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- अमेरिकी चुनावों में...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अब यह लगभग तय लगता है कि अमेरिका के अगले राष्ट्रपति जो बाइडेन होंगे क्योंकि उन्होंने अभी तक अपने देश के 50 राज्यों के कुल 538 में से 264 चुनावी मतों को जीत लिया है जबकि डोनाल्ट ट्रम्प केवल 214 मत ही पा सके हैं। इसके साथ ही उपराष्ट्रपति पद पर भारतीय मूल की श्रीमती कमला हैरिस भी बैठेंगी, परन्तु चुनावों के परिणाम को तभी अंतिम समझा जायेगा जब शेष बचे तीन राज्यों में मतों की गणना पूरी हो जाएगी। अमेरिकी चुनाव प्रणाली से यह स्पष्ट है कि वहां का राष्ट्रपति चुनाव बहुत उलझी हुई प्रक्रिया से गुजरता है जिसकी वजह से चुनाव परिणाम भी कभी-कभी उलझ जाता है। वर्तमान चुनावों में जिस तरह राष्ट्रपति ट्रम्प ने मतों की गिनती पूरे हुए बिना ही अपनी जीत को अवश्यंभावी बता कर डाले गये मतों की वैधता पर सवालिया निशान लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय में जाने की बात कही उससे भी इस देश की लोकतान्त्रिक प्रणाली के बारे में कई सवाल पैदा होते हैं क्योंकि आम भारतीय की समझ से यह परे की बात है कि किस प्रकार कोई प्रत्याशी सभी मतों की गिनती होने से पूर्व ही न्यायिक युद्ध शुरू कर सकता है। अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना और मजबूत लोकतन्त्र है जिसमें राष्ट्रपति शासन प्रणाली की व्यवस्था शुरू से ही है मगर इस देश में चुनाव केन्द्रीय विषय नहीं है बल्कि राज्यों का विषय है और प्रत्येक राज्य अपने पारदर्शी चुनाव नियम बनाने के लिए स्वतन्त्र है। इसी के तहत यहां की संघीय व्यवस्था प्रत्येक राज्य को उसकी आबादी को देखते हुए राष्ट्रपति चुनने के लिए चुनावी मतों का आवंटन करती है। चूंकि कमोबेश इस देश में असली मुकाबला दो राजनीतिक दलों रिपब्लिकन पार्टी व डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच ही होता आया है तो हार-जीत का फैसला करने में भी ज्यादा दिक्कत नहीं होती है मगर इन चुनावों में अमेरिकी सीनेट के एक सौ सदस्यों के लिए भी चुनाव होता है और प्रत्येक राज्य से इन सदस्यों का चुनाव होता है।
सीनेट सदस्यों के चुनाव में अभी तक दोनों दल बराबरी पर हैं और दोनों के ही 48-48 सदस्य विजयी रहे हैं मगर इनकी विजय में कम या ज्यादा मतों का अन्तर हो सकता है। इस उलझी हुई चुनाव प्रक्रिया की वजह से ही 2016 के चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी हिलेरी क्लिंटन पराजित हो गई थीं जबकि उनकी पार्टी को वोट अधिक पड़े थे, परन्तु इस बार ऐसी कोई गफलत अमेरिकी मतदाताओं ने नहीं दिखाई है और पिछले एक सौ वर्ष में सर्वाधिक मतदान करके उन्होंने अपनी स्पष्ट पसन्द का इजहार कर दिया है परन्तु राष्ट्रपति ट्रम्प इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है और उन्होंने मांग की है कि उन सभी मतों की गिनती रोक दी जाये जो मतदान का समय समाप्त होने के बाद चुनाव अधिकारियों को मिले हैं।
