सम्पादकीय

कांग्रेसमुक्त भारत पीएम मोदी की बीजेपी के लिए भी है घातक, बंगाल के बाद अब महाराष्ट्र में दिख रहा ट्रेलर

Gulabi Jagat
17 May 2022 8:48 AM GMT
कांग्रेसमुक्त भारत पीएम मोदी की बीजेपी के लिए भी है घातक, बंगाल के बाद अब महाराष्ट्र में दिख रहा ट्रेलर
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बंगाल के बाद अब महाराष्ट्र में दिख रहा ट्रेलर
शमित सिन्हा |
सोमवार को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी गृहमंत्री अमित शाह पर लिखी गई एक किताब के विमोचन के सिलसिले में पुणे आई थीं.
शरद पवार की पार्टी एनसीपी के कार्यकर्ताओं का झुंड कार्यक्रम स्थल तक पहुंच गया. इन कार्यकर्ताओं में बड़ी तादाद महिलाओं की थी. पुणे के बाल गंधर्व रंग मंदिर के अंदर 'महंगाई की रानी, स्मृति ईरानी' का नारा लगने लगा. आक्रामक तरीके से कार्यक्रम में खलल पहुंचाया जाने लगा. बीजेपी कार्यकर्ताओं ने भी हिंसक तरीके से जवाब दिया. एक ने एनसीपी की महिला कार्यकर्ता के गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया. गलत हुआ. इसके बाद जब स्मृति ईरानी का काफिला निकला तो उन पर एनसीपी कार्यकर्ताओं ने अंडे फेंके. अंडे फेंकने वाली एक एनसीपी कार्यकर्ता को पुलिस ने हिरासत में लिया. थप्पड़ मारने वाले बीजेपी के तीन कार्यकर्ताओं को भी पुलिस ने हिरासत में लिया.
इस पूरे मुद्दे पर स्मृति ईरानी की प्रतिक्रिया ध्यान देने वाली है. उन्होंने कार्यक्रम से पहले कहा कि कांग्रेस के सिटिगं प्रेसिडेंट राहुल गांधी को उन्होंने हराया है, यह उसी की नाराजगी है. एनसीपी भी तो कांग्रेस से ही निकली है. कार्यक्रम के दौरान एनसीपी कार्यकर्ताओं को हॉल से बाहर निकालने के मुद्दे पर स्मृति ईरानी ने कहा यह तो महाराष्ट्र है. बंगाल में विरोध करने पर बीजेपी कार्यकर्ता को जिंदा लटका कर हत्या कर दी जाती है.
कांग्रेस का विरोध महंगाई पर केंद्रित, एनसीपी का विरोध स्मृति ईरानी पर केंद्रित
इस मामले में एक बात तो समझ आई कि स्मृति ईरानी एक केंद्रीय मंत्री हैं. इसलिए उनके पुणे आने पर विरोध प्रदर्शन के माध्यम से महंगाई को लेकर जनता की नाराजगी दिखाने का एक जरिए हो सकता है. 'महंगाई की रानी, स्मृति ईरानी' का क्या मतलब है? स्मृति ईरानी का महंगाई से सीधा संबंध क्या है. निर्मला सीतारमण का नाम लेते तो भी बात समझ आती. पीएम मोदी का नाम लेते तो भी एक बात होती.स्मृति ईरानी जिस होटल पर ठहरीं वहां इसके कार्यकर्ताओं ने घुसने की कोशिश की. पुणे पुलिस ने रोक दिया तो कार्यक्रम स्थल तक वे पहुंचे. फिर काफिले पर अंडे…यानी टोटल केयोस. पूरी अराजकता. बीेजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि एनसीपी कार्यकर्ताओं को यह एहसास था कि गृहमंत्री उनकी पार्टी के हैं, इसलिए वे ऐसा कर सकते हैं. यह बात साफ हो चुकी है कि राज्य में कानून व्यवस्था है ही नहीं.
