सम्पादकीय

जाति जनगणना की उलझनें

Subhi
25 Sep 2021 1:54 AM GMT
जाति जनगणना की उलझनें
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महाराष्ट्र सरकार की ओर से दायर की गई याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करते हुए स्पष्ट कर दिया

महाराष्ट्र सरकार की ओर से दायर की गई याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करते हुए स्पष्ट कर दिया कि वह 2021 की जनगणना में अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी भी जाति से संबंधित सूचनाएं इकट्ठा करने के पक्ष में नहीं है। केंद्र सरकार के इस रुख पर अब राज्य सरकारें अपना पक्ष रखेंगी और फिर अदालत तमाम पहलुओं पर विचार करते हुए कोई फैसला देगी, लेकिन इस हलफनामे से इस मसले पर केंद्र सरकार का रुख पूरी तरह साफ हो गया।

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हालांकि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 20 जुलाई को लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बता दिया था कि भारत सरकार ने जनगणना में एससी/एसटी के अलावा अन्य जातियों को न गिनने का नीतिगत निर्णय लिया है। लेकिन इसके बाद 23 अगस्त को बिहार के मुख्यमंत्रियों की अगुआई में विभिन्न दलों का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला और उनसे जाति आधारित जनगणना करवाने की अपील की। प्रधानमंत्री ने इस प्रतिनिधिमंडल को अपनी तरफ से कोई आश्वासन नहीं दिया, लेकिन न केवल बीजेपी नेताओं ने प्रतिनिधिमंडल की मांग से सहमति जताई बल्कि पार्टी ने इसमें अपना एक नुमाइंदा भी भेजा। इसलिए यह संभावना जताई जाने लगी थी कि ब इस मसले पर सरकार के रुख में थोड़ी नरमी दिखेगी।
बहरहाल, सरकार के इस हलफनामे में जहां एक तरफ नीतिगत रवैये की बात कही गई है, वहीं दूसरी तरफ जातिगत जनगणना की राह में आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयां भी गिनाई गई हैं। नीति के सवाल पर इसमें कहा गया है कि भारत सरकार ने 1951 में आजादी के बाद पहली जनगणना के वक्त ही यह तय कर लिया था कि एससी और एसटी के अलावा अन्य जातियों से संबंधित सूचनाओं को जनगणना का हिस्सा नहीं बनाया जाएगा। मगर जब यह नीति बनाई गई थी, तब एससी/एसटी के अलावा किसी और जाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं थी। अब जब ओबीसी आरक्षण को तीन दशक हो चुके हैं और उसके फायदों की ढंग से समीक्षा करने की जरूरत महसूस हो रही है तो फिर 1951 के नीतिगत फैसले का हवाला देना तर्कसंगत नहीं माना जा सकता।
जहां तक व्यावहारिक दिक्कतों की बात है तो सरकार की इस बात में दम है कि जाति, गोत्र, उपजाति से संबंधित उलझनें इस काम को अत्यधिक कठिन बना देती हैं। इन्हीं उलझनों की वजह से 2011 की जनगणना के दौरान जुटाए गए आंकड़ों में इतनी गलतियां पाई गईं कि उन्हें इस्तेमाल के लायक भी नहीं माना जा सका। मगर चाहे जितनी भी गंभीर हों, गलतियों को किसी फैसले या नीति का आधार नहीं बनाया जा सकता। कोशिश हमेशा गलतियों को दुरुस्त करके आगे बढ़ने की होती है, गलतियों का वास्ता देकर किसी काम को टालना कोई विकल्प नहीं होता। मौजूदा मामले में भी सरकार के प्रयासों की दिशा जातियों से संबंधित उलझनों को दूर करने और सही व प्रामाणिक सूचनाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने की ही होनी चाहिए।


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