सम्पादकीय

अपने हाशिए पर कांग्रेस

Rani Sahu
10 March 2022 7:13 PM GMT
अपने हाशिए पर कांग्रेस
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पंजाब विधानसभा चुनाव परिणामों के कातिल अध्याय हिमाचल की राजनीतिक खेती को कितना चट करेंगे

पंजाब विधानसभा चुनाव परिणामों के कातिल अध्याय हिमाचल की राजनीतिक खेती को कितना चट करेंगे, इसे लेकर सारी करवटें बदलेंगी। राजनीति के नए हाशिए बन रहे हैं और जहां आप की मौजूदगी ने न केवल अकाली दल, भाजपा को चोट पहंचाई, बल्कि कांग्रेस से उसकी बनी बनाई जमीन भी छीन ली। राजनीति का नया अवतार पड़ोसी राज्य में हो गया है तो अब हिमाचल को चांैकाने के लिए एक चिंगारी ही काफी होगी। अपने लिए सरहदें चुन रही कांग्रेस के लिए हिमाचल अब महामृत्यंज्य यज्ञ के समान होगा, लेकिन इससे पहले बड़ा सवाल यही है कि क्या दिल्ली-पंजाब के बाद आप पार्टी इस प्रदेश में अपना हित देख पाएगी। बहरहाल पार्टी के लिए शिमला नगर निगम चुनाव ऐसी पहली सीढ़ी है, जहां उसे पता चल जाएगा कि वह कितने पानी में है। हालांकि इससे पूर्व अन्य चार नगर निगम चुनावोें में आप को ऐसा कुछ हासिल नहीं हुआ, जो इसे वैकल्पिक राजनीति की धुरी तक लेकर जा सकता है।

इसका सबसे बड़ा कारण जमीनी स्तर के संघर्ष या मुद्दों से दूर रहना माना जा सकता है या आप के जाल में आए अब तक के तमाम मोहरे पिटे हुए हैं। ऐसे में शिमला नगर निगम चुनाव में आप यदि ताज़गी के साथ संदेश व चेहरे पेश करती है, तो मतदाता व मतदान का रुझान बदल सकती है। ऐसी स्थिति में आप के घातक कदम सीधे-सीधे कांग्रेस के वजूद को चुनौती दे रहे हैं। आप की घुसपैठ से कांग्रेस की राजनीति को चोट इसलिए स्वाभाविक है क्योंकि यह उन्हीं वर्गों को समेट रही है, जो कांग्रेस से जुड़ते हैं। दिल्ली के बाद पंजाब के दरियाओं में अगर आप की किश्ती चल गई, तो यह भी स्पष्ट है कि डूबने वालों में कांग्रेस का जहाज़ भी शरीक है। ऐसा भी नहीं है कि चुनाव की शुरुआत में कांग्रेस इतनी कमजोर दिखाई दे रही थी, लेकिन गर्त दर गर्त अगर पार्टी ने आज अपना हुलिया हलाल किया है, तो इसके लिए वे तमाम नेता जिम्मेदार हैं जो केवल सत्ता की बाट जोहते हुए यह भूल गए कि शिखर से पहले आम कार्यकर्ता का आचरण सुदृढ़ करना लाजिमी है। सिद्धू व जाखड़ की करामात हो या आलाकमान की सरपरस्ती में बंटता प्रश्रय हो, कांग्रेस ने वहां केवल अपनी नैया डुबोने में भरसक प्रयास किया और अब जो बोया था, उसे काट रही है। अब देखना यह है कि हिमाचल कांग्रेस पड़ोसी राज्य के मुकाबले कितनी भिन्न है और आइंदा क्या सबक लेती है। यह दीगर है कि हिमाचल कांग्रेस की संगठनात्मक ताकत का एहसास किसी भ्रम में है और पार्टी यह सोच कर चल रही है कि इस बार भी अदला-बदली की सियासत में सत्ता का टिकट सुनिश्चित हो जाएगा।
हिमाचल कांग्रेस के भीतर कई गुट स्पष्ट हो रहे हैं और इसी अनुपात में मुख्यमंत्री पद के चाहवान भी निजी कटोरे में अपना ही दर्शन कर रहे हंै। चुनावी तैयारी के बीच कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव को लेकर दो श्रृंखलाएं उभरी हैं और इसी तरह प्रदेश प्रभारी के रूप में राजीव शुक्ला के अक्षर और नश्तर भी भोथरा रहे हैं। राज्यसभा से रुखसत हो चुके आनंद शर्मा की हिमाचल में फिर नाटियां शुरू हुई हों या विधानसभा सत्र में विधायक विक्रमादित्य का बयान जिस तरह एक इलाके को परिवार का दुर्ग मान रहा था, उससे कुछ स्तंभ गिरते हैं। पंजाब चुनाव में भाजपा के लिए कुछ खास था नहीं, फिर भी अपनी कमजोरियों के नीचे दुबक कर भविष्य हासिल नहीं होगा। पांच राज्यों के चुनावों में बेशक चार पर वापसी करके भाजपा के रणनीतिकारों के लिए अब हिमाचल एक अलग मिशन के तहत देखा जाएगा, लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस को अब गहन विमर्श की जरूरत है। पंजाब की चुनावी इबारत के ऊपर हिमाचल का जागरूक समाज भी टकटकी लगाए बैठा है। क्या यहां भी त्रिकोणीय या बहुकोणीय चुनाव मुकाबले की पराकाष्ठा की संभावना प्रबल होगी। क्या डा. राजन सुशांत की अगुवाई में तीसरा फ्रंट कुछ जमीन पैदा करेगा या आप अपनी उपस्थिति के इश्तिहार में चमक पैदा करेगी। जो भी हो, पांच राज्यों के चुनावों ने कांग्रेस के लिए एक बड़ा प्रश्नचिन्ह तो टांग ही दिया है।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल

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