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- शोक सभा के सलाहकार
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वह सलाहकार है और यह उसकी दक्षता नहीं, बल्कि उसकी आदत है कि किसी भी मौके की नजाकत में कोई न कोई सलाह उंडेल देता है। वह अपनी सलाह में ऊंच-नीच नहीं करता और न ही किसी जातिवादी आधार पर अपनी सलाह का मूल्यांकन करता है। दो दिन पहले वह एक शोक सभा को सलाह देते हुए कह रहा था, 'ऐसी सभाएं आपसी भाईचारे को बढ़ा सकती हैं, अतः हर दंगे, हत्या और घातक घटनाक्रम के तुरंत बाद कानून व्यवस्था को शोक सभाओं का आयोजन करना चाहिए।' उसका सुझाव प्रदेश की गिरती कानून व्यवस्था के लिए रामबाण सिद्ध हुआ और अब हर पुलिस स्टेशन त्वरित शोक सभा के आंकड़ों में दुरुस्ती कर रहा है। पिछले साल तो गजब हो गया। पुलिस ने अपने आंकड़े बढ़ाने के चक्र में ऐसी शोक सभाएं कर डालीं, जो वास्तव में जिंदा लोगों को श्मशान पहुंचाने वाली थीं, लेकिन विभाग इसलिए खुश है कि अब उसने जांच से कहीं अधिक विश्वसनीयता शोक प्रकट करने में हासिल कर ली है। देश के सारे सलाहकार इसी तरह की विश्वसनीयता पैदा करने के टोटके बता रहे हैं। हर सलाहकार पीके यानी प्रशांत किशोर नहीं बन सकता, लेकिन उसके जैसी सलाह तो दे सकता है, इसलिए हर चैनल पर कांग्रेस को बताया जा सकता है कि पार्टी को क्या नहीं करना चाहिए। वैसे हर चुनाव की सबसे बड़ी सलाह केवल कांग्रेस को ही दी जा सकती है, क्योंकि सलाहकार बनने के लिए पार्टी की वर्तमान पिच सभी को रास आ रही है। आश्चर्य यह कि कोई भी सलाहकार यह नहीं बता पा रहा है कि कांग्रेस को सलाह किसके मार्फत दी जाए। क्या प्रियंका गांधी को दी गई सलाह सोनिया तक पहुंचेगी या सोनिया की सलाह से राहुल गांधी कुछ समझ जाएंगे। वैसे जी-23 को भी यह वहम है कि यह धड़ा पार्टी का सबसे बड़ा सलाहकार बन सकता है, इसलिए इस गुट तक पहुंचे नेता अब सलाहकार की भूमिका में पारंगत होना चाहते हैं। कई बार ऐसा भी प्रतीत होता है कि देश को अब सलाहकारों की जरूरत नहीं, बल्कि सलाह देने वालों को तो अब मीडिया भी माफ नहीं करता।
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