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प्रताप सिंह राणे के पुत्र और कांग्रेस विधायक विश्वजीत राणे ने करीब पांच साल पहले भाजपा में शामिल होते समय कहा था कि
सुरेंद्र किशोर। गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह राणे के पुत्र और कांग्रेस विधायक विश्वजीत राणे ने करीब पांच साल पहले भाजपा में शामिल होते समय कहा था कि यदि राहुल गांधी को राजनीति में रुचि नहीं है तो हम अपने राजनीतिक करियर का बलिदान क्यों करें? उससे पहले और बाद में भी ऐसा सोचने और कहने वाले कई अन्य कांग्रेसी नेता रहे हैं। वैसे ही नेताओं में आरपीएन सिंह भी हैं, जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। उत्तर प्रदेश कांग्र्रेस के प्रमुख नेता जितिन प्रसाद पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं। कांग्रेस से नेताओं के पलायन का सिलसिला थमता नहीं दिख रहा। स्थिति यह है कि यूपी में कुछ प्रत्याशी भी कांग्रेस छोड़ गए। इसके पहले भी अन्य तमाम नेता कांग्र्रेस छोड़ चुके हैं। आखिर वे किस उम्मीद पर कांग्र्रेस में रहते? कांग्रेस संगठन अब न तो परिवर्तन का हथियार रहा और न ही सत्ता सुख का साधन।
सवालों के घेरे में गांधी-नेहरू परिवार
एक समय केरल युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष सीआर महेश ने भी कहा था कि यदि राहुल नेतृत्व नहीं करना चाहते तो हट जाएं, ताकि अन्य किसी को अवसर मिल सके। भले ही अब ऐसी बातें सुनने को न मिल रही हों, लेकिन इसका कारण यह नहीं कि उन्हें कांग्रेस में बदलाव की कोई उम्मीद दिख रही है। इसका कारण यह है कि उन्हें लगता है कि कांग्रेस का पुनरुत्थान अब असंभव सा है। कुछ कहना-सुनना अब व्यर्थ है।
शायद शीर्ष नेतृत्व में कांग्र्रेस की कमियों को दूर करने की कोई इच्छा भी नहीं रह गई है, अन्यथा किसी पेशेवर एजेंसी से कांग्रेस के पराभव के कारणों की जांच करवाई जाती और कमियों को दुरुस्त करने की कोशिश होती। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद गठित एके एंटनी समिति की रिपोर्ट पर यदि सोनिया गांधी ने अमल किया होता तो कांग्रेस में मजबूती आने की उम्मीद की जा सकती थी, पर वह काम भी नहीं हुआ। याद रहे कि 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के कारणों की पड़ताल के लिए एंटनी समिति खुद सोनिया गांधी ने बनाई थी।
भला बताइए कि असम का कोई बड़ा नेता राहुल गांधी से मिलने दिल्ली आए और उससे बात करने के बदले वह अपने कुत्ते को बिस्कुट खिलाने में व्यस्त रहें तो ऐसी पार्टी को कोई कैसे बचा सकता है? याद रहे कि असम का वह नेता यानी हिमंत बिस्वा सरमा इन दिनों वहां की भाजपा सरकार का मुख्यमंत्री हैं। 2017 के गोवा प्रकरण के समय दिग्विजय सिंह ने कहा था कि राहुल गांधी निर्णय नहीं कर पाते। किसी दल को उसका वंशवादी नेतृत्व किस हद तक बर्बाद कर सकता है, उसका सटीक उदाहरण आज की कांग्रेस है। कुछ अन्य वंशवादी दलों का भी देर-सबेर यही हाल हो सकता है।
अतीत से जुड़ी हैं पतन की जड़ें
