सम्पादकीय

Congress Crisis: गिरती साख और घटता जनाधार, रसातल में जाती कांग्रेस

Gulabi Jagat
15 March 2022 12:13 PM GMT
Congress Crisis: गिरती साख और घटता जनाधार, रसातल में जाती कांग्रेस
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कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के पहले गांधी परिवार के समर्थकों ने जैसा माहौल बना दिया था
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के पहले गांधी परिवार के समर्थकों ने जैसा माहौल बना दिया था, उससे यही लग रहा था कि यह पार्टी यूं ही चलेगी। हुआ भी ऐसा ही। सोनिया गांधी ने जैसे ही यह कहा कि यदि कार्यसमिति को यह लगता है कि परिवार के लोगों के हटने से पार्टी मजबूत हो जाएगी तो वह ऐसा करने के लिए तैयार हैं, वैसे ही कुछ ऐसे स्वर गूंजे-अरे नहीं, बिल्कुल नहीं।
सोनिया गांधी इस तरह की भावनात्मक पेशकश पहले भी कर चुकी हैं और हर बार नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहा है। इस पर हैरानी नहीं कि कार्यसमिति ने न केवल सोनिया के नेतृत्व में फिर से आस्था जताई, बल्कि कुछ नेताओं ने अपनी यह पुरानी मांग भी दोहरा दी कि राहुल गांधी को फिर से पार्टी अध्यक्ष बनाया जाए। वास्तव में परिवार की भी यही इच्छा है और इसी कारण नए अध्यक्ष के चुनाव में देर की जा रही है। इस सबके बीच राहुल पर्दे के पीछे से पार्टी संचालित कर रहे हैं।
हालांकि उनके फैसले पार्टी का बेड़ा गर्क कर रहे हैं, लेकिन परिवार की अंधभक्ति में लीन अधिकांश कांग्रेस नेता उन्हें भविष्य का नेता और देश का मसीहा साबित करने में लगे हुए हैं। वे यह देखने-समझने को तैयार नहीं कि राहुल की राजनीति का एकमात्र एजेंडा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा पर चोट करना है। इसके लिए वह अपशब्दों का इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकते। उन्हें ऐसा करते हुए आठ वर्ष हो गए हैं, लेकिन वह यह साधारण सी बात नहीं समझ सके हैं कि अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी नेता को नीचा दिखाने की कोशिश को राजनीति नहीं कहते।
राहुल गांधी लगातार विफल होने के बाद भी अपनी आत्मघाती नाकाम और नकारात्मक राजनीति पर कायम हैं। वह न तो कोई नया विमर्श गढ़ पा रहे और न ही ऐसा कोई नजरिया पेश कर पा रहे, जिससे जनता उनकी ओर आकर्षित हो। कुछ ऐसा ही हाल प्रियंका गांधी का भी है, जिन्हें ब्रह्मास्त्र बताया गया था। जैसे राहुल वामपंथी सोच से ग्रस्त हो चुके हैं, वैसे ही प्रियंका भी।
कांग्रेस की न केवल वामपंथी दलों से निकटता बढ़ी है, बल्कि वामपंथी नेताओं की पार्टी में भागीदारी भी। एक समय जो युवा नेता राहुल के करीबी हुआ करते थे, वे या तो पार्टी छोड़कर जा चुके हैं या फिर उन्हें हाशिये पर कर दिया गया है। इस वजह से भी पार्टी रसातल में जा रही है।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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