सम्पादकीय

कोरोना क्राइसिस में कांग्रेस को दिख रही उम्मीद, इसलिए ग्रुप 23 को लेकर बदली रणनीति?

Gulabi
12 May 2021 10:24 AM GMT
कोरोना क्राइसिस में कांग्रेस को दिख रही उम्मीद, इसलिए ग्रुप 23 को लेकर बदली रणनीति?
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इधर पांच राज्यों में हुई कांग्रेस (Congress) की दुर्दशा ने पार्टी को जितनी चिंता में डाल दिया है

संयम श्रीवास्तव। इधर पांच राज्यों में हुई कांग्रेस (Congress) की दुर्दशा ने पार्टी को जितनी चिंता में डाल दिया है उतना ही देश में कोरोना क्राइसिस (Corona Crisis) के चलते सरकार की हुई दुर्गति में उसे उम्मीद की किरण भी दिखाई दे रही है. दरअसल कोरोना महामारी को ठीक से हैंडल न करने का आरोप केंद्र सरकार पर लगातार लग रहा है. कांग्रेस को लग रहा है कि यही मौका है देश की जनता के बीच पहुंचकर अगले चुनावों में बीजेपी सरकार से सत्ता हथियाने का. शायद यही कारण है कि कांग्रेस ने इधर ताबड़तोड़ फैसले लिए हैं. पार्टी एक तीर से कई शिकार करना चाह रही है. दरअसल पार्टी के हुक्मरानों को यह भी पता है कि अगर जून की बैठक में G-23 ने अध्यक्ष बदलने की मांग कर दी तो हमारा क्या होगा? इसीलिए शायद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक नई चाल चली है. सोनिया गांधी ने 'कोरोना रिलीफ टास्क फोर्स' का गठन किया है. सबसे बड़ी बात ये है कि सोनिया गांधी ने इसकी कमान गुलाम नबी आजाद को दी है, ये वही गुलाम नबी आजाद हैं जो G-23 का चेहरा हैं और जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी के नेतृत्व में परिवर्तन करने की मांग की थी.


सोनिया गांधी के इस फैसले के बाद राजनीतिक गलियारे में ये चर्चा तेज हो गई है कि, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी यह सब कुछ सिर्फ इसलिए कर रही हैं कि वह G-23 को तोड़ सकें और फूट डाल सकें. हालांकि इस टास्क फोर्स में प्रियंका गांधी, युवा कांग्रेस अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास, अंबिका सोनी, मुकुल वासनिक, पवन कुमार बंसल, केसी वेणुगोपाल, जयराम रमेश, रणदीप सुरजेवाला, अजॉय कुमार, पवन खेरा और गुरदीप सिंह सपल सरीखे नेताओं को शामिल किया गया है.

क्या है कोरोना रिलीफ टास्क फोर्स
देश इस वक्त कोरोना वायरस की दूसरी लहर से जूझ रहा है, देश की मेडिकल व्यवस्था चरमराई हुई है. लोगों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं. कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियां इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार को जिम्मेदार बता रही हैं और उसपे लगातार हमलावर हैं. सोमवार को ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार पर कोरोना को गंभीरता से न लेने का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार को इससे निपटने के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए. कोरोना रिलीफ टास्क फोर्स का निर्माण भी इसीलिए हुआ है जिससे कांग्रेस पार्टी इस महामारी में लोगों की मदद कर सके. इस वक्त कांग्रेस ने अपने राष्ट्रीय कार्यालयों और क्षेत्रीय कार्यालयों में कंट्रोल रूम स्थापित किए हैं जहां से लोगों की मदद की जा रही है. इस कड़ी में कांग्रेस की युवा इकाई NSUI भी सोशल मीडिया और फोन के माध्यम से लोगों की मदद कर रही है. कुल मिलाकर कहें तो यह 13 सदस्‍यीय कोविड रिलीफ टास्‍क फोर्स कांग्रेस की ओर से किए जा रहे राहत कार्यों को देखेगी. जिसका नेतृत्व गुलाम नबी आजाद करेंगे.

G-23 के अन्य नेताओं को भी तोड़ने की कोशिश
सोनिया गांधी को पता है कि अगर G-23 को समय रहते नहीं संभाला गया तो ये गांधी परिवार के लिए गले की हड्डी बन जाएगी, जिसे ना निगलते बनेगा ना उगलते. इसीलिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधा अब उस ग्रुप के ज्यादातर नेताओं को अपने पाले में फिर से करने में जुट गई हैं. इसी कड़ी में उन्होंने विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार का मूल्यांकन करने के लिए एक समिति बनाई है जिसे दो हफ्ते में रिपोर्ट पेश करनी है. सोनिया गांधी ने इस समिति का अध्यक्ष महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को बनाया है, वहीं इस समिति में बतौर सदस्य सलमान खुर्शीद, सांसद मनीष तिवारी भी हैं. ये वही नाम हैं जो G-23 का हिस्सा हैं.

कांग्रेस के नेतृत्व पर उठते रहे हैं सवाल
सोनिया गांधी की उम्र हो चली है, इसलिए वह केवल नाम मात्र की अध्यक्ष हैं. जनता से उनको रूबरू हुए कई साल बीत गए हैं और उनकी खराब सेहत को देख कर लगता है कि वह अब जनता के बीच आने वाली भी नहीं हैं. इसीलिए उनकी जगह राहुल गांधी अघोषित अध्यक्ष के रूप में काम करते हैं. हालांकि राहुल गांधी के सिर पर अभी तक एक भी ऐसे किसी जीत का सेहरा नहीं बंधा है जिसके सहारे उन्हें कांग्रेस की गद्दी मिल जाए. सोनिया गांधी वर्षों से इसी प्रयास में हैं कि किसी भी तरह से राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया जाए और उन्हें तमाम कांग्रेस नेता स्वीकार कर लें.

हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने को लेकर दबी जुबान में ऐतराज करते आए हैं और उनका मानना है कि अभी राहुल गांधी के अंदर इतनी क्षमता नहीं है कि वह देश की सबसे पुरानी पार्टी का कार्यभार संभाल सकें. G-23 भी इसीलिए बना है. G-23 के सभी नेताओं का कहना है कि अगर कांग्रेस को फिर से जिंदा करना है तो सबसे पहले इसके नेतृत्व में बदलाव करने होंगे. यहां नेतृत्व में बदालव का मतलब गांधी परिवार से कांग्रेस की कमान लेना हो सकता है. लेकिन गांधी परिवार ऐसा कभी नहीं होने देगा, क्योंकि उसे पता है कि एक बार अध्यक्ष की कुर्सी हाथों से गई तो पार्टी और राजनीति दोनों से यह परिवार पूरी तरह से गायब हो जाएगा.


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