सम्पादकीय

टकराव कोई हल नहीं

Subhi
3 Feb 2022 3:03 AM GMT
टकराव कोई हल नहीं
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रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन ने कहा है कि अमेरिका यूक्रेन के मसले पर रूस को युद्ध में खींचना चाहता है। दूसरी तरफ अमेरिका बार-बार दोहरा रहा है कि युद्ध किसी के हक में नहीं होगा।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन ने कहा है कि अमेरिका यूक्रेन के मसले पर रूस को युद्ध में खींचना चाहता है। दूसरी तरफ अमेरिका बार-बार दोहरा रहा है कि युद्ध किसी के हक में नहीं होगा। बावजूद इसके, यूक्रेन पर दोनों पक्षों के बीच तनातनी कम होने का नाम नहीं ले रही। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का रूस को लेकर रुख डॉनल्ड ट्रंप के मुकाबले ज्यादा कड़ा दिख रहा है तो उसकी वजह भी है। एक तो उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी मानती है कि पूतिन अमेरिका के घरेलू मामलों में अवैध दखलंदाजी करते हैं। दूसरी बात यह कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के फैसले के चलते राष्ट्रपति बाइडन की जो किरकिरी हुई, रूस को झुकाते हुए दिखने से उसकी कुछ भरपाई हो सकती है। मगर दोनों पक्षों के बीच का यह तनाव भारत की मुश्किलें बढ़ा रहा है। अब तक उसने खुद को तटस्थ बनाए रखा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस हफ्ते यूक्रेन पर चर्चा से पहले हुई प्रक्रियागत वोटिंग में भारत शामिल नहीं हुआ। लेकिन अगर दोनों पक्षों में युद्ध की नौबत आती है तो भारत की उलझन निश्चित रूप से बढ़ जाएगी।

रूस न केवल भारत का परंपरागत तौर पर मित्र देश रहा है बल्कि आज भी उसकी रक्षा जरूरतें पूरी करने का सबसे बड़ा स्रोत रूस ही है। अमेरिका और रूस के बीच सैन्य टकराव का सहज परिणाम यह होगा कि रूस पर पाबंदियां लग जाएंगी। जवाब में रूस यूरोपीय देशों को गैस की सप्लाई रोक सकता है। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव बढ़ेगा जो कोविड प्रभाव से उबरती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक और झटका साबित हो सकता है। इस मामले का एक अहम पहलू चीन से जुड़ा है। यूक्रेन को लेकर हुआ सैन्य टकराव रूस की चीन पर निर्भरता बढ़ा देगा। रूस ने अब तक तो भारत और चीन के तनावपूर्ण रिश्तों में खुद को निरपेक्ष रखा है, लेकिन बदले हालात में चीन की ओर झुकने की मजबूरी के बीच संतुलन बनाए रखना रूस के लिए भी मुश्किल होगा। दूसरी ओर अमेरिका भी भारत के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन पर अंकुश लगाने की जो रणनीति बनाई गई है, उसमें भारत और अमेरिका की केंद्रीय भूमिका है। सैन्य टकराव की स्थिति में अमेरिका का यह आग्रह बढ़ जाएगा कि भारत रूस के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार करे। ध्यान रहे रूस से एस 400 मिसाइल सिस्टम खरीदने के सिलसिले में भारत पर पाबंदी लगाने को लेकर भी अमेरिका ने अभी तक अंतिम फैसला नहीं किया है। हालांकि इन सबके बावजूद यूक्रेन पर अमेरिका और रूस के बीच तनाव घटाने में भारत की कोई खास भूमिका बनती नहीं दिखती है। ऐसे में भारत को बदलती स्थितियों पर सतर्क नजर रखते हुए संभावित नतीजों से निपटने की तैयारी जरूर रखनी चाहिए।

नवभारत टाइम्स

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