देखा जाए तो कांग्र्रेस का पतन राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में ही शुरू हो गया था। राजीव गांधी की अदूरदर्शिता और गलत सलाहकारों के कारण कांग्रेस की जनता में ताकत घटनी शुरू हुई। परिणामस्वरूप 1989 में कांग्रेस लोकसभा में बहुमत से दूर हो गई। वह बहुमत आज भी सपना बना हुआ है। बहुमत लाने की कांग्रेस की ताकत सोनिया-राहुल नेतृत्व में काफी घट गई है। राजीव गांधी ने बोफोर्स विवाद और भागलपुर दंगे को गलत ढंग से संभाला। 1990 में नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से उन्होंने मंडल आरक्षण पर ऐसा उलझाव भरा रुख अपनाया कि पिछड़े समुदाय में कांग्रेस की रही-सही लोकप्रियता भी घट गई। बाकी कसर मनमोहन सरकार पर भ्रष्टाचार के भीषण आरोपों ने पूरी कर दी। भ्रष्टाचार के मामले में आज भी कांग्रेस का रुख संदेहास्पद है। इसके अलावा शाहीन बाग जैसे आंदोलनों और जेएनयू के टुकड़े-टुकड़े गिरोहों को समर्थन देने से भी कांग्रेस को बहुत नुकसान हुआ। उत्तर प्रदेश को छोड़कर राहुल गांधी ने केरल से चुनाव लड़ा। इसने भी अच्छा संदेश नहीं दिया। वास्तव में कांग्रेस जब तक भ्रष्टाचार, तुष्टीकरण और सामाजिक न्याय के प्रति अपना रुख नहीं बदलती तब तक उसका पुनरुत्थान असंभव है।
सिर्फ मोदी पर निशाना साधने से नहीं होगा भला
नरेन्द्र मोदी के शासन काल में यदि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने विभिन्न मुद्दों पर विवेकपूर्ण ढंग से तथ्यात्मक विरोध किया होता तो पार्टी की छवि सुधरती, पर ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि मौजूदा कांग्रेस नेतृत्व का जनता से कोई खास जुड़ाव ही नहीं रह गया है। नोटबंदी के बाद राहुल गांधी ने कहा था, 'इतिहास में पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने नोटबंदी के जरिये गरीबों पर हमला किया है। नोटबंदी मोदी निर्मित महा विपत्ति है।' नोटबंदी के कुछ ही महीने बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हुए। उसमें भाजपा को अभूतपूर्व सफलता मिली, क्योंकि गरीब नोटबंदी से नाराज नहीं थे। साफ है कि राहुल गरीबों की भावना को नहीं समझ सके थे। जीएसटी लागू होने के बाद राहुल गांधी ने अक्टूबर 2017 में कहा कि यह गब्बर सिंह टैक्स है, किंतु व्यापारियों से भरे गुजरात में जब विधानसभा चुनाव हुए तो परिणाम भाजपा के पक्ष में रहे। पुलवामा कांड के बाद हुई एयर स्ट्राइक का कांग्रेस ने मोदी सरकार से सुबूत मांगा, पर असली सुबूत तो देश की आम जनता ने दे दिया। नरेन्द्र मोदी को पिछली बार की अपेक्षा 2019 के लोकसभा चुनाव में अधिक बहुमत मिल गया। कांग्रेस को पता ही नहीं चल सका कि एयर स्ट्राइक पर आम जनता की क्या राय है? सीएए और एनआरसी का विरोध करके कांग्रेस ने बंगाल विधानसभा का चुनाव लड़ा। वहां की विधानसभा में कांग्रेस शून्य हो गई, पर दूसरी ओर भाजपा की सीटें तीन से बढ़कर 77 हो गईं। स्पष्ट है कि कांग्रेस आम लोगों से कट सी गई है। इस संबंध में मैंने एक राजनीतिक प्रेक्षक से पूछा कि इस देश का प्रतिपक्ष इतना गैर जिम्मेदार क्यों है?' उन्होंने कहा, 'कल्पना कीजिए कि आपने नाजायज तरीके से एक हजार करोड़ रुपये कमा लिए हैं। उसे सरकार ने जब्त कर लिया। क्या तब भी आप अपना मानसिक संतुलन बनाए रख सकेंगे?' मैंने कहा कि बिल्कुल नहीं। उन्होंने कहा कि उसी तरह प्रतिपक्ष के अनेक नेता होश में नहीं हैं। भाजपा ने उनसे सत्ता छीन ली। सत्ता से बाहर रहने पर जो पैसे काम आते हैं, उसे भी जब्त कर लिया। फिर वही होगा, जो हो रहा है।' आगे-आगे देखिए होता है क्या।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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