एनसीपी के साथ कांग्रेस भी कल विरोध करने पुणे की सड़कों पर उतरी लेकिन अंडे और डंडे के साथ नहीं उतरी. कांग्रेस ने महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन किया. स्मृति ईरानी के काफिले के सामने काले झंडे लहराए. लेकिन आंदोलन पूरी तरह अहिंसक था. विरोध केवल विरोध तक सीमित था. कानून व्यवस्था हाथ में नहीं लिया गया. इस पूरे घटनाक्रम के बाद अचानक उप मुख्यमंत्री अजित पवार को याद आया कि एनसीपी का गठन तो गांधीवादी नॉनवायलेंस और सेक्युलरिज्म के सिद्धांतों पर हुआ था. ये रूपाली पाटील टाइप की एमएनएस और शिवसेना स्टाइल की भूले-भटके एनसीपी में घुस आई नेताओं की वजह उनकी पार्टी और शिवसेना-एमएनएस जैसी क्षेत्रीय और आक्रामक पार्टियों में कोई फर्क ही नहीं रहा गया. इसलिए उन्होंने एक बयान भी दे दिया कि आंदोलन जम कर करो लेकिन अहिंसक तरीके से करो.
टीएमसी और एनसीपी कहने को राष्ट्रीय पार्टियां, चाल और चरित्र इनका लोकल है टोटल
महात्मा गांधी गोखले के गुरु कहे जाने वाले गोपाल कृष्ण गोखले कहा करते थे, 'What Bengal thinks today, India thinks tomorrow' यानी बंगाल जो आज सोचता है भारत वो बाद में सोचता है. आज यह उल्टा हो गया है. पहले कम्युनिस्टों के राज में उद्योगों और उद्योगपतियों के लिए सही माहौल नहीं था और अब तृणमूल कांग्रेस के राज में भी यही चलन है. जब ये पार्टियां सत्ता में नहीं होती हैं तब तो आंदोलन, हड़ताल, बंद की राजनीति करती ही हैं, जब सत्ता में होती हैं तब भी ये नाम की राष्ट्रीय लेकिन काम से क्षेत्रीय मिजाज की पार्टियां यही करती हैं. वे भूल जाती हैं कानून-व्यवस्था को चलाना उनकी जिम्मेदारी है.
कानून व्यवस्था का खराब होना राज्य की इकॉनॉमी पर सबसे ज्यादा असर डालता है. उद्योग दूसरे राज्यों में जाने लगते हैं. फिर बेरोजगारों को काम ढूंढने के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है. लोगों को टाटा नैनो प्रोजेक्ट का बंगाल से गुजरात ले जाना अब भी याद है. तृणमूल कांग्रेस शुरू करने का मकसद भारत के फेडरल स्ट्रक्चर का कायम रखना था. लेकि फेडरल कैरेक्टर के लिए जागरुक रहने का मतलब केंद्र से निरंतर संघर्ष नहीं होता है. आज महाराष्ट्र और बंगाल में बीजेपी को जिस तरह के हिंसक विरोध का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें देखते हुए यह आज या फिर कल एहसास करना ही पड़ेगा कि विपक्ष में कांग्रेस का मजबूत रहना कितना जरूरी होता है. कांग्रेसमुक्त भारत कितना खतरनाक होता है.
महाराष्ट्र चला बंगाल की चाल, अपनी चाल भी भूला
एक मराठी अभिनेत्री केतकी चितले ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार पर एक फेसबुक पोस्ट लिख दिया. वो भी उन्होंने खुद नहीं लिखा है, शेयर किया है. उन पर अब तक 18 जगहों पर केस दर्ज किया गया है. कहा गया है कि पूरा महाराष्ट्र दर्शन करवाएंगे. पुलिस उनके घर जाकर ऐसे सर्च ऑपरेशन कर रही है मानो जिलेटिन की छड़ें मिलने वाली हैं या बता नहीं कोई आतंकियों के साथ कोई तार जुड़े हुए निकल आएंगे. राज्य भर में उसके खिलाफ एनसीपी कार्यकर्ताओं का आंदोलन शुरू है. यहां भी ठीक स्मृति ईरानी के काफिले की तरह केतकी पर अंडे फेंके गए, काली स्याही फेंकी गई.
