सम्पादकीय

कंगना रनौत को नजरअंदाज कर कांग्रेस उनके अहंकार को हवा देना बंद करे

Rani Sahu
13 Nov 2021 6:44 AM GMT
कंगना रनौत को नजरअंदाज कर कांग्रेस उनके अहंकार को हवा देना बंद करे
x
कंगना रनौत (Kangana Ranaut) कौन हैं, इस बारे में मैं दावे से कुछ नहीं कह सकता

बिक्रम वोहरा कंगना रनौत (Kangana Ranaut) कौन हैं, इस बारे में मैं दावे से कुछ नहीं कह सकता. उनकी विचारधारा के बारे में तो मेरी जानकारी और भी कम है. मेरा मानना ​​है कि कंगना को पद्म श्री पुरस्कार से सिनेमा में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया है, उन्हें अभिनय के लिए चार राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल हैं. हालांकि शीर्ष नागरिक पुरस्कार के लिहाज से अभी उनका पोर्टफोलियो मजबूत नहीं था, लेकिन इस साल पुरस्कारों की सीमा काफी व्यापक रही और काफी हद तक हाई प्रोफाइल अरबपतियों और संपन्न सामाजिक कॉर्पोरेट परिवेश और गिरोह का प्रभाव नहीं दिखा जो आमतौर पर ये पुरस्कार बटोर जाते थे.

अब जब ये पुरस्कार बांटे जा चुके हैं और जलसा खत्म हो चुका है, राज्यसभा में कांग्रेस के उप-नेता आनंद शर्मा राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से मांग कर रहे हैं कि कंगना को मिला पद्म पुरस्कार वापस ले लिया जाए. इसलिए नहीं कि उन्हें कंगना का अभिनय पसंद नहीं है, बल्कि इसलिए कि उन्होंने देश को ब्रिटिश शासन के चंगुल से छुड़ाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों (यानि कि कांग्रेस) का अपमान किया है.
कंगना रनौत के बयान गीले साबुन की तरह होते हैं
घोर चाटुकारता के हद तक बीजेपी के लिए कृतज्ञता जाहिर करते हुए, कंगना ने कहा कि भारत को आजादी 2014 में मिली (जब बीजेपी सत्ता में आई), न कि 1947 में. आनंद शर्मा की आपत्ति और हंगामे को हालांकि जनता ने खास तवज्जोह नहीं दिया, क्योंकि कंगना के बयान आमतौर पर किसी गीले साबुन की तरह फिसल जाते हैं और इससे निकला झाग कुछ मामूली वेबसाइट्स भर के काम आते हैं. ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ के खिलाफ इस वक्त अकेले आनंद शर्मा ही मोर्चा खोले नजर आते हैं, जो कि कंगना की बकवास को हवा देकर उसे विश्वसनीयता ही मुहैया कर रहे हैं.
जाहिर है कंगना तब बहुत छोटी या बहुत नादान ही रही होंगी, जब बीजेपी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने थे. 13 दिन, 13 महीने और फिर पूरा कार्यकाल (1996 में और फिर 1999 से 2004 तक), जब कांग्रेस दूर छिपकर अपने घाव पर मरहम लगा रही थी. उस दौर में स्वाधीनता और आजादी जैसे मुद्दे साफ तौर पर गायब हो गए थे और आनंद शर्मा को इस बात से राहत लेनी चाहिए कि अटल और कांग्रेस नेताओं के वे तमाम नेता जिनकी तस्वीरों से हमारे हॉल ऑफ़ फेम की दीवारें सजी हैं उसी नाव में तैर रहे हैं जिसकी कप्तानी आजकल बहादुर रनौत कर रही हैं.
कंगना रनौत कोई इतिहासकार नहीं हैं
लिहाजा मोदी प्रतिमा के प्रति कंगना की चापलूस वफादारी को हमें पार्टी के तौर पर बीजेपी के वर्चस्व के रूप में ही देखना होगा. वह न तो इतिहासकार हैं और न ही स्वतंत्रता आंदोलन की कोई बड़ी जानकार हैं. और गुलामी की जंजीर को तोड़ने में अपने योगदान को लेकर कांग्रेस का आत्मविश्वास अगर इतना ही कमजोर है कि एक एक्टर उसे आसानी से उकसा सकती है तो पिछले 70 वर्षों में हमें सिखाए गए इतिहास के अध्यायों की शुद्धता और सच्चाई को लेकर वाकई चिंता करने की जरूरत है.
कंगना एक सिनेमा अभिनेत्री हैं, जो स्क्रिप्ट में लिखी अपनी पसंदीदा पंक्तियां बोल रही हैं. पुरस्कार वापस लेने की इन बेतुकी मांगों से हम उनकी बातों को और तवज्जोह ही देते नजर आएंगे कि, प्रिय कंगना रनौत आप पुरस्कार वापस कर दें क्योंकि आपने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के मशहूर चेहरों का अपमान किया है और उन्हें भिखारी कहा है.
कंगना को आदर्श नागरिक और नेक कार्यों का पैमाना नहीं माना जा सकता
सचमुच? अगर किसी बात पर आपत्ति करने की जरूरत है तो ये है कि कंगना सर्वोत्कृष्ट भारतीय नागरिक की कोई मॉडल हैं. वो पूर्वाग्रह, अज्ञानता, द्वेष, भेदभाव, कट्टरता, अंधराष्ट्रवाद, हठधर्मिता और कई दूसरे अप्रिय वादों से भरी हुई हैं. निस्संदेह ये तभी होता है जब आप अपनी आत्मा को किसी कंपनी की दुकान में बेच आते हैं.
मुझे रोष होता है जब कंगना को आदर्श नागरिक और नेक कार्यों का पैमाना माना जाता है. आप और मैं अहंकार के उस उच्च शिखर तक आखिर कैसे पहुंचेंगे जिसे कंगना रनौत ने स्थापित किया है? आनंद शर्मा क्या आप एक आदर्श भारतीय हैं? या फिर आप कंगना के कुल्हड़ में कुलबुला रहे हैं? यदि ऐसा नहीं है, तो शांति बनाए रखिए. क्योंकि आपके लिए कोई पुरस्कार नहीं है.
Next Story