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सम्पादकीय
Congress Crisis: परिवारवाद की राजनीति ने कांग्रेस को पतन की राह पर धकेला
Gulabi Jagat
16 March 2022 2:26 PM GMT
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परिवारवाद की राजनीति को पोषित कर रहे राजनीतिक दलों को आगे भी घेरते रहेंगे
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर परिवारवाद की राजनीति पर प्रहार करते हुए साफ-साफ कहा कि हालिया विधानसभा चुनावों में पार्टी के जिन सांसदों के बेटों को टिकट नहीं दिए गए, वे उनके ही कहने पर नहीं दिए गए। स्पष्ट है कि उन्होंने भाजपा के उन नेताओं को सख्त संदेश दिया, जो अपने बेटे-बेटियों को राजनीति में लाना चाह रहे हैं। उनके इस कथन से यह भी तय है कि वह परिवारवाद की राजनीति को पोषित कर रहे राजनीतिक दलों को आगे भी घेरते रहेंगे।
कायदे से ऐसे दलों को सतर्क हो जाना चाहिए, लेकिन इसके आसार कम ही हैं, क्योंकि एक समय जो दल कांग्रेस की परिवारवाद की राजनीति को कोसा करते थे, वे आज उसी की राह पर चल रहे हैं। वे यह देखने को तैयार नहीं कि परिवारवाद की राजनीति ने कांग्रेस को किस तरह पतन की राह पर धकेल दिया है।
यदि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में बुरी तरह पराजित होने के बाद भी गांधी परिवार विक्टिम कार्ड का सहारा लेकर कांग्रेस को अपने कब्जे में बनाए रखना चाहता है, तो पार्टी के साथ-साथ देश को भी अपनी निजी जागीर समझने की अपनी सामंती मानसिकता के कारण ही। इस मानसिकता का प्रमाण यह है कि चुनाव वाले राज्यों के कांग्रेस अध्यक्षों से तो इस्तीफा देने को कह दिया गया, लेकिन गांधी परिवार अपनी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं-और वह भी तब, जब सारे फैसले उसकी ओर से ही लिए गए। यह देखना दयनीय है कि पार्टी संचालन के तौर-तरीकों से असहमत जी-23 समूह के नेताओं में से कपिल सिब्बल को छोड़कर अन्य किसी ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में आस्था जताना बेहतर समझा।
आखिर इस समूह के नेता एक स्वर से यह क्यों नहीं कह सके कि गांधी परिवार किसी अन्य को पार्टी की कमान सौंपे? यदि जी-23 समूह के नेता और साथ ही अन्य कांग्रेसजन पार्टी को बचाने के लिए सचमुच गंभीर हैं तो उन्हें न केवल साहस दिखाना होगा, बल्कि गांधी परिवार को आईना भी दिखाना होगा। कहीं वे इसलिए तो साहस नहीं जुटा पा रहे हैं, क्योंकि उनका कहीं कोई जनाधार नहीं? यदि वे सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी की चाटुकारिता कर रहे नेताओं की ओर से गढ़ी गई इस घिसीपिटी धारणा के बंधक बने रहे कि गांधी परिवार के बिना कांग्रेस आगे नहीं बढ़ सकती तो फिर इस पार्टी का कोई भविष्य नहीं।
दैनिक भास्कर के सौजन्य से सम्पादकीय
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