सम्पादकीय

शराब में तरी आत्मा का बयान

Rani Sahu
9 Nov 2021 7:01 PM GMT
शराब में तरी आत्मा का बयान
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उस स्टेट में जनता को शराब से बचाने के लिए या माफिया को चोरी छिपे शराब सप्लाई करने के लिए शराब पर पूरी तरह से पांबदी लगाई गई थी

उस स्टेट में जनता को शराब से बचाने के लिए या माफिया को चोरी छिपे शराब सप्लाई करने के लिए शराब पर पूरी तरह से पांबदी लगाई गई थी। पर शराब थी कि पहले से अधिक जनता को मिल रही थी। सब पहले से अधिक खुलकर पीने में मस्त! यहां तक कि सुशासन बाबू की कैबिनेट मीटिंग में उनके अफसर तक नशे में झूलते हुए। सुशासन बाबू की स्टेट में पूरी तरह शराबबंदी होने के बाद भी स्वदेशी जहरीली शराब पीने से गरीबों के गांव में कइयों की मौत हो गई। उन्होंने गम बुलाने को पी या गम भुलाने को वही जानें। इधर उनकी मौत हुई तो उधर उनकी मौत को लेकर राजनीति शुरू। जो यमदूत इमरजेंसी में मरने वालों की सेवाओं के लिए यमराज ने स्टेट में तैनात रखे थे, इससे पहले कि उनकी मौत की खबर सुन वे उन्हें लेने आते, उनके शव राजनीतिज्ञों के हाथ लग गए। बस, फिर क्या था! राजनीतिज्ञों के हाथों गधों के शव भी लग जाएं तो वे भूचाल खड़ा कर रख देते हैं और ये तो ठहरे वोटरों के।

भूखे शेर के मुंह से मांस छीना जा सकता है, पर राजनीतिज्ञों से राजनीति करने लायक मुद्दा कतई नहीं छीना जा सकता। वे राजनीति करने वाले मुद्दे को लेकर किसी की जान भी ले सकते हैं और मौका आए तो जनता की वेदना के बदले संवेदना अर्जित करने के लिए जान दे भी सकते हैं। बेचारे यमदूत जहरीली शराब पीने से मेरी आत्माओं को यमलोक ले जाने के लिए वाहन लिए मौन खड़े। विपक्ष था कि किसी भी सूरत में इस मुद्दे को छोड़ने को तैयार न था। छोड़ेगा तो फिर कैसे आगे बढ़ेगा? नेताओं की राजनीति में फंसी इन आत्माओं में से एक जरा कुछ चालाक आत्मा उनकी आंख बचा दबे पांव वहां से खिसक यमराज के पास जा पहुंची बिना गाइडों के ही। जैसे ही वह आत्मा यमराज के सामने पेश हुई तो यमराज ने उससे पूछा, 'और बंधु! आ गए! तुम्हारा तो अभी समय नहीं हुआ था। लोकतंत्र में समाज सेवकों की निःस्वार्थ समाज सेवा से मन भर गया क्या?' 'न भी जनाब और हां भी जनाब! वैसे देर सबेर तो आपके लोक में आना ही था। कोई बीवी का सामना कर पाए या न, पर उसे देर सबेर आपका सामना तो करना ही पड़ता है जनाब!' 'तो अचानक कैसे? अबके भी मर कर ही आए हो न?' 'हम जैसे किसी मंत्री का डीओ लैटर लिए आपके दरबार में जिंदा कैसे आ सकते हैं जनाब! अबके भी बस, जरा कर्ज भुलाने को शराब के बदले जहरीली शराब पी ली और मर गए।' आत्मा के मुंह से नशे में शराब की अभी भी थोड़ी थोड़ी खुशबू आ रही थी। इसी वजह से वह थोड़ी थोड़ी लड़खड़ा भी रही थी। 'पर जहां तक मुझे मालूम है तो तुम्हारी स्टेट में तो पूरी तरह नशाबंदी लगी है। ऐसे में तुम ब्लैक की पीकर आए या फिर…।' 'जनाब! शराब ब्लैक की हो या व्हाइट की। कैबिनेट मीटिंग से बाहर की हो या भीतर की।
मजे करवा देती है। वैसे जनाब! हम जैसे या तो जहर खाकर समय से पहले मरते हैं या जहरीली शराब पीकर। अमृत अपने भाग्य में कहां जनाब? अव्वल दर्जे की शराब अपने नसीब में कहां हुजूर! वैसे बुरा लगे तो माफ कीजिएगा हुजूर! अपनी वेलफेयरी स्टेटों में ज्यादातर उल्टे सीधे काम तभी होते हैं जनाब जब उन पर सरकारी तौर पर पूरी तरह पाबंदी लगी होती है।' 'क्या मतलब तुम्हारा?' सुन यमराज चौंके तो जहरीली शराब पीने से मरी आत्मा ने लड़ाखड़ाते, मस्तियाते कहा, 'जनाब! बात ये है कि जब जब सरकार जी तबादलों पर पूरी तरह पाबंदी लगाती हैं तो जनाबों के सबसे अधिक तबादले उसी वक्त में होते हैं। जब सरकार जी कहती हैं कि अब नई भर्तियों पर पूरी तरह पाबंदी है तो पिछले दरवाजों से सबसे अधिक भर्तियां उसी वक्त होती हैं जनाब जी! किसकी? गधे तक जानते हैं। इसी तरह सरकार जी ने अपनी स्टेट में पूरी तरह से शराब पर पाबंदी लगा रखी है तो वहां कौन सी पाबंदी है? पाबंदी अपनी जगह, मौज मस्ती अपनी जगह। पाबंदी के दिनों में मेरे जैसे पहले से भी अधिक शराब पी रहे हैं हुजूर!' जहरीली शराब पीकर मरी आत्मा ने हंसते हुए कहा और नशे की हालत में यमराज के चरणों में गिर पड़ी। यमराज अब क्या करें? उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा। हे सलाहकार! तुम कहां हो। कहीं पीकर पड़े तो नहीं हो?
अशोक गौतम

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