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सम्पादकीय
खत्म होती कांग्रेस, एनजीओ की तरह पार्टी को चलाने के कारण कम हो गईं सुधार की संभावनाएं
Gulabi Jagat
26 Aug 2022 5:21 PM GMT
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गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस छोड़ना यही बता रहा है कि देश की इस सबसे पुरानी पार्टी में सुधार की संभावनाएं और स्याह हो गई हैं। अब कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं का सिलसिला और तेज हो जाए तो हैरानी नहीं। पिछले सात-आठ वर्षो और विशेष रूप से पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से दर्जनों बड़े नेता पार्टी छोड़ गए, लेकिन गांधी परिवार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। गुलाम नबी आजाद के त्यागपत्र के बाद भी कांग्रेस की रीति-नीति में परिवर्तन के कहीं कोई आसार इसलिए नहीं, क्योंकि गांधी परिवार का गुणगान करने वाले कांग्रेसी नेता उन्हें स्वार्थी, धोखेबाज और संघी-भाजपाई करार देने में जुट गए हैं।
कांग्रेस किस तरह बदलने और अपनी गलतियों पर गौर करने के लिए तैयार नहीं, यह इससे साबित होता है कि जुलाई 2019 में राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद से पार्टी को एक निजी कंपनी की तरह चलाया जा रहा है। इसके चलते पार्टी परिवार का पर्याय बनकर रह गई है, जिसमें चाटुकार नेताओं का बोलबाला है। राहुल गांधी किसी पद पर नहीं हैं, लेकिन पर्दे के पीछे से पार्टी को वही चला रहे हैं। वही सारे फैसले भी ले रहे हैं। कोई भी समझ सकता है कि यह सब सोनिया गांधी की सहमति से हो रहा है, जो राहुल और प्रियंका गांधी के यह कहने के बाद भी अंतरिम अध्यक्ष बन गई थीं कि अब नया अध्यक्ष परिवार के बाहर का होगा।
तीन साल बीत गए, लेकिन कांग्रेस अपने नए अध्यक्ष का चयन अथवा चुनाव नहीं कर सकी है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि वह ऐसा करने के बजाय राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाना चाहती है। नि:संदेह एक समय गांधी परिवार कांग्रेस की ताकत था, लेकिन अब वह उसके लिए बोझ बन गया है। गांधी परिवार ऐसे व्यवहार कर रहा है, जैसे उसे जबरन केंद्र की सत्ता से बाहर कर दिया गया है।
वह यह भी आभास कराता रहता है कि इस देश पर शासन करने का अधिकार केवल उसे ही मिलना चाहिए। यह सामंती मानसिकता ही कांग्रेस के पतन का मूल कारण है। इसी मानसिकता के कारण कांग्रेस अपनी विचारधारा से पूरी तरह भटक चुकी है। अब तो वह किसी गैर सरकारी संगठन की तरह चल रही है और इस नीति पर केंद्रित है कि उसका एक मात्र काम प्रधानमंत्री को नीचा दिखाना है।
गुलाम नबी आजाद ने अपने त्यागपत्र में राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए उन्हें जिस तरह पार्टी का बेड़ा गर्क करने के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया, वह एक कटु सच्चाई है। इस सच से अन्य कांग्रेसी नेता भी भली तरह परिचित हैं, लेकिन वे वैसा कुछ कहने का साहस नहीं जुटा पा रहे, जैसा गुलाम नबी आजाद ने कहा।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
Gulabi Jagat
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