सम्पादकीय

तालिबान पर असमंजस

Triveni
2 Aug 2021 3:53 AM GMT
तालिबान पर असमंजस
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अमेरिका के विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकेन की भारत यात्रा के बाद कहा गया कि अफगानिस्तान के सवाल पर दोनों पक्षों में सहमति बन गई है।

अमेरिका के विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकेन की भारत यात्रा के बाद कहा गया कि अफगानिस्तान के सवाल पर दोनों पक्षों में सहमति बन गई है। मगर उसी समय ब्लिंकेन ने चीन और तालिबान के बीच हुई उच्चस्तरीय बैठक का स्वागत कर दिया। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में शांति के साथ सभी के हित जुड़े हैं। ऐसे में अगर चीन के दखल से अफगान सरकार और तालिबान में मेलमिलाप होता है, तो यह स्वागत योग्य होगा। जबकि तमाम कूटनीतिक संकेत हैं कि तालिबान और चीन में बनती करीबी से भारत को परेशानी हुई है। इसी बैठक के बाद भारत की तरफ से कहा गया कि तालिबान ने अगर ताकत के जोर से अफगानिस्तान पर कब्जा किया, तो वह समस्या का लोकतांत्रिक और टिकाऊ समाधान नहीं होगा। गौरतलब है कि तालिबान के लड़ाकों ने अफगानिस्तान में बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है। खुद अमेरिकी रक्षा मंत्रालय- पेंटागन का अब अनुमान है कि तालिबान अब तक देश के आधे से अधिक जिलों पर कब्जा कर चुका है।

इससे ये संभावना बढ़ी है कि ये चरमपंथी गुट सत्ता में वापस आ सकता है। इस पृष्ठभूमि में तालिबान का एक दल अपने नेता मुल्ला बरादर अखुंद के नेतृत्व में चीन के विदेश मंत्री वांग यी से चीन जाकर मिला। उसके बाद चीन के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि तालिबान से अफगानिस्तान में शांतिपूर्ण सुलह की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने और अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण की उम्मीद है। इसे तालिबान को चीन का समर्थन मिलने के रूप में देखा गया है। इसके बदले में तालिबान ने चीन से वादा किया कि वह शिनजियांग प्रांत में हमले करने वाले आतंकवादी गुट को अपनी धरती से सक्रिय नहीं होने देगा। इस सिलसिले में यह भी गौरतल है कि हाल में तालिबान का प्रतिनिधिमंडल ईरान और रूस का भी दौरा कर चुका है। तालिबान का एक कार्यालय कतर में है। यानी तालिबान को काफी अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल चुकी है। यहां तक कि खुद पूर्व डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन ने भी उससे आमने-सामने बैठ कर बात की थी और उससे अपनी सैन्य वापसी के बारे में एक करार किया था। तो अब प्रश्न है कि इस उभरती सूरत के बीच भारत कहां है? ये आम समझ रही है कि अफगानिसतान में भारत के बड़े रणनीतिक हित हैं। लेकिन वे आज सुरक्षित हैं, ऐसा कहना कठिन लग रहा है।


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