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केंद्र सरकार की ओर से पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाए जाने के बाद जब होना यह चाहिए था कि राज्य सरकारें भी इन पेट्रोलियम उत्पादों से वैट को कम करतीं, तब वे ऐसा करने से न केवल इन्कार कर रही हैं, बल्कि केंद्र के फैसले पर सवाल भी खड़े कर रही हैं। इनमें वे कांग्रेस शासित राज्य सरकारें सबसे आगे हैं, जिनके नेता पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों पर सबसे ज्यादा शोर मचा रहे थे। राहुल गांधी तो केंद्र सरकार पर कटाक्ष करते हुए लोगों को जेबकतरों से सावधान रहने को कह रहे थे। अब क्या यह मान लिया जाए कि कांग्रेस शासित राज्य जेबकतरों वाला काम कर रहे हैं? यह सवाल इसलिए, क्योंकि कुछ कांग्रेस शासित राज्यों में पेट्रोल और डीजल पर सबसे अधिक वैट है। कांग्रेस नेता यह भी कह रहे हैं कि पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क हटाना महज एक राजनीतिक करतब है। स्पष्ट है कि वे इसकी अनदेखी कर रहे हैं कि उत्पाद शुल्क घटाने से केंद्र सरकार अपने खजाने पर बोझ बढ़ा रही है। वह ऐसा करने में इसीलिए सक्षम हुई, क्योंकि वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी संग्रह में वृद्धि का सिलसिला कायम है। हालांकि जीएसटी संग्रह में वृद्धि का लाभ राज्य सरकारों को भी मिलना है, लेकिन शायद विपक्ष शासित राज्य इस तथ्य की उपेक्षा करने में ही खुद की भलाई समझ रहे हैं।