह भी है कि जब प्रियंका गांधी बतौर महासचिव पंजाब की प्रभारी नहीं है, तो पंजाब के मामलों में उन्होंने क्यों दख़ल दिया. पंजाब में मुख्यमंत्री बदलने का फैसला राहुल और प्रियंका ने संयुक्त रूप से ही लिया था. लिहाजा इस फैसले के बाद पार्टी पर जो नया संकट गहराया है, उसकी जिम्मेदारी इन्हीं दोनों की है.
आलाकमान के पंजाब में नेतृत्व बदलने के फ़ैसले पर असंतुष्ट नेताओं की नाराज़गी इस बात को लेकर है कि पार्टी ने कुछ ही साल पहले बीजेपी से आए एक नेता के दबाव में आकर अपने एक ऐसे नेता को किनारे लगा दिया जिसकी पार्टी के प्रति वफ़ादारी 50 साल से ज्यादा पुरानी है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री और उनके विरोधी राहुल-प्रियंका के घरों की ही परिक्रमा कर रहे हैं. इससे इन दोनों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं.
सिद्धू की नौटंकी से फजीहतपंजाब में मुख्यमंत्री बदलने के बाद कुछ बदल कुछ ही दिनों बाद अचानक सिद्धू ने प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा देकर राहुल और प्रियंका की फ़जीहत करा दी है. पंजाब में मुख्यमंत्री बदलने के फैसले को लेकर पार्टी में ही कई तरह के सवाल उठ रहे थे, लेकिन सिद्धू के अचानक इस्तीफे ने इन सवालों को और अहम बना दिया. इससे फैसला लेने की राहुल और प्रियंका की क्षमता सवालों के घेरे में आ गई. पार्टी में लोग दबी ज़ुबान में यहां का कहने लगे कि इन दोनों को राजनीति की समझ ही नहीं है.
पार्टी के भीतर लगातार बढ़ती जा रही इसी सोच को जी-23 के नेताओं ने हवा देना शुरू कर दिया है. सिद्धू के अचानक इस्तीफ़े से यह साबित हो गया है कि उन पर भरोसा करके कांग्रेस आलाकमान और ख़ासकर राहुल और प्रियंका ने शायद बड़ी गलती कर दी है. सिद्धू की इस हरकत से बीजेपी की तरफ से उन पर लगने वाला 'मिसगाइडेड मिसाइल' का आरोप भी पुख्ता होता है. कांग्रेस असंतुष्ट नेताओं के सवालों का फिलहाल कांग्रेस आलाकमान के पास कोई माक़ूल जवाब नहीं है.
कैप्टन अमरिंदर का पलटवार
पंजाब में सत्ता की जन्नत से बेआबरू होकर निकलने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस को दो-चार दिन भी चैन की नींद भी नहीं सोने दिया. इधर पंजाब में नई कैबिनेट का गठन हुआ और उधर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिल्ली आकर गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर ली आधिकारिक रूप से तो बताया गया कि किसानों की समस्याओं पर ये मुलाकात रही. लेकिन चर्चा है कि कैप्टन अमरेंद्र कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम सकते हैं.
बीजेपी की तरफ से वो मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बन विधानसभा चुनाव में कर बीजेपी की अगुवाई कर सकते हैं. कैप्टन के इस दांव से कांग्रेस को सांप सूंघ गया है. हालांकि कांग्रेस में कैप्टन विरोधी तबका उनके कांग्रेस प्रेम को ढकोसला बता रहा है. वहीं, एक तबका ऐसा भी है जिसका मानना है कि कैप्टन को जिस तरह कांग्रेस आलाकमान ने बेइज़्ज़त करके मुख्यमंत्री पद से हटाया है, उसके बाद उनके पास पाला बदलने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहा.
क्या बीजेपी में जाएंगे कैप्टन?
पंजाब की सियासत में अब इस बात की चर्चा है कि कैप्टन और बीजेपी एक दूसरे के पूरक बन सकते हैं. कांग्रेस में किनारे लगने के बाद जहां कैप्टन के सामने पंजाब में अपना वजूद साबित करने की चुनौती है, तो वही अकाली दल के अलग होने के बाद बीजेपी को अपना आधार मजबूत करने के लिए एक ऐसे सिख चेहरे की तलाश है जो राज्य में उसकी अगुवाई करके उसे अपने दम पर सत्ता दिला सके. कैप्टन इस मामले में बीजेपी के लिए बेहतरीन विकल्प हो सकते हैं.
शायद यही सोचकर बीजेपी ने कैप्टन पर जाल फेंका है. पहले असम में इसी तरह का प्रयोग हो चुके हैं. 2016 में कांग्रेस के क़द्दावर नेता हेमंत बिस्वा सरमा को बीजेपी में शामिल करा कर कांग्रेस की 15 साल पुरानी सत्ता को उन्होंने उखाड़ फेंका था. इस साल असम में दोबारा चुनाव जीतने पर शर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया गया. लगता है बीजेपी असम का प्रयोग पंजाब में दोहराना चाहते हैं.
