सम्पादकीय

खीमी को कांग्रेस कबूल

Rani Sahu
12 July 2022 6:59 PM GMT
खीमी को कांग्रेस कबूल
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कहां तो अटकलें थीं सुधीर शर्मा के भाजपा में चले जाने की और कहां उनका हाथ पकड़कर चले गए पार्टी के ही पूर्व प्रदेश अध्यक्ष खीमी राम कांग्रेस में

By: divyahimachal

कहां तो अटकलें थीं सुधीर शर्मा के भाजपा में चले जाने की और कहां उनका हाथ पकड़कर चले गए पार्टी के ही पूर्व प्रदेश अध्यक्ष खीमी राम कांग्रेस में। एक नए अवतरण में कांग्रेस और एक नए प्रायश्चित में भाजपा। हम यह मूल्यांकन नहीं कर सकते कि एक नेता द्वारा पाला बदलने से भाजपा का मजबूत किला कमजोर हो गया, लेकिन इससे यह तो सामने आने लगा है कि पार्टी के भीतर एक दुखी व उपेक्षित 'भाजपा' है, जो अपना 'जीवन साथी' बदल सकती है। 'इतिहास इनका और उनका भी, सिर्फ खिजाब बदल रहा है।' कांग्रेस ने सिर्फ 'ताकि सनद रहे' कहा है, लेकिन अब छोटे से पर्वतीय प्रदेश में घमासान मचेगा। कल कौन किसके पलड़े में भारी हो जाए, यह राजनीति का तराजू नहीं जानता, लेकिन खीमी राम इसमें मोल, तोल और बोल बनकर सामने आए हैं। उनके लिए वह पार्टी क्यों न रही, जिसकी ईंटें उन्होंने ढोई थीं। उनकी पीड़ा पार्टी से अधिक अपनी सरकार से भी रही, क्योंकि सूबे की सत्ता अपने ही लोगों से 36 का आंकड़ा बनाकर बैठी थी। ऐसे में जब देहरा के निर्दलीय विधायक होशियार सिंह भाजपा के 'अपने' हो रहे थे या जोगिंद्रनगर के प्रकाश राणा पार्टी के विधायक हो लिए, तो भाजपा के दो मंडल 'किसे छुएं, किसे छोड़ें' की स्थिति में पहुंच गए। लिहाजा जहां पार्टी शुरू होती है, वहां से पहले सत्ता शुरू हो जाए, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं। यही बेचैनियां खीमी राम के रूप में आज कांग्रेस को कबूल कर रही हैं, तो इससे माहौल की छटपटाहट और बाहर आएगी।
अब भाजपा द्वारा खुड्डे लाइन लगाए गए नेता पिक्चर में आने लगे हैं, तो खीमी राम के आने के बाद पिक्चर कितनी बाकी है, यह राजनीतिक रोमांच बढ़ा देगा। जाहिर है खीमी राम अकेले नहीं हैं और जिस गणित से भाजपा खुद को टटोल रही है, उससे कई नेता आहत मिल जाएंगे। राजनीति में सत्ता अब यह हिसाब भी करने लगी है कि अपनों को किस हद तक चिपकाया जाए और किन्हें पिछली पंक्ति में धकेला जाए। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के पीछे लट्टू होने वालों की कतार लंबी है और इसी शृंखला में गोवा में कांग्रेस को घर बचाना मुश्किल हो रहा है, लेकिन हिमाचल में अगला चुनाव दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच मनोवैज्ञानिक टक्कर भी है। इस लिहाज से खीमी राम का कांग्रेस में चले जाना पूरे प्रदेश में हलचल पैदा करेगा और यह मंडी संसदीय क्षेत्र के राजनीतिक समीकरणों को कुल्लू की उधेड़बुन में फंसा देगा। यह एक नेता का पार्टी छोड़ना नहीं, बल्कि राजनीतिक भाषा और मुद्दों का बदलना भी है।
यह नेताओं की बिरादरी का ऐसा स्वरूप भी है जो अपनी ही सरकार के प्रति खिन्नता को विस्फोट बना सकता है। दिल्ली की अपनी पत्रकार वार्ता में खीमी राम ही नहीं बोल रहे थे, वहां वे तमाम नेता भी गूंजे जिन्होंने इस अभियान को अलंकृत किया। हालांकि इस सारे आखेट में यह पुनः स्थापित हो गया कि राजनीति अब विचारधारा की चिडि़या नहीं है और यह किसी भी डाल या किसी भी खेत से दाना चुग सकती है। तीन पीढि़यों से भाजपा की यात्रा में शरीक रहे खीमी राम सरीखे नेता अगर कांग्रेस में भविष्य देख रहे हैं, तो हिमाचल का चुनाव पूरे देश से अलग होने की इत्तिला भी दे रहा है। यह भाजपा को देखना है कि उसके भीतर और कितने खीमी राम हैं तथा यह भी कि खीमी राम को क्यों कांग्रेस का दामन थामना पड़ा। किसी भी कद्दावर नेता का पार्टी से जाना उस क्षेत्र की जनता के मूड को भी बदलता है और इस तरह खीमी राम ने कांग्रेस के पक्ष में कुछ तो नया रच ही दिया। चुनाव से पहले हिमाचल भाजपा यूं तो काफी सक्रिय व जोश से भरी है और कई तरह के सम्मेलनों से रूबरू हो चुकी है, लेकिन उन रेखाओं को भी पढ़ना होगा जो सत्तारूढ़ पार्टी से रूठ गईं। भाजपा की सत्ता, उस मेहनत की छत है जिसे खीमी राम सरीखे नेताओं ने करीने से सजाया होगा, तो आज के असंतुलन में कहीं तो गुरूर रहा होगा। अब देखना होगा कि खीमी राम के आगमन का कांग्रेस कितना फायदा उठाती है, लेकिन फिलहाल भाजपा को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। भाजपा को वास्तविक तहों से निकालकर उदास-निराश कुनबे को गले लगाना होगा, क्योंकि टिकट आबंटन की आहट ने आक्रोश के बादल खड़े कर दिए हैं।
Rani Sahu

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