कोरोना संक्रमण की वजह से अमेरिका में इस बार पोस्टल या डाक द्वारा मत देने की प्रणाली अपनाई गई थी जिसे देखते हुए कम से कम दस करोड़ मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। मतदान वाले दिन 3 नवम्बर को बाकायदा मतदान केन्द्रों पर मतदान हुआ और इसके बाद इनकी गिनती शुरू हो गई। जिस राज्य में डाक मतों की पावती मतदान का समय पूरा होने तक हो गई उनकी गिनती कर ली गई और जहां लोगों ने अपना मत डाक से देना बेहतर समझा उन्हें भी इसमें शामिल कर लिया गया। इसमें कहीं कोई सन्देह की गुंजाइस इसलिए नहीं है कि प्रत्येक राज्य का चुनावी संस्थान अपनी जिम्मेदारी संविधानतः अपना रहा है और चुनावों को सम्पन्न करा रहा है परन्तु श्री ट्रम्प इस पर सन्देह कर रहे हैं। असल में जब अमेरिका में डाक मतों का फैसला किया गया था तभी से ट्रम्प इस पर सवालिया निशान लगा रहे हैं और अपने विरोधी प्रत्याशी जो बाइडेन को निशाने पर रख रहे हैं। अब चुनाव होने के बाद उन्होंने सख्त तेवर अख्तियार कर लिये हैं जिसकी वजह से उनके समर्थकों ने कई मत गणना केन्द्रों पर प्रदर्शन करके मतों की गिनती तक को रुकवा दिया जबकि जो बाइडेन का कहना है कि प्रत्येक मत की गणना की जानी चाहिए। इसे देखते हुए ही आपके लोकप्रिय अखबार पंजाब केसरी ने कल अमेरिकी चुनाव परिणाम की खबर पर शीर्षक लगाया था कि 'अबकी बार-फंसी सरकार।' इस शीर्षक को अमेरिका के प्रख्यात अखबार वाशिंगटन पोस्ट के ब्यूरो चीफ ने सभी भारतीय हिन्दी, अंग्रेजी अखबारों का सर्वश्रेष्ठ शीर्षक करार दिया है। इससे यह पता चलता है कि आपका अखबार किस संजीदगी से खबरों का अध्ययन करता है।
दरअसल राष्ट्रपति ट्रम्प का रवैया दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोकतान्त्रिक तरीके से चुने जाने वाले राष्ट्रपति के अनुरूप नहीं कहा जा सकता क्योंकि लोकतन्त्र की यह खूबी होती है कि इसमें पराजय को भी सम्मान के साथ स्वीकार करके विजयी प्रत्याशी को शुभकामनाएं दी जाती हैं। इन मायनों में भारत का लोकतन्त्र कई कदम आगे है जिसमें किसी प्रत्याशी के एक वोट से भी जीतने पर उसे स्वीकार कर लिया जाता है। हमारी चुनाव प्रणाली भी बहुत सीधी-सादी है जिसमें जनता द्वारा सीधे चुने गये लोकसभा सांसद अपनी पार्टी या गठबन्धन के बहुमत के लिहाज से अपना नेता चुनते हैं और वह प्रधानमन्त्री कहलाता है और प्रधानमन्त्री चुने जाने के बाद वह सदन का नेता हो जाता है। हालांकि इसमें संसद सदस्य की परिभाषा के चलते पेंच जरूर पड़ा हुआ है क्योंकि राज्यसभा का सदस्य भी संसद सदस्य कहलाता है जिसकी वजह से राज्यसभा सांसद भी प्रधानमन्त्री हो सकता है जैसा कि हमने डा. मनमोहन सिंह के मामले में देखा था, परन्तु अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव कमोबेश सीधे लोगों द्वारा ही किया जाता है। हालांकि इसमें 'एक व्यक्ति एक वोट' का सिद्धान्त काम नहीं करता। इसकी वजह अमेरिका की वह पुरानी समाज व्यवस्था है जिसमें अश्वेत नागरिकों को 1964 से पहले पूर्ण मताधिकार प्राप्त नहीं था।