- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- पंजाब में कांग्रेस की...
आदित्य चोपड़ा| पंजाब के मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से भेंट के बाद अब राज्य कांग्रेस में खींचतान व सिर फुटव्वल बन्द होना चाहिए। इसे देश की इस सबसे पुरानी व राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि कुछ वर्ष पहले ही कांग्रेस में आये नवजोत सिंह सिद्धू ने अपनी ही पार्टी के मुख्यमन्त्री के खिलाफ उस समय मोर्चा खोला हुआ है जब विधानसभा चुनावों में छह महीने के लगभग का समय ही बचा है। सिद्धू आरोप लगा रहे हैं कि मुख्यमन्त्री राज्य के प्रमुख विपक्षी दल अकाली दल के साथ साठ-गांठ करके सरकार चला रहे हैं। हालांकि यह आरोप स्वयं विस्मयकारी है क्योंकि अकाली दल ही वह पार्टी है जिसे 2017 में बुरी तरह परास्त करके कैप्टन मुख्यमन्त्री बने थे। तब कैप्टन ने अकालियों की पिछले दस साल तक चली सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बनाया था और विधानसभा की 117 में से 80 सीटों पर विजय प्राप्त की थी। जहां तक जमीनी हकीकत का सवाल है तो आज भी राज्य में आम आदमी पार्टी समेत अकाली दल में इतनी ताकत नहीं बताई जाती कि वे कांग्रेस को पराजित कर सकें। मगर यह भी सच है कि कांग्रेस पार्टी एेसी पार्टी भी मानी जाती है जिसे जीती हुई बाजी हारने का भी शौक है। आजकल बिजली संकट को लेकर जिस तरह खुद नवजोत सिंह सिद्धू ने ही कैप्टन की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है उससे अन्य विपक्षी दल भी प्रेरित हो रहे हैं और सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। मगर यह भी कम हैरतंगेज नहीं है कि सिद्धू ने ही अपने घर का बिजली का आठ लाख रुपए के लगभग का बिल जमा नहीं कराया हुआ है। इससे राजनीति के खोखलेपन का पता चलता है और अन्दाजा लगाया जा सकता है कि सत्ता पाने की लालसा में राजनीतिज्ञ किस हद तक जा सकते हैं।