सवाल यह है कि जब टीएमसी और एनसीपी भी एमएनएस और शिवसेना की तरह ही व्यवहार करती है तो नाम के आगे कांग्रेस क्यों लिखा करती है? और उस पर ढोंग तो देखिए, शरद पवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में केतकी चितले के पोस्ट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा ना तो वे उस अभिनेत्री को जानते हैं, ना उसके पोस्ट को ही पढ़ा है और ना ही पुलिस ने केतकी के खिलाफ क्या कार्रवाई की है, यह उनको पता है और हकीकत में वो लड़की एक गलती करके पवार के 'पॉवर' का इस्तेमाल देख रही है, पूरा महाराष्ट्र देख रहा है. बगल में महाराष्ट्र के गृहमंत्री बैठे है. महाराष्ट्र में कानून व्यवस्था को लेकर राज्य भर में क्या कुछ हो रहा है, पवार साहेब को नहीं पता है? ऐसी लापरवाही है राज्य कैसे चला रहे हो भाई?
जैसी संगत, वैसी रंगत- एनसीपी पर रंग चढ़ा है शिवसेना का
ये उग्रता, ये सड़कों पर तोड़-फोड़-हिंसा शिवसेना को सूट करता है. शिवसेना-एमएनएस जैसी पार्टियां इसी तरह से लोकल मुद्दों को लेकर, लोकल तरीके से संघर्ष करते हुए आगे बढ़ी हैं. इनका पॉलिटिकल कैरेक्टर और कलेवर केओस वाला ही रहा है. लेकिन एनसीपी तो अपनी प्रेरणा गांधीवाद को मानती है. जिस पार्टी के नेता शरद पवार जैसे सबसे अनुभवी और समझदार हों, उनकी पार्टी इस तरह से स्मृति ईरानी के साथ सलूक करवाए. केतकी चितले, गुणरत्न सदावर्ते जैसे विरोध करने वालों पर अंडे और पुलिस के डंडे बरसाए. जगह-जगह लॉक अप में बंद करवा कर महाराष्ट्र दर्शन करवाए. अपने कार्यकर्ता भेजकर कनपट्टी के नीचे थप्पड़ लगवाए, छड़ी से पिटाई करने की बात करे,अंडे और स्याही से हमले करे. पुलिस भेज कर घर से उठवाए और फिर गांधीवादी भी कहलाए? ऐसा कैसे चलेगा. लगता है कि शरद पवार का सहयोगी पार्टी शिवसेना पर उतना असर नहीं हुआ है जितना संजय राउत का शरद पवार और उनकी पार्टी पर असर हुआ है. वे भी नवनीत राणा को जमीन पर गाड़ने की बात करते हैं और एनसीपी भी कान के नीचे थप्पड़ लगवाती है.

आज भी जाकर कोई देख सकता है कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए सीधे उन पर ऐसी ही सैकड़ों-हजारों टिप्पणियां सोशल मीडिया में बिखरी पड़ी हैं. आज भी राहुल गांधी को सोशल मीडिया में सरेआम 'पप्पू' कहा जाता है. यह तो बीजेपी को भी मानना पड़ेगा कि आलोचनाओं को और नजरअंदाज करने लाएक बेकार की बातों को कांग्रेस सबसे ज्यादा सहनशीलता से और लोकतांत्रिक तरीके से हैंडल करती है. महाराष्ट्र और बंगाल एक तरह बीजेपी के लिए चेतावनी बन कर सामने आते हैं. चेतावनी यह है विपक्ष में अगर कांग्रेस कमजोर होती है तो विपक्ष कितना अराजक हो सकता है.


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