सम्पादकीय

शोक सभा के सलाहकार

Rani Sahu
10 April 2022 7:09 PM GMT
शोक सभा के सलाहकार
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वह सलाहकार है और यह उसकी दक्षता नहीं, बल्कि उसकी आदत है

वह सलाहकार है और यह उसकी दक्षता नहीं, बल्कि उसकी आदत है कि किसी भी मौके की नजाकत में कोई न कोई सलाह उंडेल देता है। वह अपनी सलाह में ऊंच-नीच नहीं करता और न ही किसी जातिवादी आधार पर अपनी सलाह का मूल्यांकन करता है। दो दिन पहले वह एक शोक सभा को सलाह देते हुए कह रहा था, 'ऐसी सभाएं आपसी भाईचारे को बढ़ा सकती हैं, अतः हर दंगे, हत्या और घातक घटनाक्रम के तुरंत बाद कानून व्यवस्था को शोक सभाओं का आयोजन करना चाहिए।' उसका सुझाव प्रदेश की गिरती कानून व्यवस्था के लिए रामबाण सिद्ध हुआ और अब हर पुलिस स्टेशन त्वरित शोक सभा के आंकड़ों में दुरुस्ती कर रहा है। पिछले साल तो गजब हो गया। पुलिस ने अपने आंकड़े बढ़ाने के चक्र में ऐसी शोक सभाएं कर डालीं, जो वास्तव में जिंदा लोगों को श्मशान पहुंचाने वाली थीं, लेकिन विभाग इसलिए खुश है कि अब उसने जांच से कहीं अधिक विश्वसनीयता शोक प्रकट करने में हासिल कर ली है। देश के सारे सलाहकार इसी तरह की विश्वसनीयता पैदा करने के टोटके बता रहे हैं। हर सलाहकार पीके यानी प्रशांत किशोर नहीं बन सकता, लेकिन उसके जैसी सलाह तो दे सकता है, इसलिए हर चैनल पर कांग्रेस को बताया जा सकता है कि पार्टी को क्या नहीं करना चाहिए। वैसे हर चुनाव की सबसे बड़ी सलाह केवल कांग्रेस को ही दी जा सकती है, क्योंकि सलाहकार बनने के लिए पार्टी की वर्तमान पिच सभी को रास आ रही है। आश्चर्य यह कि कोई भी सलाहकार यह नहीं बता पा रहा है कि कांग्रेस को सलाह किसके मार्फत दी जाए। क्या प्रियंका गांधी को दी गई सलाह सोनिया तक पहुंचेगी या सोनिया की सलाह से राहुल गांधी कुछ समझ जाएंगे। वैसे जी-23 को भी यह वहम है कि यह धड़ा पार्टी का सबसे बड़ा सलाहकार बन सकता है, इसलिए इस गुट तक पहुंचे नेता अब सलाहकार की भूमिका में पारंगत होना चाहते हैं। कई बार ऐसा भी प्रतीत होता है कि देश को अब सलाहकारों की जरूरत नहीं, बल्कि सलाह देने वालों को तो अब मीडिया भी माफ नहीं करता।

पिछले कई दिनों से जनता सलाह दे रही है कि पेट्रोल-डीजल के दाम कैसे कम हो सकते हैं, लेकिन देश को ऐसी सलाह की जरूरत नहीं। अगर पेट्रोल-रसोई गैस पर सलाह देने के बजाय लोग इनकी शोक सभाएं आयोजित कर दें, तो कम से कम कुछ कहा तो जा सकता है। इसलिए कोई भी शोक सभा दरअसल मानवीय इतिहास की सबसे बड़ी, अनौपचारिक व शाश्वत भूमिका में सलाहकार होती है। हर बार अच्छी सलाह लेने के लिए हम मरते रहते हैं। कल एक और व्यक्ति दुर्घटना में मर गया, तो शोक सभा की सलाह से पता चला कि अगर नगर निगम की सड़क पर गड्ढा न होता, तो वह बच जाता। किसी ने कहा गांव से रोजगार के लिए शहर न आता तो बच जाता। एक अन्य ने कहा कि वर्तमान सरकार न बनती तो बच जाता। यह सलाह का दौर था, जो केवल शोक सभा में बोल रहा था, वरना बोलने के अन्य मंच तो न जाने कब के खामोश हो गए हैं। हर बार एक सलाह के लिए किसी न किसी को मरना पड़ता है। इसीलिए अच्छे लोकतंत्र को और अच्छी सलाह से पहले इसकी तमाम संस्थाओं को मरना पड़ेगा और जिस दिन इनकी सामूहिक शोक सभा होगी, हमारे बीच में से ही जनता के सलाहकार निकल कर बता पाएंगे कि देश की संस्थाएं क्यों मरीं और इन्हें आगे सुदृढ़ करने को क्या सलाह चाहिए। अतः अब अपने आसपास गिरते-टूटते देश के वजूद पर हैरान न हों, बल्कि उस दिन का इंतजार करें जब किसी शोक सभा के कारण आप भी राष्ट्र को बचाने की सलाह दे पाएंगे।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक


Rani Sahu

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