सम्पादकीय

पंजाब में कांग्रेस की अन्तर्कलह

Triveni
9 July 2021 2:40 AM GMT
पंजाब में कांग्रेस की अन्तर्कलह
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पंजाब के मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से भेंट के बाद अब राज्य कांग्रेस में खींचतान व सिर फुटव्वल बन्द होना चाहिए।

आदित्य चोपड़ा| पंजाब के मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से भेंट के बाद अब राज्य कांग्रेस में खींचतान व सिर फुटव्वल बन्द होना चाहिए। इसे देश की इस सबसे पुरानी व राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि कुछ वर्ष पहले ही कांग्रेस में आये नवजोत सिंह सिद्धू ने अपनी ही पार्टी के मुख्यमन्त्री के खिलाफ उस समय मोर्चा खोला हुआ है जब विधानसभा चुनावों में छह महीने के लगभग का समय ही बचा है। सिद्धू आरोप लगा रहे हैं कि मुख्यमन्त्री राज्य के प्रमुख विपक्षी दल अकाली दल के साथ साठ-गांठ करके सरकार चला रहे हैं। हालांकि यह आरोप स्वयं विस्मयकारी है क्योंकि अकाली दल ही वह पार्टी है जिसे 2017 में बुरी तरह परास्त करके कैप्टन मुख्यमन्त्री बने थे। तब कैप्टन ने अकालियों की पिछले दस साल तक चली सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बनाया था और विधानसभा की 117 में से 80 सीटों पर विजय प्राप्त की थी। जहां तक जमीनी हकीकत का सवाल है तो आज भी राज्य में आम आदमी पार्टी समेत अकाली दल में इतनी ताकत नहीं बताई जाती कि वे कांग्रेस को पराजित कर सकें। मगर यह भी सच है कि कांग्रेस पार्टी एेसी पार्टी भी मानी जाती है जिसे जीती हुई बाजी हारने का भी शौक है। आजकल बिजली संकट को लेकर जिस तरह खुद नवजोत सिंह सिद्धू ने ही कैप्टन की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है उससे अन्य विपक्षी दल भी प्रेरित हो रहे हैं और सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। मगर यह भी कम हैरतंगेज नहीं है कि सिद्धू ने ही अपने घर का बिजली का आठ लाख रुपए के लगभग का बिल जमा नहीं कराया हुआ है। इससे राजनीति के खोखलेपन का पता चलता है और अन्दाजा लगाया जा सकता है कि सत्ता पाने की लालसा में राजनीतिज्ञ किस हद तक जा सकते हैं।

