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- सुधरने की क्षमता खोती...
सुरेंद्र किशोर : कांग्रेस लगातार दुबली होती जा रही है। कुछ दशक पहले तक ऐसा नहीं था। तब नेतृत्व सशक्त और कल्पनाशील था। इसीलिए 1977 में बुरी तरह हार जाने के बावजूद वह 1980 में ताकतवर होकर उभर आई थी। अब वैसी संभावना समाप्त होती नजर आ रही है, क्योंकि इंदिरा गांधी के बाद के दल के शीर्ष नेता पर अकुशलता छा गई। राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद की बुराई का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है। यह समस्या क्षेत्रीय दलों में भी कमोबेश देखी जा रही है। कांग्रेस के कमजोर होने की शुरुआत 1989 में ही हो गई थी। 1989 और उसके बाद के किसी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला। भ्रष्टाचार, सामाजिक न्याय, राम मंदिर और पंथनिरपेक्षता जैसे मामलों में अपनी गलत नीतियों के कारण कांग्र्रेस ढलान की ओर बढ़ती चली गई। अब भी ढलान की ओर ही है। 2002 में यदि रामविलास पासवान ने राजग नहीं छोड़ा होता तो 2004 में मनमोहन सरकार भी नहीं बन पाती। कांग्रेस की कमजोरी से देश में एक सशक्त और जिम्मेदार प्रतिपक्ष का अभाव होता जा रहा है। इसके चलते कुछ गैर जिम्मेदार क्षेत्रीय दलों का समूह देश पर हावी हो सकता है। यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।