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सच बोलने और सुनने की क्षमता सब में नहीं होती, वह भी तब जबकि सच कटु हो
अजय झा सच बोलने और सुनने की क्षमता सब में नहीं होती, वह भी तब जबकि सच कटु हो. कांग्रेस पार्टी में जहां चाटुकारिता सर पर चढ़ कर बोलता है, सच सुनने की क्षमता तो बिलकुल ही नहीं है. ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने एक सच क्या बोल दिया कि 'There Is No UPA' तो कांग्रेस पार्टी तिलमिला गयी है. कांग्रेस पार्टी (Congress Party) ने कल पलटवार करते हुए ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दलाल होने तक की बात कर दी. ममता बनर्जी मोदी की दलाल तो हो नहीं सकतीं, पर इतना तो साफ़ हो गया है कि विपक्षी एकता एक सुनहरा सपना है और कांग्रेस पार्टी के रहते हुए मोदी को कोई खतरा नहीं है.
पिछले अप्रैल माह में पश्चिम बंगाल में चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी की महत्त्वकांक्षा बढ़ गयी. मोदी के नेतृत्व में बीजेपी गुजरात में लगातार तीन बार चुनाव जीती और उसके बाद मोदी की भी महत्त्वकांक्षा बढ़ गयी थी, जिसका परिणाम है कि उनके नेतृत्व में बीजेपी लगातार दो बार संसदीय चुनाव जीत चुकी है और अगर विपक्ष का यही आलम रहा तो मोदी को जीत की हैट्रिक लगाने से कोई नहीं रोक पाएगा.
कांग्रेस और टीएमसी के बीच एक अघोषित जंग छिड़ गई है
ममता बनर्जी के नेतृत्व में भी तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में जीत की हैट्रिक लगा चुकी है और वह भी प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने लगी हैं, जिसमें कोई बुराई नहीं है. पर कांग्रेस पार्टी को कहां बर्दाश्त होने वाला था कि एक साधारण सूती साड़ी पहन कर और पैरों में 100 रूपये वाली हवाई चप्पल पहन कर कोई साधारण परिवार की महिला उनके युवराज की जगह लेने के बारे में सोचने लगे. जुलाई के महीने से सुगबुगाहट शुरू हो गयी थी और वह सुगबुगाहट अब एक जंग में बदलती जा रही है.
अपने राष्ट्रीय महत्त्वकांक्षा को आगे बढ़ाते हुए ममता बनर्जी ने गोवा विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस को आखाड़े में उतारने का निर्णय ले लिया. कांग्रेस पार्टी में सेंध भी लगा दी और कांग्रेस पार्टी से नाराज़ नेता वहां तृणमूल कांग्रेस से जुड़ते जा रहे हैं. चूंकि बीजेपी अब और कांग्रेसी नेताओं को टिकट नहीं दे सकती, लिहाजा कांग्रेस पार्टी से नाराज़ नेताओं का तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने का कार्यक्रम फ़िलहाल चलता रहेगा. गोवा के बाद मिजोरम में रातों रात तृणमूल कांग्रेस जिसका कि राज्य में एक भी विधायक नहीं था, विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गयी, क्योकि कांग्रेस पार्टी के 18 में से 12 विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए. उसके ठीक एक दिन पहले कांग्रेस पार्टी के दो पूर्व सांसद कीर्तिआजाद और अशोक तंवर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे. उसके बाद से तो तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस पार्टी के बीच एक अघोषित जंग सी छिड़ गयी है.
कांग्रेस की जड़ें खोद रही हैं ममता बनर्जी
ममता बनर्जी इन दिनों तृणमूल कांग्रेस को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करने के फ़िराक में हैं. इसके साथ ही वह अपने प्रधानमंत्री पद की उम्मेदवारी को आगे बढ़ने के लिए भी विभिन्न राज्यों का दौरा कर रही हैं. इसी सिलसिले में उनका महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई जाना भी हुआ. महाराष्ट्र में पिछले दो वर्षों से शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस पार्टी की गठबंधन की सरकार चल रही है. दौरे के दौरान ममता बनर्जी शिवसेना के युवराज आदित्य ठाकरे से मिलीं. मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिलना फिलहाल संभव नहीं था, क्योंकि एक ऑपरेशन के बाद उद्धव ठाकरे फिलहाल डाक्टरों की सलाह पर स्वास्थ्य लाभ फरमा रहे हैं. फिर अगले दिन वह एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से मिलीं. गठबंधन के तीन में से दो दलों के नेताओं से मिलने पर कांग्रेस पार्टी के कान खड़े हो जाना स्वाभाविक है.
लगे हाथों दीदी ने 'There Is No UPA' कह कर कांग्रेस पार्टी पर कटाक्ष भी कर दिया. फिर क्या था, कांग्रेस पार्टी के कुछ बड़े नेता, जो बड़े नेता सिर्फ इसीलिए हैं क्योंकि उनकी गिनती राहुल गांधी के करीबियों में होती है, ममता बनर्जी को मोदी का दलाल और बहुत कुछ कह डाला. कांग्रेस पार्टी ने ममता बनर्जी को यह भी पाठ पढ़ाने की कोशिश की कि 20 प्रतिशत और 4 प्रतिशत मतों में फर्क क्या होता है, मानों भारत के 20 प्रतिशत मतदाताओं की पहली पसंद बन कर कांग्रेस पार्टी को ओलंपिक का कोई गोल्ड मेडल मिल गया हो. ममता बनर्जी के सलाहकार प्रशांत किशोर ने पलटवार करते हुए कांग्रेस पार्टी की दुखती नब्ज को छु लिया, यह कह कर कि पिछले 10 वर्षों में कांग्रेस पार्टी 90 प्रतिशत चुनाव हार चुकी है.
राहुल गांधी बनाम ममता बनर्जी के जंग में जीत मोदी की
वाद-विवाद का यह सिलसिला फिलहाल थमने वाला नहीं है. तृणमूल कांग्रेस इन दिनों कांग्रेस पार्टी को कमजोर बनाने की कोशिश कर रही है, ताकि संयुक्त विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की जब बात चले तो ममता बनर्जी के सामने राहुल गांधी टिक ही ना पाएं. इस विवाद का परिणाम होगा कि शायद विपक्ष का प्रस्तावित महागठबंधन कहीं एक सपना ही बन कर ना रह जाए. और जब मोदी के खिलाफ राहुल गांधी बनाम ममता बनर्जी की जंग छिड़ जाएगी तो इसका फायदा किसे मिलेगा यह सभी जानते हैं.
एक देसी कहावत है कि शहर बसने से पहले ही लुटेरे आ गए, सार्थक साबित होता दिख रहा है. विपक्षी एकता का कहीं नामो निशान नहीं है, कई बड़े क्षेत्रीय दलों ने इस प्रस्तावित एकता पर चुप्पी साध रखी है, पर अगला प्रधानमंत्री कौन होगा इस बात पर ही टक्कर शुरू हो गयी है. अगर यही आलम रहा तो बेहतर तो यही होगा कि 2024 का चुनाव भूल कर विपक्ष अभी से 2029 के चुनाव की तैयारी में जुट जाए, क्योंकि यह जंग लम्बी चलने वाली है.
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