कांग्रेस में सत्ता की लड़ाई ही हो रही है क्योंकि सिद्धू चाहते हैं कि कांग्रेस आलाकमान उनके झांसे में आकर अगले चुनावों तक उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना दे जिससे पार्टी उनके नेतृत्व में अगले विधानसभा चुनाव लड़े। अगर सूत्रों की मानें तो श्रीमती सोनिया गांधी ने कैप्टन को अभय दान दे दिया है और कहा है कि अगले चुनाव उन्हीं के मुख्यमन्त्रित्वकाल व नेतृत्व में लड़े जायेंगे। मगर सिद्धू की हरकतों से लगता है कि वह चुनाव तक कोई न कोई बखेड़ा जरूर करेंगे जिससे पार्टी को चुनावों में नुकसान होने की आशंका को नहीं टाला जा सकता। सिद्धू को यदि कांग्रेस आलाकमान हवा देता है तो पंजाब में हांशिये पर पड़ी भाजपा में नये प्राण आ जायेंगे और पाकिस्तान जाकर सिद्धू द्वारा वहां के फौजी जनरल बाजवा से झप्पियां डालने की तस्वीर कांग्रेस के गले में पड़ जायेगी । उस स्थिति में सिद्धू कांग्रेस के लिए एक बोझ साबित हो सकते हैं।
मगर पाकिस्तान स्थित ननकाना साहब कोरीडोर खोलने का श्रेय सिद्धू अपने सिर लेते हुए घूम रहे हैं। बेशक इसका प्रभाव राज्य की जनता पर है मगर पाकिस्तान की तरफ से जिस प्रकार आतंकवाद 'ड्रोन' पर सवाल होकर भारत आ रहा है उसके प्रति कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने पिछले वर्ष नवम्बर मास में ही चेता दिया था। पंजाब के इलाकों में पिछले साल पाकिस्तान की तरफ से आने वाले ड्रोन पकड़े गये थे जिनमे घातक हथियार तक रखे हुए मिले थे। अपने पाकिस्तान प्रेम व क्रिकेटर प्रधानमन्त्री इमरान खान की मुहब्बत में सिद्धू इस तथ्य को भूल रहे हैं कि किस तरह ड्रोनों के जरिये ही पाकिस्तान ने जम्मू रक्षा हवाई अड्डे को निशाना बनाने की कोशिश की थी। परन्तु असली सवाल कांग्रेस की अन्तर्कलह का है जिसकी वजह से राज्य की सरकार का जनकल्याण का ध्येय भटक रहा है। यह देखना कांग्रेस आला कमान का ही काम है कि उसकी पार्टी की सरकार अन्तिम क्षण तक लोक कल्याण के कार्यों में लगी रहे। सत्तारूढ़ पार्टी के आपसी झगड़े सरकार के कामकाज से समझौता नहीं कर सकते। सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि नवजोत सिंह को उनकी हैसियत का गुमान कराया जाये। यह काम आलाकमान ही कर सकता है और अभी तक जब भी सिद्धू दिल्ली आये हैं वह सीना फुलाते हुए ही वापस गये हैं। राजनीति में वाकपटुता या वाक कला एक सीमा तक ही काम करती है और इसका जीवन भी लम्बा नहीं होता क्योंकि अन्त में राजनीतिज्ञ का कार्य ही काम करता है। सिद्धू पंजाब में कैप्टन की सरकार में मन्त्री भी रहे हैं परन्तु अपनी उपलब्धि गिनाने के लिए उनके पास एक काम भी नहीं है। वह वाकया कैसे भूला जा सकता है जब सिद्धू लोकसभा में भाजपा के अमृतसर से सांसद थे और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी तो उन्होंने अमृतसर में निर्यात समर्पित क्षेत्र बनाने की मांग की थी। इसके जवाब में तत्कालीन वाणिज्यमन्त्री श्री कमलनाथ ने जब उनसे यह कहा कि वह राज्य में अपनी ही पार्टी भाजपा के सहयोग से चलने वाली सरकार से इसके लिए जमीन का अधिग्रहण तो करा दें तो वह बगलें झांकने लगे थे। कहने का मतलब यह है कि राजनीति केवल जबानी जमा खर्च नहीं होती है बल्कि जमीन पर अपने निशान भी देखना चाहती है।
वही सिद्धू अब कैप्टन के खिलाफ बिगुल बजा रहे हैं और स्वार्थ में इस कदर लिप्त हो चुके हैं कि अपनी ही पार्टी को गर्त में डालने के उपक्रम कर रहे हैं। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि पंजाब का पिछला चुनाव कैप्टन ने अपनी योग्यता और नेतृत्व क्षमता के बूते पर ही जीता था वरना कहने को तो तब भी कहा जा रहा था कि आम आदमी पार्टी और अकाली दल मिल कर कांग्रेस को धराशायी कर देंगे। कैप्टन ने राज्य के किसानों के बीच अपनी लोकप्रियता जिस तरह बढ़ाई है उससे विपक्षी दलों की नींद पहले ही हराम हो रही है मगर क्या गजब है कि उन्हीं की पार्टी के सिद्धू उनकी नींद हराम करने के यत्न में लगे हुए हैं। पंजाब का रब राखा !


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