सम्पादकीय

अकालियों के गढ़ में भी कांग्रेस की किलेबंदी, अमरिंदर सिंह की कैप्टेंसी में कैसे SAD हुई ऑलआउट

Gulabi
17 Feb 2021 4:04 PM GMT
अकालियों के गढ़ में भी कांग्रेस की किलेबंदी, अमरिंदर सिंह की कैप्टेंसी में कैसे SAD हुई ऑलआउट
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किसान आंदोलन के नाम पर 24 साल पुराने एनडीए (NDA) गठबंधन से अलग होने का फायदा अकालियों काे नहीं मिला है

किसान आंदोलन के नाम पर 24 साल पुराने एनडीए (NDA) गठबंधन से अलग होने का फायदा अकालियों काे नहीं मिला है. पंजाब में स्थानीय निकायों के चुनावों (Punjab Municipal Corporation Election) का हालिया रुझान तो इसी ओर इशारा कर रहे हैं. अभी तक मिले चुनाव परिणाम के अनुसार पंजाब के आठ नगर निगम चुनावों में सात पर कांग्रेस (Congress) का कब्जा हो चुका है. साथ ही कांग्रेस और अकाली दल (SAD) को मिले सीटों में भी भारी अंतर है. अकाली दल के गढ़ समझे जाने वाले भटिंडा में भी कांग्रेस को भारी बहुमत मिला है. बठिंडा की कुल 50 सीटों में से कांग्रेस ने 47 पर जीत दर्ज की है वहीं अकाली दल सिर्फ 3 सीटों पर सिमट गई. बीजेपी (BJP) और आम आदमी पार्टी (AAP) यहां अपना खाता भी नहीं खोल पाई. अबोहर नगर निगम की कुल 50 सीटों में कांग्रेस ने 49 पर जीत दर्ज की है. यहां अकाली दल के हिस्से में केवल एक सीट आई है. गुरदासपुर में तो हद ही हो गया. कांग्रेस ने यहां सभी 29 वार्ड में जीत दर्ज की है. गुरदासपुर से बीजेपी के सांसद सनी देओल हैं.


भारतीय जनता पार्टी (BJP) का आधार पंजाब में अकाली दल के साथ छोटे भाई वाला ही था और इस बार बड़ा भाई अलग हो गया था. इसलिए बीजेपी को पंजाब के निकाय चुनावों में खोने के लिए कुछ नहीं था. किसान आंदोलन के चलते पंजाब की जनता वैसे ही बीजेपी से नाराज चल रही थी इसलिए बीजेपी को अपनी हार का कोई शिकवा नहीं होगा. लेकिन अकाली दल का ये हाल पंजाब की जनता करेगी ये तो किसी ने नहीं सोचा था. पंजाब के इन चुनावों में अकालियों का ये हाल क्यों हुआ इसके लिए हमें पंजाब की राजनीति और किसान आंदोलन पर पार्टियों के रुख को समझना होगा. यह विचार करने योग्य है कि किसान आंदोलन को लेकर अकाली जिस तरह आक्रामक थे उस तरह कांग्रेस नहीं थी. इसके बाद भी अगर कांग्रेस पंचायत चुनाव जीतकर आ रही है तो इसके गहरे निहितार्थ हैं.

पंजाब की राजनीति का आधार हैं किसान
पंजाब में सत्ता में आने के लिए किसानों के समर्थन की जरूरत पड़ती ही है. विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की कर्जमाफी के वादे किसानों को ऐसा भाया कि 10 साल पुरानी अकालियों की सरकार को जनता ने नकार दिया. इसी तरह अकालियों के कृषि कार्यों के लिए मुफ्त बिजली देने जैसे वादे ने अकाली दल को भी सत्ता में आने का रास्ता साफ किया था. किसान आंदोलन के मुद्दे पर जिस तरह पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह शुरू से मुखर रहे उसका फायदा कांग्रेस को मिला है. चाहे विधानसभा में पंजाब का अपना क़ृषि बिल हो या किसान आंदोलन को कानूनी सहायता देने की बात रही हो अमरिंदर सिंह सबसे आगे रहे. साथ ही किसान आंदोलन के शुरुआत में खुलकर किसान कानूनों के खिलाफ सड़क पर उतरने में भी उन्होंने देर नहीं की है.

क्या बीजेपी का साथ छोड़ने में देर है इस बड़ी हार का कारण
यह सभी जानते हैं कि अकाली दल बीजेपी के साथ केंद्र में सत्ता की भागीदार रही है. दोनों पार्टियों का साथ 24 साल पुराना रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) कई मौकों पर सार्वजनिक रूप से प्रकाश सिंह बादल (Prakash Singh Badal) का पैर छूते रहे हैं. सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर केंद्र में मंत्री भी थीं. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अकालियों पर आरोप लगाते रहे हैं कि जब कानून बन रहा था उस समय अकाली क्या कर रहे थे? इसके पहले हरसिमरत कौर का एक विडियो भी वायरल हुआ था जिसमें वो किसान कानूनों को समर्थन करते दिख रही थीं. हालांकि बीजेपी का साथ छोड़ने के बाद प्रकाश सिंह बादल ने अपना पद्म विभूषण सम्मान भी लौटाया. अकाली दल के एक और सम्मानित नेता सुखदेव सिंह ढिंढसा ने भी अपना पद्मभूषण सम्मान लौटा दिया फिर भी शायद जनता को ये सब कम लगा.

अकालियों के मुकाबले पंजाब कांग्रेस का सॉफ्ट स्टैंड काम आया?
पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amrinder Singh) शुरू से ही पंजाब और किसान आंदोलन पर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं से अलग स्टैंड लेते रहे हैं. इसके चलते कई बार उन पर बीजेपी के एजेंट होने जैसी बातें की गईं पर वो अपने स्टैंड पर कायम रहे. लाल किले पर बवाल के मुद्दे पर उन्होंने कांग्रेस से इतर स्टैंड लेते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय शर्म का विषय है. इसी तरह वह बीजेपी की तरह से किसान आंदोलन का लाभ पाकिस्तान और खलिस्तानियों के लेने की बात भी करते रहे. गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात पर भी उन पर साजिश रचने के आरोप लगे. जब अमरिंदर ने पंजाब के कुछ अफसरों को दिल्ली बॉर्डर पर भेजा तो कहा गया कि वो केंद्र के इशारे पर किसान नेताओं को तोड़ने का काम कर रहे हैं. इसके विपरीत सुखबीर सिंह बादल ने लगातार हार्डलाइन लिया.

कांग्रेस को हिंदुओं का भी वोट मिला
पंजाब के सभी बड़े शहरों में कांग्रेस को अकालियों के मुकाबले तीन गुना से चार गुना ज्यादे सीटें मिली हैं. कहीं कहीं तो सूपड़ा ही साफ हो गया दूसरे दलों का. इसका साफ मतलब है कि कांग्रेस को सभी वर्गों का वोट मिला है. इस विजय को किसान आंदोलन से जोड़ा जाएगा पर इतनी बड़ी विजय का कारण केवल एक नहीं होता. कांग्रेस को हिंदुओं और सिखों दोनों के वोट मिले हैं. हालांकि पंजाब में कांग्रेस को पहले से ही हिंदुओं का वोट मिलता रहा है पर इस बार बीजेपी के चुनावों में महत्वहीन होने के चलते कांग्रेस को बीजेपी के भी कुछ वोट मिले हैं.


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