क्या गुल खिलाएगा कैप्टन और बीजेपी का मेल ?
बीजेपी के लिए कैप्टन अमरेंदर पंजाब में कितना मुफ़ीद साबित होंगे, यह तो आने वाला समय बताएगा. लेकिन बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कैप्टन पंजाब की सियासत में एक बड़ा नाम है और बीजेपी के लिए एक बड़ा सिख चेहरा साबित हो सकते हैं. उनके बीजेपी में शामिल होने से निश्चित तौर पर बीजेपी को फ़ायदा होगा. सुबे के सियासी समीकरण गड़बड़ा सकते हैं. लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या बीजेपी में कैप्टन को उतनी आजादी मिलेगी, जितनी आजादी कांग्रेस में मिली हुई थी?
कैप्टन पर सबसे बड़ा आरोप यह है कि वह कांग्रेस में किसी को कुछ समझते ही नहीं थे. यहां तक कि राहुल और प्रियंका तक का दख़ल उन्हें बर्दाश्त नहीं था. 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने राहुल गांधी को भी प्रचार में आने से मना कर दिया था. ख़बर तो यहां तक आई है कि पंजाब के प्रभारी कांग्रेस महासचिव हरीश रावत तक का फोन कैप्टन नहीं उठाते. कई महीनों से कैप्टन ने उनसे बात तक नहीं की. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सिद्धू के साथ ही उनका यही रवैया रहा.
कैप्टन पंजाब में खुद को पार्टी से बड़ा समझते रहे. कैप्टन का यही रवैया कांग्रेस में उनके ख़िलाफ़ बग़ावत का सबब बना. शायद इसीलिए राहुल और प्रियंका ने मिलकर उन्हें किनारे लगाया. अगर पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ माहौल है तो फिर कैप्टन कांग्रेस में रहें या बीजेपी में माहौल तो उनके ख़िलाफ़ ही रहेगा. इस सूरत में बीजेपी को कैप्टन के सैलाब जनता की नाराजगी का ख़मियाजा भुगतना पड़ सकता है.
सिद्धू ने बढ़ाया कांग्रेस का संकट
अगर कैप्टन अमरेंद्र सिंह कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी में शामिल हो जाते हैं, तो यह कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका होगा. बीजेपी की सरकार पंजाब में बने या ना बने, लेकिन यह तय हो जाएगा कि कांग्रेस की सरकार नहीं बनेगी. उधर राहुल-प्रियंका के चहेते सिद्धू ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर न सिर्फ इन दोनों की फजीहत कराई है, बल्कि पार्टी को एक नए संकट में डाल दिया है. पंजाब में कांग्रेस की साख़ गिरी है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हौसला टूटा है.
नए संकट के लिए जहां नवजोत सिंह सिद्धू पूरी तरह जिम्मेदार हैं. वहीं, राहुल और प्रियंका भी अपनी ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकते. उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं. कांग्रेस में दबी ज़ुबान में लोग कह रहे हैं कि उन्हें अच्छे लोगों की परख नहीं है. पंजाब में मुख्यमंत्री बदलने के फैसले पर कांग्रेस के भीतर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि इसने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री बदलने की मांग को हवा दे दी है.
पंजाब संकट के पूरी तरह ख़त्म होने से पहले ही केंद्रीय स्तर पर जी-23 के नेताओं के बगावती सुर ने कांग्रेस आलाकमान के सामने नई चुनौती पेश कर दी है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी नेतृत्व परिवर्तन की मांग जोर पकड़ रही है. अब जबकि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में चंद महीने ही बचे हैं तो कांग्रेस को एकजुट होकर चुनाव की तैयारियों में जुड़कर अपने खोए जनाधार को समेटने की कोशिश करनी चाहिए. लेकिन कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि ऐसे नाजुक समय वो अपनी अंदरूनी चुनौतियों से जूझ रही है.



(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

यूसुफ अंसारी, वरिष्ठ पत्रकार
जाने-माने पत्रकार और राजनीति विश्लषेक. मुस्लिम और इस्लामी मामलों के विशेषज्ञ हैं. फिलहाल विभिन समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टल्स के लिए स्तंत्र लेखन कर रहे हैं. पूर्व में 'ज़ी न्यूज़' के राजनीतिक ब्यूरो प्रमुख एवं एसोसिएट एडीटर, 'चैनवल वन न्यूज़' के मैनेजिंग एडीटर, और 'सनस्टार' समाचार पत्र के राजनितिक संपादक रह चुके हैं.
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